भारत का दूसरा बड़ा परमाणु बिजलीघर, 6 परमाणु ऊर्जा इकाइयां उत्पादन रत, 2 इकाइयां निर्माणाधीन, नाभिकीय ईंधन सयंत्र और एक भारी पानी संयंत्र, राजस्थान के सबसे बडे बांधों में से चम्बल नदी पर बना राणा प्रताप सागर बांध और बांध पर 172 मेगावॉट का पन बिजलीघर , पर्यटकों के लिए मनोहर प्राकृतिक दृश्य, पर्वतों के मध्य सेडल डेम, चम्बल पर ताज से लगता भैंसरोडगढ़ किला, वन्यजीव प्रेमियों के लिए भैंसरोडगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य, पाडाझर एवं चूलिया जैसे झरने, कारीगरीपूर्ण प्राचीन बाड़ोली के मंदिर सहित अन्य अनेक धार्मिक आस्था स्थल आज छोटे से कस्बे रावतभाटा की विशेषतायें बन गई हैं। परमाणु ऊर्जा उत्पादन के कारण आज राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित रावतभाटा न केवल भारत वरण दुनिया के मानचित्र पर अपनी पहचान बनाता है।
रावतभाटा शहर एक तहसील एवं नगरपालिका क्षेत्र है। छोटे से शहर में 21.53 वर्ग किमी. क्षेत्र में करीब 9 हज़ार घरों में 37,701 जनसंख्या निवास करती है। निकटतम बड़ा शहर कोटा यहां से 50 किलोमीटर दूरी पर है जो दिल्ली-मुम्बई रेल मार्ग का प्रमुख जंक्शन है। कोटा के माध्यम से रावतभाटा देश और दुनिया से जुड़ा है। रावतभाटा समुद्र तल से 325 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
राणा प्रताप सागर बांध
चंबल नदी पर स्थित राणा प्रताप सागर बांध शहर के निकट स्थित है। बांध में बिजली उत्पादन की क्षमता 172 मेगावाट है यह रावतभाटा को पास के कस्बे विक्रमनगर से जोड़ने वाली सड़क से जुड़ा है जो एक छोटी पहाड़ी पर स्थित ह है। पहाड़ी की चोटी पर महाराणा प्रताप की एक विशाल प्रतिमा दूर से नज़र आती है। राणा प्रताप सागर बांध को आरपीएस बांध भी कहा जाता है । चंबल नदी पर बने चार पुराने बांधों में से एक है जो चम्बल नदी घाटी परियोजना का हिस्सा है। यह बाँध अपने आसपास के गांवों में मछली पकड़ने की गतिविधियों की बढ़ावा देता हैं और बिजली पैदा करने के लिए राजस्थान परमाणु बिजली संयंत्र को पानी देने के लिए भी जल स्रोत का कार्य करता है। बांध का सीधा लाभ यह है कि बांध का जल विद्युत उत्पादन 43 मेगावाट क्षमता वाली 4 इकाइयों से 172 मेगावाट विधुत उत्पादन किया जा रहा है। इस पावर स्टेशन को आधिकारिक तौर पर 9 फरवरी,1970 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्र को समर्पित किया था। राजस्थान के योद्धा महाराज राणा प्रताप के नाम पर बांध और बिजली संयंत्र का नाम रखा गया है। समीप ही सेडल डेम की मनोहारी छटां भी मन मोह लेती है।
भैंसरोडगढ़ किला
चम्बल जब चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा जिले में राणा प्रताप सागर बांध से आगे बढ़ती है तो उसके किनारे बना भैंसरोडगढ़ का प्राचीन किला आज खूबसूरत हेरिटेज होटल में तबदील हो सैलानियों को आकर्षित करता है। चम्बल नदी के किनारे ऊंचाई पर बना यह किला जल दुर्ग का बेहतरीन उदहारण है। इसके समीप ही ब्राह्मणी नदी भी बहती है। यह किला राजस्थान का वेल्लोर के नाम से मशहूर है। यह एक आबाद किला है और आज भी करीब पांच हज़ार की आबादी यहाँ निवास करती हैं। किले से नदी का सम्पूर्ण दृश्य न्याभिराम लगता है। कहा जाता है यहां महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह की छतरी चंबल-ब्राह्मणी नदी के संगम पर बनी हैं जिसे पंच देवला कहते हैं। बताया जाता है कि सन1857 की क्रांति के समय कोटा की सेना ने बगावत कर दी थी तब भैंसरोडगढ़ के रावत ने कोटा महाराव की मदद के लिए सेना भिजवाई थी। इसके बाद महाराव रामसिंह द्वितीय ने रावत अमरसिंह से पगड़ी की अदला-बदली कर दोस्ती कायम की थी। राव और रावत जब भी मिलते थे गले मिलते थे।
भैंसरोडगढ़ के किले को अभेद्य दुर्गों में गिना जाता हैं इसकी स्थापना दूसरी सदी पूर्व मानी जाती हैं। चम्बल तथा बामनी नदियों के मध्य में बसा यह किला देखने में बेहद मनोहारी और आकर्षक हैं। इस किले में गणेश, माताजी, दो विष्णु मंदिर और चार मंदिर शिव जी के मन्दिर बने हुए हैं। करीब 267 वर्ष पुराने किले का निर्माण रावत लाल सिंह द्वारा 1741 ई. में करवाया था। मेवाड़ के सिसोदिया राजपूतों के चूंडावत क्लान के लिये भैंसरोडगढ़ का विशेष महत्व था। मेवाड़ के महाराणा जगत सिंह द्वितीय द्वारा राव लाल सिंह को भैंसरोड़गढ़ एक जागीर (जागीर) के रूप में प्रदान किया गया था।
किले की बाहरी दीवारों का निर्माण विशाल ग्रेनाइट के शिलाखण्डों से हुआ, जिसको चारों ओर से गहरी खाई घेरे हुए है। खाई में भरने के लिये जल की आपूर्ति सूर्यगुंटा जलाशय द्वारा की जाती है और यह दोहरी दीवारों से दृढ़ है। वर्तमान में यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन संरक्षित है। यह किला अब पूर्ववर्ती शाही परिवार द्वारा संचालित एक लक्जरी विरासत होटल में परिवर्तित हो गया है और दुनिया भर के पर्यटकों के लिए एक बहुत ही लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यह हेरिटेज होटल भारत के सर्वश्रेष्ठ हेरिटेज होटल में एक है।
चूलिया झरना
रावतभाटा, राजस्थान के राणा प्रताप बाँध में चंबल नदी के रास्ते में मौजूद चूलिया झरना राजस्थान के मुख्य झरनो में से एक है। चंबल में कुंड पठार के माध्यम से प्रवाह होता है और राणा प्रताप सागर बांध के डाउन स्ट्रीम में 1.6.कि.मी दूरी पर है । यह झरना बड़ी बड़ी चट्टानो से घिरा हुआ है और जमीन से काफी नीचे है । बारिश में यहा पर काफी पर्यटक आते हैं।
पाड़ाझर झरना
समीप ही पाड़ाझर गांव में पाड़ाझर का झरना है। यहांाँ गुफाओं की गुफा में भूमिगत जल मूर्तियों और मूर्तियों को बनाए हुए है। यह जगह भगवान शिव के ऐतिहासिक गुफा मंदिर के लिए भी जाना जाता है। महाशिवरात्रि के दौरान यहां एक बड़े त्योहार का आयोजन किया जाता है। पानी के नीचे और आसपास के हरे रंग लोगों के लिए आकर्षण है।यह एक खूबसूरत पिकनिक स्पॉट है।
वन्यजीव अभयारण्य
चम्बल के किनारे अरावली पर्वत की गोद में भैंसरोडगढ़ वन्य जीव अभयारण्य चित्तौड़गढ़ जिले में प्रकृति एवं वन्यजीवों को देखने का खूबसूरत स्थल है। यह चित्तौड़गढ़ से 125 किमी. एवं कोटा से 50 किमी. की दूरी पर है। दोनों ही जगहों से बस अथवा टेक्सी से आसानी से पहुँचा जा सकता है। यह अभयारण्य भारत के प्रमुख अभयारण्यों में माना जाता है जिसकी घोषणा 1983 ई. में की गई थी। यह स्थल प्रकृति प्रेमियों एवं फोटोग्राफर्स के लिए पूर्ण आकर्षण लिए हुए है। यह अभयारण्य 229.14 वर्ग क्षेत्रफल में स्थित है। अभयारण्य में बबूल, बेर, सालर, खीरनी आदि वनस्पति पाई जाती हैं। यहाँ वन्य जीवों को विचरण करते देखना रोमांचित करता है।
यहां पैंथर,सियार, जरख,खरगोश , जंगली बिल्ली, लोमड़ी,भेड़िया,भालू, बिज्जू,चीतल,सांभर,नीलगाय, चिंकारा,उड़न गिलहरी,जंगली सुअर,गिद्द, जंगली मुर्गी,मगरमच्छ,कला मुह का बंदर,नेवला,सर्प, आदि वन्यजीव एवं मोर,सारस, विभिन्न प्रकार की चिड़ियाएं पक्षी पाए जाते हैं। वन्यजीव गणना 2018 में इस बार पिछले साल से लगभग 8 प्रतिशत वन्यजीव ज्यादा पाए गए हैं। पिछले साल जहां 2731 वन्यजीव गणना में पाए गए थे वहीं इस बार 2 हजार 948 वन्यजीव देखे गए। इस बार 10 पैंथर 2 सेटलडैम में दो, 3 लुहारिया में , 3 गणेशपुरा में , 2 आगरा में नजर आए, जबकि पिछले साल 11 पैंथर नजर आए थे। सियार भी इस बार 160 ही नजर आए, जबकि पिछले साल 166 नजर आए थे। इसमें 67 सेटलडैम में 28 लुहारिया, 38 गणेशपुरा में , 27 आगरा में सियार देखे गए। वहीं जरख 10 प्रतिशत अधिक पाए गए। जरख की संख्या पिछले वर्ष के समान 35 ही पाई गई। अभयारण्य को देखने के लिए प्रातः काल प्रवेश करना उपयुक्त रहता है जिससे पूरे दिन वन्य जीवों और प्रकृति का भरपूर आनंद लिया जा सके।
बाड़ोली के मंदिर
रावतभाटा के भैंसरोडगढ़ किले के साथ-साथ समीप ही प्राचीन बाड़ोली के मंदिरों को देखने के लिए बरसात के मौसम में सैलानियों का तांता लगा रहा रहता हैं । फ्रांस, जर्मनी, अमरीका, स्वीडन, इग्लैंड और अफ्रीकी देशों से पर्यटक राजस्थान के इस ऐतिहासिक किले की स्थापत्य कला,बाड़ोली के मंदिर और प्राकृतिक सौन्दर्य का नजारा देखने आते हैं।
चम्बल नदी के समीप बाड़ोली के मंदिर रावतभाटा शहर के बाड़ौली गांव में स्थित है। आठ मंदिरों का समूह एक दीवार के भीतर स्थित है। एक अतिरिक्त मंदिर लगभग 1 किलोमीटर (0.62 मील) दूर है। घटेश्वर महादेव मंदिर सहित चार मंंदिर शिव को समर्पित हैं , दो दुर्गा और एक-एक शिव-त्रिमूर्ति एवं एक विष्णुनंद गणेश को ।समर्पित है। मंदिर वास्तुकला की गुर्जर प्रतिहार शैली में बने हैं। सभी नौ मंदिर संरक्षण और संरक्षण के लिए भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधीन हैं। राजस्थान के सबसे पुराने मंदिर परिसरों में से एक है । ये मंदिर महान वास्तुकलात्मक रूचि के हैं, जिसकी नक्काशी,मूर्ति कला दर्शनीय है। इसके साथ ही अनेक धार्मिक मंदिर भी दर्शनीय हैं।
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं कोटा में रहते हैं व पर्यटन, कला संस्कृति आदि विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैंं)