2 साल पहले स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के मानव विज्ञानी या मनुष्य जाति के विज्ञान के विशेषज्ञ थामस ब्लॉग हांसेन्न ने अध्ययन करके बताया कि” हिंसा भारत के सार्वजनिक जीवन एवं नागरिक समाज के केंद्रीय भूमिका में है ” प्रोफ़ेसर ब्लोम हांसेन्न ने ने 2021 में एक किताब लिखा था – ‘ द लॉ ऑफ़ फोर्स: द वॉयलेन्ट हार्ट ऑफ़ इंडियन पॉलिटिक्स ‘ (the law of force:the violent heart of indian politics) इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि ” नागरिकों के हिंसक होती प्रवृत्ति एक गहरी समस्या और विकृति का संदेश देता है.यह लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरा पैदा कर सकता है”।
अमेरिका के राजनीति विज्ञान के दो प्रोफ़ेसरों डॉ अमित आहूजा और डॉक्टर देवेश कपूर ने प्रोफेसर ब्लोम हांसेन्न के आंकड़े से सहमत नहीं दिखते हैं। इन दोनों ने अपनी आने वाली किताब’ इंटरनल सिक्योरिटी इन इंडिया वायलेंस ,ऑर्डर एंड स्टेट (internal security in india- Violence,order and the state)में यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि भारत में हिंसा की बड़ी घटनाओं में कमी आई है। अपने इस आकलन को थोड़ा और स्पष्ट करते हुए उनका कहना है कि” अगर हिंसा के अलग-अलग प्रकारों को देखें तो हिंसा निजी हो या सार्वजनिक वर्ष 2004 से 2009 की तुलना में वर्ष 2014 से अब तक काफी कम हुई है।”
प्रोफेसर आहूजा कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (California university)और प्रोफेसर कपूर जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय(john Hapkins university) में कार्यरत हैं। इन दोनों समाज वैज्ञानिकों ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सार्वजनिक हिंसा से जुड़ी रिकॉर्ड( प्रलेख) एवं सरकारी फाइलों का शल्य चिकित्सा किया, दंगे से लेकर चुनावी हिंसा तक, धार्मिक हिंसा, जातीय हिंसा, नस्ली हिंसा तक, उग्रवाद, आतंकवाद, राजनीतिक हत्याओं और हाईजैक की फाइलों का अध्ययन(वानगी अध्ययन) करके पाया है कि भारत में हिंसात्मक गतिविधियों में कमी दर्ज की गई है; और 2014 के बाद हिंसक घटनाओं में जबरदस्त कमी दर्ज की गई है। इन आंकड़ों को पुख्ता सिद्ध करने के लिए गुणात्मक एवं मात्रात्मक शोध के पश्चात प्राप्त निष्कर्षों से तथ्य सामने आए हैं:-
1983 के अवैध बांग्लादेशियों के नरसंहार, 1984 के दिल्ली के सिख दंगे एवं 2002 के गुजरात दंगों में नियंत्रण स्थापित किया गया हैं। 2014 से 2022 में दंगों की घटनाओं पर काफी नियंत्रण किया जा चुका है;2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर दंगे और 2020 में दिल्ली दंगे हुए लेकिन शासन, सरकार एवं प्रशासन की सक्रियता से बहुत जल्द नियंत्रण स्थापित कर लिया गया। इन दोनों दंगों में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या 90 थी; लेकिन ऐसी हिंसा भड़काने वाले आज भी सक्रिय हैं और उन्हीं जगहों पर भूमिगत है जहां वो पहले हुआ करते थे।(स्रोत: फ्रंटलाइन); 2020 के वैश्विक आतंकवादी सूचकांक के मुताबिक भारत में 2001 के बाद आतंकी हमलों में 8749 लोगों की मौत हुई थी; लेकिन इन आतंकी हमलों की तादाद में 2018 के बाद बहुत मात्रा में कमी आई है; 31 अक्टूबर, 2019 के बाद कश्मीर में भी दंगे, हिंसा और पत्थरबाजी की घटनाओं पर नियंत्रण हुआ है। भारत में 2000 से 2010 तक 71 आतंकी घटनाएं हुई हैं ;जबकि 2010 से 2022 तक के बीच 75 % गिरावट दर्ज की गई है। इस दौरान आतंकी हमलों की तादाद 21 दर्ज की गई है. लेकिन इन घटनाओं में तुलनात्मक रूप से काफी कमी दर्ज की गई है।
धर्म के आधार पर भारत में अब तक की सबसे बड़ी हिंसात्मक त्रासदी 1947 में देश के बंटवारे के दौरान हुई थी, इसमें 10लाख लोग मारे गए एवं एक करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए थे। अब इस प्रकार की घटनाओं पर सरकार के मजबूत नियंत्रण है। इसके अतिरिक्त हिंदू – मुसलमान दंगे ,खासतौर पर 1970 से लेकर 2002 के बीच बेहद भयानक हुए। 2002 का गुजरात दंगा भी इसी दौर में हुआ था, लेकिन सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि इसके बाद हुए दंगों की संख्या स्थिर है एवं दंगों में मरने वालों की संख्या भी एक % है। दिसंबर 2022 में सरकार ने संसद में बताया था कि 2017 से 2022 के बीच पूरे देश में दंगों के 2900 मामले दर्ज हुए ।इस तथ्यों एवं आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में कानून एवं व्यवस्था की बेहतर स्थिति है।
इन स्थितियों में सुधार के संकेत 2014 से 2022 के बीच दिखने लगे हैं ।वर्तमान में इनमें सुधार बहुत ज्यादा है। चुनावी हिंसा और बड़ी राजनीतिक हत्याओं के पैमाने पर भी हिंसा में गिरावट साफ देखी जा सकती हैं। 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी और 1991 में श्री राजीव गांधी भारत के दो प्रधानमंत्रियों की हत्या कर दी गई थी; लेकिन 2014 से 2022 तक अति विशिष्ट व्यक्तित्व(VVIP) व विशिष्ट व्यक्तित्व (VIP)के हत्या 0 हैं।
इसी प्रकार चुनावी हिंसा में भी बड़ी गिरावट आप देख सकते हैं ,1989 से 2020 तक पोलिंग स्टेशनों पर हिंसा में 28% की गिरावट दर्ज हुई है, जबकि इसी दौर में चुनावी हिंसा में मारे गए लोगों की संख्या 70% तक कम हुई है ।2014 से 2022 तक के चुनाव के दौरान पोलिंग स्टेशन पर हिंसा1% रही है एवं इन हिंसा में मारे गए लोगों की संख्या बहुत कम है ।एक गिरावट उल्लेखनीय है कि 30 वर्षों के अंतराल में वोटरों, उम्मीदवारों और पोलिंग स्टेशनों में बढ़ोतरी के साथ चुनावी प्रतिस्पर्धा भी कई गुना बढ़ चुकी है। चुनावी कार्यक्रमों में मजबूत प्रशिक्षण 2014 के बाद स्मार्ट पुलिसिंग के कारण बड़ी हैं।
प्लेन हाईजैक का तथ्य है कि 1970 से लेकर 1990 के दशक तक कुल 5 यात्री जहाजों को हाईजैक किया गया ।विमान हाईजैक की आखिरी घटना दिसंबर, 1999 में हुई थी जब 180 यात्रियों के साथ काठमांडू से दिल्ली आ रहे इंडियन एयरलाइंस के विमान को बंधक बना लिया गया था। इसके बाद से आज तक प्लेन हाईजैक की कोई वारदात नहीं हुई है ।2014 से 2022 तक आंकड़े बताते हैं कि प्लेन हाईजैक की संख्या 0 रही है। पिछले दशक में देश के अलग-अलग हिस्सों में उग्रवाद की 4 घटनाएं सामने आई हैं ,पंजाब में 1980 के दशक से लेकर 1990 के शुरुआती वर्षों तक जारी चरमपंथ की वजह से लगभग 20हज़ार लोगों की मृत्यु हुई है, लेकिन एनडीए सरकार में उग्रवाद, चरमपंथ की घटनाओं पर बहुत नियंत्रण हो चुका हैं।
(लेखक सहायक आचार्य हैं)