बात चाहे भावी विद्यार्थियों की हो या जीवनपर्यंत सीखने वालों की, मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज़ (मूक) ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अभूतपूर्व पहुंच उपलब्ध कराई है।
अलग-अलग कारणों से लाखों लोग मूक पाठ्यक्रमों का उपयोग करते हैं। इनमें कॉलेज की तैयारी, कॅरियर में आगे बढ़ना,
कॅरियर बदलना, अतिरिक्त शिक्षा और जीवनपर्यंत सीखते रहने की इच्छा जैसे उद्देश्य शामिल हैं।
(ma_rish/आईस्टॉक/गेटी इमेजेज)
पारंपरिक कक्षाओं में विद्यार्थियों का एक सीमित संख्या में ही पंजीकरण हो सकता है, लेकिन दुनिया में लाखों-लाख ऐसे जिज्ञासु हैं जो गुणवत्तापूर्ण पाठ्यसामग्री, कौशल विकास और नए विषय क्षेत्रों में संभावनाओं की तलाश के लिए दूसरे विकल्पों की तरफ देख रहे हैं।
कोर्सेरा में भारत और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के प्रबंध निदेशक राघव गुप्ता के अनुसार, ‘‘हाल के रुझानों से जाहिर होता है कि भारतीय शिक्षार्थी डिजिटल अर्थव्यवस्था और भविष्य में भी प्रासंगिक बने रहने वाले कौशल की आवश्यकता के महत्व को पहचान रहे हैं।’’ इसके अलावा, कोर्सेरा ने यह भी पाया कि पेशेवर प्रमाणपत्र देने वाले पाठ्यक्रमों के प्रति भी रुझान बढ़ रहा है। गुप्ता के अनुसार, ‘‘इन पाठ्यक्रमों की रूपरेखा ऐसी रखी जाती है जिसमें शिक्षार्थी को बिना किसी कॉलेज डिग्री या तकनीकी अनुभव के उन डिजिटल रोजगारों के लिए तैयार किया जा सके जिनकी खूब मांग है।’’
कोर्सेरा को स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेस एंड्रू एनजी और डाफनी कोलर ने 2012 में शुरू किया था और यह बड़े पैमाने पर मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज़ (मूक) को उपलब्ध कराने वाला मंच है। लाखों लोग मूक का इस्तेमाल भिन्न-भिन्न कारणों से करते हैं जिसमें, ऐसे शिक्षार्थी शामिल हैं जो या तो कॉलेज के लिए तैयारी कर रहे हैं, कॅरियर विकास के रास्ते तलाश रहे हैं, या फिर वे कॅरियर में बदलाव चाहते हैं, पूरक अध्ययन करना चाहते हैं या जीवन भर सीखते रहने या प्रशिक्षण की सोच रखते हैं।
नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में पब्लिक इंगेजमेंट स्पेशलिस्ट सुपर्णा मुखर्जी के अनुसार, ‘‘कोर्सेरा पर मिशिगन यूनिवर्सिटी के मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्स ‘‘फैंटेसी एंड साइंस फिक्शन: द ह्यूमन माइंड, ऑवर मॉडर्न वर्ल्ड’’ में मेरा लगाव साइंस फिक्शन और आधुनिक दुनिया की कार्यशैली को में एकसाथ देखने को मिला। इससे मुझे कई महान साहित्यिक कृतियों के विश्लेषण और विश्व के विकास में उनके सांस्कृतिक और भौतिक योगदान के महत्व को तलाशने का मौका मिला- और यह सब मेरे अपने निजी उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए संभव हो सका।’’
पाठ्यक्रम में मिश्रित सामग्री थी, जिसमें पाठ्यसामग्री के वीडियो और प्रीरिकॉर्डेड रिफ्रेशर्स, लिखित असाइनमेंट, दूसरे प्रतिभागियों द्वारा लिखी सामग्री को पढ़ने और उस पर टिप्पणी करने के फोरम और स्वैच्छिक बहु विकल्प गतिविधियां शामिल थीं। वह बताती हैं, ‘‘हालांकि मैं जब साहित्यिक इतिहास, मनोविज्ञान और संस्कृति के अध्ययन में नियमित तौर पर कई ह़फ्तों तक तल्लीन थी, तो मैंने इस दौरान दुनिया भर में अपने सहप्रतिभागियों के साथ प्रगाढ़ रिश्तों को कायम किया। मूक से अमेरिकी विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान किए जाने वाले पाठ्यक्रमों के अद्भुत विकल्पों और एक संवादी समूह के निर्माण में उनकी सहायता की एक झलक भी देखने को मिलती है।’’
अधिकतर मूक पाठ्यक्रम विश्वविद्यालयों द्वारा तैयार किए गए हैं। शुरुआती दौर में और सबसे ज्यादा सक्रिय मूक पाठ्यक्रम बनाने वाले संस्थानों में स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी, मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) और हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी शामिल हैं। हालांकि विश्वविद्यालय मूक पाठ्यक्रमों का खुद डिस्ट्रीब्यूशन कम ही संभालते हैं। इसक बजाय वे ऑनलाइन ऑडियंस को पाठ्यक्रम देने के लिए कोर्सेरा और एडएक्स जैसे लर्निंग प्लेटफॉर्म्स की मदद लेते हैं। 2015 में, पहली बार, शिक्षार्थियों ने मूक पाठ्यक्रमों के लिए एडएक्स पर कॉलेज क्रेडिट हासिल किए। कोर्सेरा और एडएक्स दोनों ने ही मूक पाठ्यक्रमों की संख्या को बढ़ाने के लिए उन सहयोगी विश्वविद्यालयों के साथ तालमेल के दायरे को बढ़ाने का काम किया है जो कॉलेज डिग्री प्रोग्राम में उसके क्रेडिट स्वीकार करते हैं।
ऑनलाइन शिक्षा और सहभागियों के साथ संवाद के अवसर ने मूक को न सिर्फ पेशेवर विकास का बल्कि वैयक्तिक विकास का भी एक मंच बना दिया है। नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में पब्लिक डिप्लोमेसी टीम की सदस्य सेंटीरेनला आसुंग के अनुसार, ‘‘मुझे मूक सुगम और सुवनिधाजनक स्थान लगता है। मुझे जिस पाठ्यक्रम को पूरा करने में आनंद आया, वह था ‘‘अंतरराष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य और मानवाधिकार’’ जो स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी का कोर्स था। हालांकि यह ऑनलाइन था लेकिन मेरे पास अपने सहपाठियों से लिखित रूप में चर्चा करने का अवसर था और यही इसका सबसे दिलचस्प पहलू था। इस पाठ्यक्रम से मेरी जागरूकता बढ़ी और इससे मुझे महिला अधिकारों और खुद की बेहतर पक्षधर बनने में मदद मिली।
तेज़ी से बढ़ोतरी
कोविड-19 महामारी के दौरान मूक के विकास का एक बड़ा दौर आया, इससे डिजिटल रूपांतरण में गति आई और इसने लोगों के सीखने और काम करने के तरीकों को बदल कर रख दिया।
गुप्ता के अनुसार, ‘‘भारत में, हमने जनवरी 2020 से 1 करोड़ 40 लाख नए शिक्षार्थियों को जोड़ा है, वैश्विक दृष्टि से नए शिक्षार्थियों के मामले में यह सबसे बड़ी संख्या है। इनमें महिला शिक्षार्थियों की संख्या का बढ़ना एक उत्साहवर्धक रुझान है। 2022 में, भारत में नए शिक्षार्थियों में 44 प्रतिशत महिलाएं थीं जो 2019 के 37 प्रतिशत से ज्यादा है।’’
एडएक्स में भारत और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के ग्रुप हेड अमित गोयल के अनुसार, ‘‘दुनिया भर से हजारों शिक्षार्थी, शिक्षक और कंपनियां एडएक्स डॉट ओआरजी पर आए और हमारे नेटवर्क ने मिलकर उन्हें आपस में संपर्क में बने रहने, आगे बढ़ने और पढ़ाई करने में सहायता दी। हमने 10 गुना अधिक नए पंजीकृत शिक्षार्थियों का स्वागत किया और पाठ्यक्रम पंजीकरण में 15 गुना अधिक बढ़ोतरी देखी।’’
एडएक्स की स्थापना 2012 में हुई थी, जब एमआईटी के प्रोफेसर अनंत अग्रवाल और एमआईटी और हॉर्वर्ड के उनके सहयोगियों ने मिलकर प्रायोगिक तौर पर एक ऐसे प्लेटफॉर्म की परिकल्पना की जो अपने पाठ्यक्रमों को ऑनलाइन उपलब्ध करा सके और यह किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध हो, और वह भी मु़फ्त में। इस प्लेटफॉर्म पर प्रोफेसर अग्रवाल ने सर्किट और इलेक्ट्रॉनिक्स विषय पर एडएक्स पर पहला पाठ्यक्रम पढ़ाया, जिसमें 162 देशों के 155,000 शिक्षार्थियों ने हिस्सा लिया। एडएक्स अब दुनिया भर में ढेर सारे विषयों पर ऑनलाइन विश्वविद्यालय स्तरीय शिक्षा की मेजबानी करता है, जिसमें से कुछ पाठ्यक्रम तो मु़फ्त में उपलब्ध हैं। 4 करोड़ 10 लाख से ज्यादा शिक्षार्थियों और 160 से अधिक सहयोगी संस्थानों के माध्यम से एडएक्स उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुंच को विस्तार देने के काम में जुटा है।
नवंबर 2022 में, एडएक्स ने ऑनलाइन शिक्षा देने वाले दूसरे सेवाप्रदाता एमेरिटस के साथ गठबंधन की घोषणा की। इसके तहत भारत, दक्षिण अमेरिका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लाखों एडक्क्स शिक्षार्थियों की पहुंच विशेष चुनिंदा पाठ्यक्रमों तक बन जाएगी। अमेरिका के बाद पंजीकृत यूज़र्स के मामले में एडएक्स के लिए भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है।
भारत में 1100 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों ने अपने ग्रेजुएट की रोज़गार संभावनाओं को बढ़ाने, शिक्षा-उद्योग की खाई को पाटने और शिक्षकों के कौशल सुधार में कोर्सेरा प्लेटफॉर्म का फायदा उठाया है।
गुप्ता के अनुसार, ‘‘ऑनलाइन शिक्षा पर सरकार के जोर देने और किसी भी श्रेणी में 40 प्रतिशत क्रेडिट कोर्सेरा जैसे प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से देने की अनुमति से हम इसे लेकर बेहद उत्साहित हैं और इसे पूरे देश एवं और अधिक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में प्रसारित करने की कोशिश में लगे हैं ताकि भारत में और अधिक प्रतिस्पर्धी एवं युवा कार्यबल को तैयार किया जा सके।’’ उनका कहना है, ‘‘उच्च गुणवत्ता वाली मिश्रित शिक्षा के विकल्प के माध्यम से संस्थान अपने विद्यार्थियों को उन कौशलों से युक्त करने में सक्षम बनेंगे जिनकी खूब मांग है और साथ ही वे अच्छी कमाई वाली नौकरियों के लिए नए रास्तों की तलाश में भी उनके मददगार बन सकेंगे।’’
जैसन चियांग स्वतंत्र लेखक हैं। वह सिल्वर लेक, लॉस एंजिलीस में रहते हैं।
साभार- https://spanmag.com/hi/ से