Tuesday, November 26, 2024
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नारायण जगन्नाथ, नर से मिलने के लिए आगामी 20जून,2023 को रथयात्रा करेंगे

श्रीजगन्नाथ पुरी धाम में नारायण जगन्नाथ नर से मिलने के लिए अपनी विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 20जून,2023 को अर्थात् आगामी आषाढ शुक्ल द्वितीया को करेंगे।भगवान जगन्नाथ की उस रथयात्रा को घोषयात्रा,गुण्डीचा यात्रा,पतितपावन यात्रा,जनकपुरी यात्रा,नवदिवसीय यात्रा तथा दशावतार यात्रा भी कहते हैं।यह रथयात्रा वास्तव में एक सांस्कृतिक महोत्सव होती है क्योंकि भगवान जगन्नाथ स्वयं में विश्व मानवता के केन्द्र विंदु हैं, विश्व मानवता के स्वामी हैं,विश्व मानवता के प्राण हैं जो अपने आपमें सौर, वैष्णव, शैव, शाक्त,गाणपत्य़,बौद्ध और जैन धर्मों के साथ-साथ सभी सम्प्रदायों के जीवंत समाहार विग्रह स्वरुप हैं। भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा वास्तव में भगवान जगन्नाथ के प्रति वास्तविक भक्ति,प्रेम,करुणा,श्रद्धा,विश्वास तथा आत्म अहंकार के त्याग आदि का दिव्य जीवन मूल्यों का एक अनूठा सांस्कृतिक महोत्सव है जिसके दर्शन मात्र से मानव-जीवन सफल हो जाता है।

रथयात्रा भारतीय आत्मचेतना का शाश्वत प्रतीक है जो अनादिकाल से पुरी धाम में अनुष्ठित होते चली आ रही है। जो जगन्नाथ भक्त पुरी धाम आ चुके हैं वे जानते हैं कि श्रीमंदिर के सिंहद्वार के ठीक सामने श्रीमंदिर के दशावतार रुप के मध्य में अष्टलक्ष्मी विराजमान हैं जिनके रथयात्रा के दिन मात्र दर्शन से ही भक्त को अर्थ,धर्म,काम और मोक्ष ,सबकुछ प्राप्त हो जाता है। भगवान जगन्नाथ भक्तों की अटूट आस्था एवं विश्वास के देवता हैं जिनके रथयात्रा के दिन रथारुढ रुप को देखकर शांति,एकता तथा मैत्री का पावन संदेश मिलता है। पुरी एक धर्मकानन है जहां पर विद्यापति,आदिशंकराचार्य, चैतन्य, रामानुजाचार्य, जयदेव,नानक,कबीर और तुलसी जैसे अनेक संत पधारे और भगवान जगन्नाथ की अलौकिक महिमा को स्वीकारकर उनके अनन्यभक्त बन गये।

2023 की रथयात्रा आगामी 20जून को है। पद्मपुराण के अनुसार आषाढ माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि सभी कार्यों के लिए सिद्धियात्री होती है।इस वर्ष अक्षय तृतीया के दिन अर्थात् 23अप्रैल से रथनिर्माण का पवित्र कार्य आरंभ हो चुका है।अक्षय तृतीया के दिन से ही भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा भी पुरी के चंदन तालाब में आरंभ हो चुकी है।इस वर्ष 04जून को देवस्नानपूर्णिमा है। देवस्नानपूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को 35 स्वर्ण कलश शीतल जल से,उनके बडे भाई बलभद्रजी को 33 स्वर्णकलश से,22स्वर्ण कलश से जगन्नाथजी की लाडली बहन सुभद्राजी को तथा 18 स्वर्ण कलश शीतल जल से सुदर्शनजी को श्रीमंदिर के स्नानमण्डप पर मलमलकर नहलाया जाएगा।

भगवान जगन्नाथ को उनके गाणपत्य भक्त विनायक भट्ट की इच्छानुसार उन्हें गजानन वेष में सजाया जाएगा जिसे भगवान जगन्नाथ के जन्मोत्सव के रुप में बडदाण्ड से लाखों भक्त देखेंगे।महास्नान करने के उपरांत चतुर्धादेव विग्रह बीमार पड जाएंगे और उनको श्रीमंदिर के उनके बीमारकक्ष में ले जाकर एकांत में उनका आयुर्वेदसम्मत उपचार किया जाएगा। श्री मंदिर का मुख्य कपाट भक्तों के दर्शन न करने के लिए बन्द कर दिया जाएगा। उस दौरान पुरी आनेवाले जगन्नाथ भक्त अगले 15 दिनों के लिए पुरी से लगभग 23 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित ब्रह्मगिरि में भगवान अलारनाथ के रुप में करेंगे।

2023 की रथयात्रा के दिन अर्थात् 20जून को भोर में श्रीमंदिर के रत्नवेदी से चतुर्धादेव विग्रहों को एक-एककर पहण्डी विजय कराकर उनके अलग-अलग रथों पर आरुढ किया जाएगा। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदिघोष रथ है जिसपर उनको आरुढ किया जाएगा। बलभद्रजी के रथ का नाम तालध्वजरथ है ,उस रथ पर उनको आरुढ किया जाएगा तथा देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन रथ है जिसपर देवी सुभद्राजी और सुदर्शन जी को आरुढ किया जाएगा। रथयात्रा के दिन सबसे आगे रथयात्रा पर तालध्वज रथ चलेगा। उसके बाद देवदलन रथ तथा सबसे आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ नंदिघोष रथ। प्रतिवर्ष तीनों नये रथ बनाये जाते हैं और पुराने रथों को तोड दिया जाता है। रथों पर प्रतिवर्ष लगनेवाले पार्श्वदेवगण आदि नये बनते हैं। ऋग्वेद तथा यजुर्वेद में रथ के उपयोग का वर्णन मिलता है।

प्रतिवर्ष रथ निर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का पवित्र कार्य़ वसंतपंचमी से आरंभ होता है।काष्ठसंग्रह दशपल्ला के जंगलों से प्रायः होता है। रथनिर्माण का कार्य वंशपरम्परानुसार भोईसेवायतगण अर्थात् श्रीमंदिर से जुडे वंशानुगत बढईगण ही करते हैं। इनको पारिश्रमिक के रुप में पहले जागीर दी जाती थी लेकिन जागीर प्रथा समाप्त होने के बाद उन्हें अब श्रीमंदिर की ओर से पारिश्रमिक दिया जाता है। रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के सेवायतगण सहयोग करते हैं। जिस प्रकार पांच तत्वों को योग से मानव शरीर का निर्माण हुआ है ठीक उसी प्रकार से पांच तत्वःकाष्ठ,धातु,रंग,परिधान तथा सजावटी सामग्रियों के योग से रथों का निर्माण होता है ।

रथनिर्माण का कार्य पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्यसिंहदेवजी के राजमहल श्रीनाहर के ठीक सामने रखखल्ला में होता है। रथयात्रा के एक दिन पूर्व आषाढ शुक्ल प्रतिपदा के दिन तीनों रथों को खीचकर लाकर श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने उत्तर दिशा की ओर मुंह करके खडा कर दिया जाता है। रथयात्रा के दिन तीनों रथों को इसप्रकार सूक्ष्म कोण से अगल-बगल ऐसे खडा किया जाता है कि रथों के रस्सों को खीचने में बडदाण्ड अर्थात् श्रीमंदिर के सिंहद्वार के ठीक सामने की चौडी और बडी सडक के बीचोंबीच ही तीनों रथ चलें। रथ-संचालन के लिए झण्डियों को हिला-हिलाकर निर्देश दिया जाता है। रथयात्रा तो कहने के लिए मात्र एक दिन की होती है लेकिन सच तो यह है कि यह सांस्कृतिक महोत्सव वैशाख मास की अक्षय तृतीया से आरंभ होकर आषाढ माह की त्रयोदशी तिथि तक चलता है। प्रतिवर्ष वसंत पंचमी से रथ-निर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का कार्य आरंभ हो जाता है।

रथयात्रा के दिन देवविग्रहों को जिस प्रकार से आत्मीयता के साथ सेवायतगण कंधे से कंधा मिलाकर एक-एक पग आगे बढाते हुए पहण्डी विजय कराकर लाते हैं और उनको रथारुढ करते हैं वह सचमुच अलौकिक दृश्य होता है।उस वक्त का पहण्डी के आगे-आगे परम्परागात बनाटी प्रदर्शन,गोटपुअ नृत्य,ओडिशी नृत्यप्रदर्शन,रंगोली आदि की सजावट देखते ही बनती है। चतुर्धादेवविग्रहों को रथारुढ कराने के उपरांत पुरी गोवर्धन मठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग अपने परिकरों के साथ आकर तीनों रथों पर एक-एककर जाकर चतुर्द्धा देवविग्रहों को अपना आत्मनिवेदन अर्पित करते हैं। उसके उपरांत जगन्नाथ जी के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्यसिंहदेवजी अपने राजमहल श्रीनाहर से पालकी में सवार होकर आते हैं और तीनों रथों पर चंदनमिश्रित जल छीडकर छेरापंहरा का अपना पवित्र दावित्व निभाते हैं।

रथों को उनके घोडों तथा सारथी के साथ जोडा जाता है। “ जय जगन्नाथ“के जयघोष के साथ रथयात्रा आरंभ होती है। रथ खीचते समय रस्से दो प्रकार के उपयोग में लाये जाते हैं। एक सीधे रस्से तथा दूसरे घुमामवदार रस्से। तीनों रथों में चार-चार रस्से लगे होते हैं जिनको विभिन्न चक्कों के अक्ष से विशेष प्रणाली से लपेटकर और गांठ डालकर बांधा जाता है। गुण्डीचा मंदिर जाने के रास्ते में भगवान जगन्नाथ रास्ते में अपनी मौसी के हाथों से बना पूडपीठा ग्रहण करते हैं। वे सात दिनों तक गुण्डीचा मंदिर में विश्राम करते हैं।भगवान जगन्नाथ इस वर्ष 28जून को बाहुडा विजय कर श्रीमंदिर वापस सिंहद्वार लौटेंगे जहां पर उनका सोना वेष दर्शन होगा। उनका अधरपणा होगा तथा पहली जुलाई को वे नीलाद्रि विजय कर अपने श्री मंदिर के रत्नवेदी पर रथारुढ होंगे।

सच कहा जाय तो भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा समस्त जगन्नाथ भक्तों के समस्त मानवीय विकारों को दूर करने के लिए अनुष्ठित होती है साथ ही साथ यह आध्यात्मिक यात्रा जगन्नाथ भगवान के माध्यम से भक्तों के जीवन के शाश्वत मूल्यों को अपनाने की यात्रा होती है।रथयात्रा के दिन श्रीमंदिर में सबसे पहले मंगल आरती होती है।मयलम,तडपलागी,रोसडा भोग, अवकाश,सूर्यपूजा,द्वारपाल पूजा, शेष वेश, गोपालवल्लव भोग(खिचडी भोग) ,सकल धूप, सेनापटा लागी, पहण्डी, छेरापहंरा, घोडालागी और उसके उपरांत आरंभ होती रथयात्रा।जगन्नाथ जी की यह रथयात्रा समस्त जगन्नाथ भक्तों को शाश्वत व्यक्तिगत,पारिवारिक,सामाजिक,नैतिक तथा आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को अपनाने का वास्तविक संदेश देती है।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं तथा ओड़िशा की सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक व अध्यात्मिक गतिविधियों पर निरंतर लेखन करते हैं)

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