Friday, November 22, 2024
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आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और भारत की युवा शक्ति: एक हाई-टेक रिश्ता

भारत के लिहाज़ से देखें तो प्रौद्योगिकी से संचालित श्रम बाज़ारों में मांग-आपूर्ति के अनुकूल संतुलन पर पहुंचने के लिए कौशल कार्यक्रमों में रफ़्तार भरना निहायत ज़रूरी होगा.

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) की मज़बूत आमद और ओपन AI चैटबॉट ChatGPT के मौजूदा इस्तेमाल ने तमाम क्षेत्रों में खलबली मचा दी है. आग़ाज़ के महज़ दो महीनों के भीतर ही तकनीक की दुनिया के इस सबसे नए-नवेले शहंशाह ने तक़रीबन 10 करोड़ मासिक सक्रिय प्रयोगकर्ताओं (जनवरी 2023 में) का आंकड़ा छू लिया. श्रम को संवर्धित करने वाला ऐसा वैज्ञानिक नवाचार हमें 1956 के सोलो-स्वान मॉडल (बाहरी कारकों से संबंधित आर्थिक वृद्धि पर) की याद दिलाता है. इसी तरह आधुनिक युग का AI भी लंबे समय में तक़नीकी प्रगति और उत्पादकता वृद्धि की दर में रफ़्तार ला सकता है. उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार लाकर ऐसा मुमकिन हो सकता है. इससे प्रति व्यक्ति GDP की दर ऊंची हो जाती है. साथ ही अनुसंधान और विकास (R&D) में योगदान के ज़रिए नई प्रौद्योगिकियों का निर्माण कर उत्पादकता दरों को ऊंचा उठाया जा सकता है.

भारत की लगभग 52 प्रतिशत आबादी 30 साल की आयु से नीचे है. यहां इंटरनेट की पहुंच की दर 43 प्रतिशत है.

भारत की युवाशक्ति के लिए इसके मायने क्या हैं?
विश्व जनसंख्या समीक्षा (WPR) के आकलनों के मुताबिक मौजूदा साल दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप के लिए अहम साबित होने वाला है. जनवरी 2023 के मध्य तक भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया. 1.417 अरब की आबादी के साथ भारत ने 1.412 अरब की आबादी वाले देश चीन को पीछे छोड़ दिया. ऐसे में विशाल मानव संसाधनों (ख़ासतौर से युवा आबादी) के प्रभावी इस्तेमाल को लेकर भारत की क्षमताओं पर दुनियाभर का ध्यान गया है. अंतरराष्ट्रीय जगत ये जानना चाहता है कि क्या भारत अपनी युवा शक्ति के बूते अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देकर विश्व मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर उभर सकेगा. भारत की लगभग 52 प्रतिशत आबादी 30 साल की आयु से नीचे है. यहां इंटरनेट की पहुंच की दर 43 प्रतिशत है. ऐसे में भारत के पास चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) को आगे बढ़ाने की ज़बरदस्त संभावनाएं मौजूद हैं.

तक़नीकी दायरों (जैसे AI, डेटा सुरक्षा, डेटा प्रॉसेसिंग और हस्तांतरण, DNA एडिटिंग) में होने वाली उन्नति समूची अर्थव्यवस्था (ख़ासतौर से युवाओं) में उत्पादकता के पूरक के तौर पर काम करती है. इस क़वायद से राष्ट्रों की आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का कायाकल्प होता है. लिहाज़ा तात्कालिक तौर पर उन क्षेत्रों में निवेश किए जाने की दरकार है जिनसे युवाओं को लाभ हो और टिकाऊ सामाजिक-आर्थिक प्रगति मुमकिन हो सके. मानवीय पूंजी निवेश में स्वास्थ्य और शिक्षा, दो अनिवार्य तत्व हैं. इन क्षेत्रों में निवेश करके भारत एक कुशल और स्वस्थ श्रमबल तैयार कर सकता है. इस क़वायद से आर्थिक वृद्धि को रफ़्तार मिलेगी और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को भी बढ़ावा मिलेगा. ख़ासतौर से SDG 3 (अच्छी सेहत और बेहतरी) और SDG 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिए जाने की दरकार है.

युवा आबादी के पास शिक्षा हासिल करने के गतिशील अवसरों तक पहुंच होनी चाहिए. डिजिटल मोर्चे पर उभरते अवसरों को पूर्ण रूप से अपनाने के लिए बुनियादी और प्रमुख श्रम कौशलों में निवेश किए जाने की ज़रूरत है. सर्वप्रथम, 12 लाख छात्रों के स्कूल से बाहर रहते (ज़्यादातर शुरुआती स्तर पर) भारत में शिक्षा की गुणवत्ता एक अहम चुनौती बनी हुई है. व्यक्तिगत तौर पर शैक्षणिक अनुभव मुहैया कराकर AI इस मसले के निपटारे में मदद कर सकती है. इसी तरह चैटबॉट्स छात्रों को तत्काल फ़ीडबैक और मदद पहुंचा सकते हैं, जिससे छात्रों को ख़ुद की रफ़्तार से सीखने की सहूलियत मिल जाएगी. इसके साथ-साथ AI से संचालित अनुकूलित शैक्षणिक प्लेटफ़ॉर्म्स उन क्षेत्रों या विषयों की पहचान कर सकते हैं जिनमें छात्र जद्दोजहद कर रहे होते हैं. इसके बाद ऐसे छात्रों को लक्षित करके सहायता उपलब्ध करवाई जा सकती है.

दूसरा, भारत में (ख़ासतौर से ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में) चिकित्सकों और मरीज़ों के निम्न अनुपात से जुड़ी समस्या का निपटारा करके AI स्वास्थ्य के क्षेत्र में परिणामों में सुधार ला सकता है. इतना ही नहीं, AI से संचालित मेडिकल ऐप्लिकेशंस, समय रहते चिकित्सकीय जांच कर ज़रूरी इलाज की सलाह दे सकते हैं. मिसाल के तौर पर मुंबई स्थित स्टार्ट अप Qure.ai ने AI से संचालित मेडिकल इमेजिंग प्लेटफ़ॉर्म विकसित किया है. ये चिकित्सकीय प्रयोग के लिए ली जाने वाली तस्वीरों में ऊंची सटीकता के साथ गड़बड़ियों की पहचान कर सकता है. भारत में कोविड-19 महामारी के ख़िलाफ़ जंग में भी AI प्रौद्योगिकी ने अहम भूमिका निभाई है. कोविड के मामलों की शुरुआती पड़ताल करने, संपर्कों का पता लगाने, क्वारंटीन और सामाजिक दूरी से जुड़े नियम मनवाने के लिए इसका प्रयोग किया गया. इसके अलावा कोविड-19 की चपेट में आए मरीज़ों के इलाज और दूर से उनपर निगरानी रखने के साथ-साथ टीके और दवाओं के विकास में भी इसका प्रयोग किया गया.

AI से डरें या नहीं?
श्रम के भविष्य के संदर्भ में उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा पेश किए गए अवसर और चुनौतियां बेशुमार हैं. इसके मद्देनज़र कौशल निर्माण नीतियों को आकार देने और उनके क्रियान्वयन में सरकारों, कर्मचारियों, कामगारों और युवाओं की अहमियत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. मिसाल के तौर पर AI के साथ एक बड़ी चिंता है स्वचालन (automation) के चलते मध्यम-कालखंड में संभावित बेरोज़गारी का ख़तरा. आकलन के मुताबिक 20 वर्षों में स्वचालन के चलते भारत में तक़रीबन 69 प्रतिशत नौकरियां ख़तरे की ज़द में रहेंगी. इसके अलावा शहरी और ग्रामीण आबादियों, अल्पसंख्यक समूहों और तमाम आयु वर्गों की तक़नीकी कौशल में विषमताओं के चलते आर्थिक असमानताएं और गहरी हो सकती हैं. ऐसे में अगर कामगारों को नए सिरे से हुनरमंद बनाने और उनकी कार्यकुशलता के स्तर को ऊंचा उठाने के प्रयास नहीं किए गए तो समाज में उपद्रव के हालात बन सकते हैं.

AI संचालित प्रणालियों को लेकर एक और चिंता है कि ये मौजूदा पूर्वाग्रहों और भेदभावों को और गहरा कर सकते हैं. ख़ासतौर से हाशिए पर मौजूद समूहों को इसका दंश झेलना पड़ सकता है. इनमें नस्ली अल्पसंख्यक, महिलाएं और दिव्यांग जन शामिल हैं. इस तरह के भेदभावों से असमानता की मौजूदा खाई और चौड़ी हो सकती है. इससे सतत विकास लक्ष्यों के सामाजिक पूंजी पक्ष की ओर प्रगति में बाधा आ सकती है. इसके अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में AI के प्रयोग से निजता और सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी पैदा होती हैं. इनमें स्वास्थ्य सेवा, राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून का अनुपालन जैसे क्षेत्र शामिल हैं. मिसाल के तौर पर AI से संचालित मेडिकल उपकरण और ऐप्लिकेशंस निजी डेटा इकट्ठा कर सकते हैं. इन जानकारियों के दुरुपयोग के गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं.

भारत सरकार ने AI के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कई क़दम उठाए हैं. इनमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस कार्य बल की स्थापना और नीति आयोग द्वारा आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर राष्ट्रीय रणनीति #AIFORALL का निर्माण शामिल हैं.

भारत के लिहाज़ से देखें तो प्रौद्योगिकी से संचालित श्रम बाज़ारों में मांग-आपूर्ति के अनुकूल संतुलन पर पहुंचने के लिए कौशल कार्यक्रमों में रफ़्तार भरना निहायत ज़रूरी होगा. इससे एक पूरी पीढ़ी आजीविका के अवसरों के हिसाब से सशक्त बन जाएगी. साथ ही भारतीय युवा दुनिया भर के श्रम बाज़ारों के लिए उपयुक्त हो जाएंगे. भारत सरकार ने AI के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कई क़दम उठाए हैं. इनमें आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस कार्य बल की स्थापना और नीति आयोग द्वारा आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर राष्ट्रीय रणनीति #AIFORALL का निर्माण शामिल हैं. इतना ही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और तमाम राज्य सरकारों ने AI से जुड़ी कई क़वायदों की भी शुरुआत कर दी हैं. इस दायरे में कार्यक्रमों के सतर्कतापूर्ण क्रियान्वयन के साथ भारत एक कार्यकुशल श्रमबल तैयार कर सकता है जो तेज़ी से उभरती वैश्विक अर्थव्यवस्था की मांग पूरी करने की क्षमता रखती हो. ऐसी पहल अतीत के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा अहम आर्थिक बढ़त और सतत विकास में योगदान दे पाएगी.

ख़ास बात: OpenAI GPT-3.5 (ChatGPT 3.5) को शोध उपकरण के तौर पर प्रयोग में लाकर ये लेख लिखा गया है.

सौम्य भौमिक सेंटर फ़ॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में एसोसिएट फ़ेलो हैं.

साभार-https://www.orfonline.org/hindi/ से

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