आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है,और आलोचना का अधिकार मर्यादित होना चाहिए । संसदीय शासन प्रणाली में शक्तियों का मौलिक स्रोत संविधान होता हैं; एवं संविधान भू- भाग/भू – क्षेत्र की सर्वोच्च विधि हैं।लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के प्राण संविधान में निहित होता हैं। भारत के संविधान में ऐसे विशिष्ट लक्षण हैं जो विधि के शासन एवं संवैधानिक सरकार को मजबूती प्रदान करते हैं। लोकतंत्र की मजबूती के लिए असहमति होना स्वाभाविक हैं। लोकतंत्र के आवश्यक तत्व में असहमति और आलोचना को स्वीकार किया गया हैं। संसदीय शासन प्रणाली में सरकार को उत्तरदायित्व व जिम्मेदारी के लिए आलोचना का अधिकार अति आवश्यक हैं। लोकतंत्र को जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा शासन माना जाता हैं। गणितीय भाषा में कहें तो लोकतंत्र जनता की सहभागिता का प्रतीक हैं। नागरिक समाज में यह सवाल उठता है कि जनता की भावनाओं को ना सुनने पर व जनता के लोकतांत्रिक मूल्यों के मर्दन/ अतिक्रमण होने पर क्या किया जाए?; क्योंकि समाज ,राज्य एवं व्यवस्था में उभरते नवीन प्रवृतियों का बारीकी से चिकित्सा परीक्षण करने पर स्पष्ट हो रहा है कि समाज, राज्य एवं व्यवस्था में दिखावा और भौकाली संस्कृति का उदय हो रहा हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष श्रीमान राहुल गांधी को लोकतंत्र खतरे में दिखाई देता हैं, उनको कभी- कभी यहां पर मुस्लिम समुदाय असुरक्षित दिखाई देते हैं। भारत विविधता वाला देश है, और भारत में विविध धर्म और समुदाय के लोग निवास करते हैं ।भारत जीवंत लोकतंत्र का सटीक उदाहरण हैं।भारत 140 करोड़ की आबादी वाला लोकतंत्र का पाठशाला है, एवं वैश्विक स्तर पर वृहद लोकतंत्र हैं। विश्व के नवोदित देश लोकतंत्र के मूलभूत ढांचे का विकास भारत से ही सीखे हैं। भारत के निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता, कार्य के ढंग ,प्रशासनिक स्वतंत्रता व राजनीतिक हस्तक्षेप के सुरक्षा व संरक्षण प्राप्त हैं।स्वतंत्रता के पश्चात से लोकतांत्रिक व्यवस्था बड़ी एवं मजबूत हुई हैं। भारत में पहली बार ,1951 में 45.6% लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया था। 1962 में 50 % मतदान का आंकड़ा पहली बार हुआ था। 17.3% करोड़ मतदाता थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में 66.4% मतदान हुआ था, 2019 के लोकसभा के आम चुनाव में 67.4% वोट पड़े थे। भारत में वर्तमान में 94.5 करोड़ मतदाताओं की संख्या हैं।
महात्मा गांधी ने ‘ यंग इंडिया’ में लिखा था “अनुशासित और प्रबुद्ध लोकतंत्र भारत को संसदीय शासन की देनहै, जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था में पूर्वाग्रह, अज्ञान और अंधविश्वास होगा वह अराजकता की ओर ले जाएगा और अंत में स्वयं को नष्ट कर लेगा “।गांधी जी ने कांग्रेस को भंग ( समाप्त) करके इसके स्थान पर ‘ लोक सेवक संघ’ की पैरवी किया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भारत के राजनीतिक दलों के नेताओं को सीख था कि लोकतंत्र के लिए अनुशासित, बौद्धिक और पूर्वाग्रह मुक्त आलोचना होनी चाहिए ,जो वर्तमान व्यवस्था के लिए उपर्युक्त और प्रासंगिक हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में श्रीमान राहुल गांधी जी संसद में सरकार की आलोचना करते हैं, चुनावी जनसभाओं में प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत और अवांछित आलोचना करते हैं ।उनका आरोप है कि संवैधानिक संस्थाओं पर भाजपा व आरएसएस (संघ )का नियंत्रण है, जिसके कारण उनको ‘ भारत जोड़ो यात्रा ‘ करनी पड़ीं थी।राहुल गांधी जी को सोचना चाहिए कि संवैधानिक संस्थाओं पर भाजपा/ आरएसएस का नियंत्रण होता तो कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेसका विजय कैसे हुआ ? उनका आरोप है कि महंगाई ,बेरोजगारी और बढ़ती सामाजिक दुराव के कारण मोदी जी को नवीन संसद भवन का निर्माण और ‘ संगोल ‘ स्थापित करना पड़ा था, उनको सोचना चाहिए कि प्रत्येक का नवनिर्माण प्रकृति का नियम हैं ।
(लेखक दूरदर्शन समाचार में परामर्श संपादक हैं)