दो सप्ताह पहले लंदन में टीपू सुल्तान की तलवार(खड्ग)और दूसरी कलाकृतियों की नीलामी 142 करोड़ में हुई थी ।ब्रिटेन में भारत की नायाब कलाकृतियों का एक बड़ा धरोहर है ,जिन्हें वापस कराने के लिए भारत सरकार लगातार प्रयासरत हैं। मोदी सरकार इसके वापसी की कोशिश कर रही है ब्रिटिश साम्राज्यवाद( ब्रिटेन का भारत के राजनीतिक और आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण) शोषण ,उत्पीड़न ,साहित्य का उत्थान और धार्मिक क्षेत्र में अत्यधिक हस्तक्षेप के कारण काले युग (डार्क एज) के रूप में याद किया जाता हैं। राजनीतिक चिंतक, सामाजिक मुद्दों के जानकार और विदेश नीति विशेषज्ञ डॉक्टर सुब्रो कमल दत्ता जी का कहना है कि ग्रेट ब्रिटेन/ संयुक्त राज्य को अपने द्वारा किए गए सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक अपराधों का प्रायश्चित करने का समय आ चुका है, ब्रिटेन को अपने औपनिवेशिक शोषक कृत्य को मानना चाहिए। उनका कहना है कि यदि ब्रिटेन लूटी गई भारतीय कलाकृतियों और धरोहरों को वापस नहीं करता है ,तो उसे दुनिया के सामने घोषणा करना चाहिए कि वह गुलामी ,उपनिवेशीकरण, लूट बंधुआ मजदूरी और नरसंहार को सही सही ठहरता है।
ब्रिटेन को अपने काले इतिहास को मिटाने का इससे बड़ा अवसर नहीं मिलेगा और अभी नहीं, तो कभी नहीं। “इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट” दुनिया भर के सार्वजनिक और निजी संस्थाओं से चुराई गई और तस्करी की गई प्राचीन कलाकृतियों की भारत को वापस लाने के लिए शुरू किया गया नागरिक आंदोलन आंदोलन हैं।इस आंदोलन को चेन्नई के विजय कुमार एवं सिंगापुर स्थित सार्वजनिक नीति विशेषज्ञ ने 2013 में शुरू किया था, और उनका कहना है कि” आपने किसी हड़पे हुए देश को उस समय तक आजादी नहीं नहीं दी है, जब तक आप उस देश को उसकी संपत्ति वापस नहीं कर देते हैं”. आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के एक अधिकारी ने’ द हिंदू ‘ को बताया कि उनके विभाग के पास ऐसी कोई सूची नहीं है ?,लेकिन अनुमानित संख्या हजारों में है।एक अनुमान के अनुसार ,ब्रिटेन में भारतीय कलाकृतियों की संख्या 30000 से अधिक हैं। दत्ता जी कहते हैं कि “यह भारत की राष्ट्रीय विरासत है, यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।”
सबसे प्रसिद्ध भारतीय कला कृतियों में से एक ‘ कोहिनूर हीरा ‘ है,जो ब्रिटिश क्रॉउन ज्वेल्स का हिस्सा है, इसे 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लड़ाई में विजित किया था और बाद में महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया था ।कोहिनूर हीरे ने अपनी दुर्लभता और बेजोड़ प्रतिभा के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है ।फारसी भाषा में कोहिनूर का अर्थ “प्रकाश का पर्वत” होता हैं। हाल के वर्षों में कोहिनूर हीरे के भविष्य को लेकर भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच चर्चा हुआ है । कुछ विशेषज्ञ साझा व्यवस्था का प्रस्ताव करते हैं, जो ब्रिटिश क्राउन ज्वेलर्स के शेष भाग के दौरान हीरे को भारत में प्रदर्शित करने की अनुमति देगा ,सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा और इसके ऐतिहासिक महत्व की उपादेयता को स्वीकार किया जाएगा। इसी क्रम में सुल्तानगंज बुद्ध की कलाकृति है, यह बुद्ध की आठवीं शताब्दी की एक कांस्य प्रतिमा है जो वर्तमान में लंदन में विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय में रखा गया है।
लंदन में ब्रिटिश संग्रहालय में अमरावती स्तूप प्राचीन पत्थर के पैनलों का मार्मिक संग्रह है, जो भारत के सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों में से एक हैं।यह पैनल महात्मा बुद्ध के जीवन दर्शन के दृश्यों को दर्शाते हैं ।टीपू सुल्तान की तलवार ,लंदन के निजी संग्रह में है, लेकिन भारत की विरासत का अहम एवं प्रासंगिक हिस्सा हैं। ऐतिहासिक विरासत में शिवाजी की तीन लोकप्रिय तलवारें हैं ,जो क्रमशः ‘ भवानी ‘ ‘ जगदंबा ‘ और ‘ तुलजा’ हैं। ‘ द हिंदू’ अखबार के मुताबिक, महाराष्ट्र सरकार ने तलवारों को वापस लाने के लिए कोशिश कर रही है।ब्रिटिश संग्रहालय में अमरावती स्तूप से नक्काशीदार संगमरमर की रेलिंग का संग्रह है। इनमें बुद्ध के जीवन दृश्यों का रेखांकन है। ब्रिटिश संग्रहालय में महाराजा रणजीत सिंह का ताज है ,यह मुकुट कई हीरे और कीमती रत्नों से सुशोभित है ।ब्रिटिश संग्रहालय में भारत के चोल वंश की कांस्य प्रतिमाओं का संग्रह है,ये उत्कृष्ट मूर्तियां नौवीं शताब्दी की है, और देवताओं और संतों का प्रतिनिधित्व करती हैं ।इसके अतिरिक्त लंदन की गैलरी में ‘ बनी ठनी ‘ पेंटिंग भी है, जो 18वी शताब्दी में निर्मित इस पेंटिंग में राजस्थान के किशनगढ़ के दरबार की एक महिला को दर्शाया गया है। इस विषय पर डॉ दत्ता जी का कहना है कि” भारत से लूटे गए सामानों की संख्या 30 हजार के करीब है, क्योंकि इसकी औपचारिक गणना नहीं की गई है।”
भारत की पिछली कई सरकारों ने ब्रिटेन के सरकार से कोहिनूर और देश की दूसरी कलाकृतियों को वापस करने की मांग की है ,लेकिन सकारात्मक सफलता नहीं मिली थी। इंग्लैंड के मशहूर अखबार’ द टेलीग्राफ’ के अनुसार मोदी सरकार कोहिनूर हीरा और हजारों कलाकृतियों को वापस हासिल करने की मुहिम के लिए कूटनीतिक प्रयास की तैयारी कर रही हैं।इस विषय पर डॉ दत्ता जी कहते हैं कि “भारत में पिछली सरकारों के पास इस तरह की साहसिक पहल करने की इच्छा शक्ति नहीं थी ,लेकिन अब चीजें बहुत बदल गई है।अब हमारे देश में एक शक्तिशाली राष्ट्रवादी सरकार है ,इसलिए भारतीयों को मोदी सरकार से अपेक्षाएं अधिक हैं।”.
लेखक दूरदर्शन समाचार में परामर्श संपादक हैं)