Sunday, November 24, 2024
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संसदीय शासन में जनमत संग्रह विकल्प नहीं है

संसदीय शासन प्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका का संयोजन होता है अर्थात कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदाई और जिम्मेदार होती है। गणितीय शब्दों में कहें तो विधायिका और कार्यपालिका जनमत पर आधारित व्यवस्था है। कोई व्यवस्था स्थिर, उत्तरदाई और संतुलित तभी हो सकता है जब जनमत को यथोचित सम्मान दिया जा रहा हो। जनमत के सम्मान और यथोचित पुरस्कार के कारण व्यवस्था में विछोभ उत्पन्न होता है। सितंबर महीने में नरेंद्र मोदी की जी-20 की शिखर बैठक की सफलता लोकतांत्रिक स्तर पर मजबूती का संकेत है। वैश्विक स्तर पर संसदीय व्यवस्था की सफलता मौलिक रूप से विधायिका और कार्यपालिका के मधुर संबंध का परिणाम है। हाल में ही अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरुद्ध याचिकाओं पर सुनवाई संपन्न हुआ है। इस पर की जाने वाली जनमत संग्रह की मांग को माननीय न्यायालय ने सिरे से खारिज किया है। संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनमत की राय जानने का काम स्थापित संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है।

भारतीय गणतंत्र का संविधान निर्वाचित प्रतिनिधि संस्था और एक निर्वाचित कार्यपालिका के माध्यम से लोकप्रिय इच्छा को क्रियान्वित करता है ।लोकतंत्र में इसका वैकल्पिक मॉडल प्रत्यक्ष लोकतंत्र है, जहां जनमत संग्रह के माध्यम से मतदाता विधायिका के निर्णय को निरस्त कर सकते हैं। स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र है, यहां पर किसी भी विधायक का जीवन जनमत संग्रह पर निर्भर करता है। यह मतदान व्यवहार का सकारात्मक और ऊर्जावान प्रभाव है। स्विट्जरलैंड संघ की स्थापना 1848 में किया गया था, जबकि महिलाओं को वोट का अधिकार 1971 में मिला था। संयुक्त राज्य अमेरिका आदर्श लोकतंत्र का सर्वोत्तम उदाहरण है। संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय इकाइयों में जनमत संग्रह है ,लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जनमत संग्रह नहीं है ।लोकतांत्रिक शासन व्यवस्थाओ अर्थात संसदीय शासन व्यवस्था और अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में उचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को मजबूत करता है। जनमत संग्रह के कारण लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में स्थिरता का अभाव पाया जाता है। संसदीय शासन व्यवस्था में जनमत संग्रह समस्या का समाधान नहीं हैं।

(लेखक प्राध्यापक और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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