आध्यात्म और सूफी प्रभाव से प्रेरित साहित्य सृजन करने वाले साहित्यकार अनुज कुच्छल साहित्य के मौन साधक है। ये प्रचार – प्रसार से परे स्वांतसुखाय मन की शांति के लिए सृजन में लगे रहते हैं। मानव जीवन में परिवेश की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। विशेष तौर पर जिस सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में बाल्यावस्था व्यतीत होती है उसका बाल मन पर गहरा असर होता है। साहित्यकार अनुज कुमार कुच्छल के साहित्यिक जीवन के परिवेश की ऐसी ही कहानी है जिसने किशोरावस्था आते-आते जुनून का रुप ले लिया। जल्द ही भारतीय रेलवे में नौकरी लग जाने पर भी साहित्य सृजन की रुचि निरंतर बरकरार है।
साहित्यकार अनुज कुच्छल मूलतः उत्तर प्रदेश में कैराना कस्बे से हैं, जिनकी कर्म स्थली अब कोटा बन गई हैं। कैराना में इनके पिता जी स्व.मोती लाल कुच्छल स्वयं साहित्य प्रेमी अध्यापक थे। इनके चाचा जी क्षेत्रीय समाचार पत्रों के संवाददाता होने के साथ – साथ साहित्य के प्रति असीम रुचि रखते थे। अपनी इसी रुचि की वजह से वे कस्बे में हर साल होने वाले वार्षिक मेले में अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलन और मुशायरों के आयोजन करवाते थे। उनके साथ रह कर इन्होंने पूरी जिम्मेदारी ले कर कई बार पूरी सक्रियता से कवि सम्मेलनों के आयोजन करवाए। कवियों को आमंत्रण पत्र भेजना, उनकी समस्त व्यवस्थाएं करना, आदि कार्य बखूबी किए। रुचि होने से कई ख्यातनाम कवियों से अच्छा संपर्क हो गया और सभी को निकट से सुनने और समझने का मौका मिला। कवि सम्मेलनों की समाचार रिपोर्ट भी ये तैयार करने लगे।
साहित्य प्रेम का अंदाजा इससे भी होता है कि ये अपनी पॉकेट मनी साहित्यिक पुस्तकें खरीदने पर व्यय करते थे। इन्होंने कैराना में अपनी एक अच्छी खासी निजी लाइब्रेरी बना ली थी जिसमें साहित्य की विभिन्न विधाओं की पुस्तकें थीं। जिनमें महान साहित्यकारों द्वारा लिखित कहानी संग्रह,उपन्यास,नाटक,एकांकी, यात्रावृतांत,निबंध, काव्य, ग़ज़ल, पौराणिक एवं आध्यात्मिक करीब 2 हजार पुस्तकें संग्रहित की गई थी। इनकी रिपोर्ट और स्वलिखित कविताएं जब समाचार पत्रों में छपने लगी तो इनका हौसला और बढ़ता गया।
बहुत ही गहरी स्वाध्याय वृति के होने से इन्होंने युवा अवस्था में ही हिंदी, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक आदि साहित्य का न केवल गूढ़ अध्यन किया वरन गहनता से विश्लेषणात्मक दृष्टि से समझा भी। उम्र के 18 बसंत बीतते-बीतते वेद, पुराण, रामायण,गीता,बाइबल और कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों का गहराई से अध्यन किया। इन्होंने संत कबीर, कालीदास, रहीम, सूरदास, तुलसीदास, मीरा बाई, बिहारी, रसखान, आदि के साहित्य को भी गंभीरता से पढ़ा। महात्मा गांधी, विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, राजाराममोहन राय, ओशो रजनीश जैसे अन्य कई महापुरुषों और दर्शन शास्त्रियों का साहित्य भी पढ़ा और उनकी विचारधारा को समझा।
प्राचीन काल से मुगल काल तक के इतिहास और ऐतिहासिक प्रसंगों और संदर्भों पर महान उपन्यासकारों आचार्य चतुर सेन, वृंदावन लाल वर्मा, रांगेय राघव,हजारी प्रसाद द्विवेदी और अमृता लाल नागर के ऐतिहासिक उपन्यास भी अन्वेषण दृष्टि के साथ पढ़े।
कालजयी साहित्यकारों और कहानीकारों के साहित्य का भी पूरा रसास्वादन कर वर्णित परिवेश और उनकी विचारधारा को गहनता से समझा। इन्होंने चंद्रधर शर्मा गुलेरी, मुंशी प्रेमचंद, मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, अज्ञेय,मिर्जा गालिब, जयशंकर प्रसाद और हरिवंश राय बच्चन के साहित्य का पूरी शिद्दत से अध्यन-मनन किया। मिलने जुलने और चर्चा के दौरान ये सभी बातें मेरे समक्ष उभर कर आई।
साहित्य सृजन के प्रति इनका अनुराग बचपन से ही हो गया और 10 वर्ष की आयु में ये कविता लिखने लगे। इनकी हिंदी – उर्दू की कविताएं लिखने की समझ बढ़ती गई। हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं के प्रति रुचि जागृत हुई। इन्होंने 1980 से 95 के डेढ़ दशक में लगभग 100 कविताएं, गजल, रुबाइयां, शेर आदि अनेक कहानियां, लघु कथाएं, लेख और निबंध आदि लिखे जो कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
अधिकतर इनकी रूबाइयों और शेरों में आध्यात्म और सूफी दृष्टिकोण झलकता है। इन्होंने परमात्मा और चेतन शक्ति को प्रियतम मान कर अपनी रचनाओं में इंगित किया है।
एक शेर में यह कहते हैं……….
” मैं समझ गया कि तुम इसी शहर में कहीं हो
हवा में वरना इतनी तपिश क्यों होती ।”
इनकी रचनाओं में अक्सर उर्दू भाषा का प्रभाव भी देखने को मिलता है। उर्दू शायरी और गजलों के प्रति गहरा लगाव होने के कारण इन्होंने अपने पिता जो आदर्श अध्यापक थे से उर्दू की प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त की।
इनकी कविता के कुछ अंश इस प्रकार हैं………
आदमी घुटे मौसम में जाने कब से घुट रहा,
अब तो उसे मौसम कुछ खुला खुला चाहिए।
इन्सान गर इन्सान हो जाए,खुदा की चाह नहीं,
आदमी में आदमी बस मिला जुला चाहिए।
आने से ना रोको बाग तक सूरज को,पवन को,
हर फूल हमे यहां खिला खिला चाहिए।
आपके सृजन की एक ग़ज़ल की बानगी भी देखिए जिसमें आध्यात्मिक भाव की झलक साफ दिखाई देती है………
तेरी याद से रोशन किया है हमने दिल को
दिया बुझा भी दे तो अंधेरा अब क्या होगा।
थम थम के जो बरसता है अब्र, बर्क चमकती है
किस को न तेरा नूर सुनसान में दिखा होगा
तन्हाई में जब सन्नाटे से कान लगाता हूं
गुमां होता है कि मुझसे कुछ तूने कहा होगा।
इस सृजन के आखिरी शेर में सन्नाटे से कान लगा कर उसी को सुनने का इशारा है जिसे संतमत और साधना के क्षेत्र में नाद श्रवण कहा गया है। नूर शब्द का प्रयोग परम शक्ति के प्रकाश की ओर ही इशारा है। इनकी रचनाओं में आध्यात्मिक रुझान का पता चलता है।
इनकी रुबाइयों का भीअंदाजे बयाँ देखिये-
1)ये अपना दिल भी कैसा बदमिजाज़ निकला,
बदगुमां, बेवफा, बेरहम, चारसाज़ निकला,
बरसों सीने से लगाए फिरे जिसको हम,
किसी गैर का था, अब जाके ये राज निकला।
2). दो फूलों मे से एक बहार मे खिलता रहा,
दूसरा किताब में झरा पराग बनता रहा,
दो दिये एक साथ जले, किंतु एक मंदिर में रखा,और दूसरा अंधेरी मजार पर जलता रहा।।
अशआर लिखने में भी आप सिद्ध हस्त हैं। गहराई लिए अश आर के कुछ नमूने देखिये-
(1) वो हमारे ना हैं, ये हमको मालूम तो है लेकिन,
वो एक बार मुँह से कह देते, तो तस्कीन हो जाती।
(2) सूरज को क्या खबर है उजाले की कीमत,
अंधेरों से पूछो, रोशनी क्या होती है।
(3) तुमको भी हमारी कुछ तो जरूरत रही होगी,
यूँ ही तो कोई किसी के ख्वाबों मे नही आता।
इन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा को निरंतर बनाए रखा है। काव्य सृजन के साथ – साथ इन्होंने चार पुस्तकें ’भारत की विश्व विरासत-यूनेस्को की सूची में शामिल’, ’भारत में समुद्र तटीय पर्यटन’, वर्ल्ड हेरिटेज ग्लोबल टू लोकल’ एवं ‘ पर्यटन को सुगम बनाती भारतीय रेल’ साझा रूप से पूरा शोध कर अपने लेखन की समर्थ साहित्यिक सुगंध से पुस्तकों को महकाया।
साहित्य प्रेम के साथ साथ ये पर्यटन के विशेष शौकीन हैं। इन्होंने भारत के अधिकतर हिस्सों का भ्रमण किया है। विभिन्न पर्यटन स्थलों, धार्मिक तीर्थ स्थलों, समुद्रतटों, पर्वतीय स्थलों, किलों,महत्वपूर्ण ऐतिहाासिक इमारतों, और भारत के अनेक महत्व पूर्ण नगरों आदि का भ्रमण कर चुके हैं। भ्रमण के दौरान हुई जानकारियों, और अनुभवों से भी इनको लिखने की प्रेरणा मिलती है। आपने चारों धाम और ग्यारह ज्योतिर्लिंगों की यात्रा पूर्ण कर ली हैं।
साहित्य के मौन साधक अनुज कुमार कुच्छल का जन्म उत्तर प्रदेश के कैराना कस्बे में 29 जनवरी 1967 को पिता स्व. मोतीलाल कुच्छल एवं माता स्व. प्रेम देवी के परिवार में हुआ। मातृभूमि में ही अपनी शिक्षा प्राप्त की और सिविल इंजिनियरिंग में डिप्लोमा करभारतीय रेलवे में सेवा में आ गए। इन्होंने कॉलेज के वार्षिकोत्सव में कई बार कवि सम्मेलनों के आयोजन किए जिनमें संयोजक और संचालन की भूमिका निभाई। भाषण और वादविवाद प्रतियोगिताओं में भाग ले कर कई पुरस्कार जीते। सांस्कृतिक कार्यक्रमों जेसे नाटक आदि में सक्रिय भूमिका निभाई।
आप वर्तमान में मध्य-पश्चिम रेल मंडल कोटा में सेवारत सीनियर सेक्शन इंजिनियर के रूप में सेवारत हैं। लगन, निष्ठा और ईमानदारी से 35 वर्ष की रेल सेवा के दौरान इन्हे 5 बार मंडल रेल प्रबंधक अवार्ड , 2 बार वरिष्ठ मंडल अभियंता द्वारा, एक बार चीफ इंजिनियर द्वारा पुरस्कार प्रदान किया गया। वर्ष 2002 मे तत्कालीन रेल मंत्री श्री नितीश कुमार जी के कोटा दौरे के दौरान इन्हे विशिष्ट कार्यो के लिए सम्मानित किया जा चुका है।
संपर्क मोबाइल : 9001017251
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा