मानसिक स्वास्थ्य असामान्य होने से चिंताजनक स्थिति आत्महत्या किया जाना है।
शिक्षा के गढ़ कहे जाने वाले कोटा, जिसकी कोचिंग क्लासेस की सफलता का परचम पूरे भारत में लहराया है। समय-समय पर छात्रों द्वारा मानसिक असंतुलन की वजह से तनाव, निराशा और अवसाद में आने पर अपनी जीवन लीला समाप्त करने की घटनाएं चिंता उत्पन्न करती हैं। इसके किए चिंतन-मंथन की आवश्यक है कि क्यों विश्व पटल पर उदित होते इस सूर्य को यह ग्रहण लगता है।
इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार तो अभिभावक ही हैं। एक नन्हें बालक के मस्तिष्क में आजकल अभिभावक अपने सपनों की फसल बोने लगते हैं । बिना यह जाने कि इस उर्वर मस्तिष्क की मिट्टी कौनसे सपनों को फलीभूत करने की क्षमता रखती है ,और कौनसे नहीं । बच्चा स्कूल जाने लगता है ,तभी वह उससे प्रश्न करने लगते हैं कि तुम बड़े होकर क्या बनोगे, इस प्रश्न के माध्यम से डॉक्टर, इंजीनियर या कलेक्टर बनने का एक विचार उसके मस्तिष्क में उसकी रुचि और क्षमता को जाने बगैर डाल दिया जाता है।
बड़े होकर जब चयन का समय आता है। तो अभिभावक के दिखाए गए उस सपने की वह अवहेलना नहीं कर पाता और अपने लिए खींची गई उस लकीर पर चलने लगता है। वह स्वयं भी यह आत्माविश्लेषण करने के योग्य नहीं रह जाता कि आखिर वह स्वयं क्या करने के लिए इस संसार में आया है। अभिभावकों को चाहिए कि वह बालक की क्षमता देखें, उसे स्वयं सोचने और बताने दें की वह क्या करना चाहता है। वह भी सही उम्र आने पर ही पूछा जाना चाहिए।
बालक को शारीरिक और मानसिक रूप से योग्य बनाने की आवश्यकता अभिभावक बालक को शारीरिक और मानसिक रूप से बाहर रहने के लिए मजबूत बनाएं और प्रशिक्षित करें आमतौर पर देखा जाता है कि माता-पिता पानी का गिलास भी बच्चे को स्वयं पकड़ाते हैं, उसके छोटे-छोटे काम भी स्वयं करते हैं। बच्चों की आस-पास की और छोटी छोटी समस्याओं को खुद ही सुलझाने के लिए पास-पड़ौस में और स्कूल में पहुंचे जाते हैं, फिर उसे अचानक से अकेला घर से दूर छोड़ देते हैं। उसे स्वयं ही अपनी समस्याएं सुलझाने के अवसर प्रदान कर स्वयं निर्णय लेने योग्य बनाए।
छात्रों में आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा की कमी आजकल अभिभावक आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षा देना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं समझते। बल्कि इसे पिछड़ापन मान लिया गया है। नैतिक शिक्षा की आवश्यकता स्कूलों ने महसूस नहीं की है आजकल स्कूलों में नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम बंद हो चुका है।
आखिर बालक वह आधार कहां से लाएगा जिस पर वह दृढ़ता से खड़ा हो सके। आधुनिक युग में पाश्चात्य विद्वानों के दर्शन के आधार पर हम यह तो मानने लगे हैं कि यूनिवर्सल पावर होती है। पर हमारी अपनी संस्कृति ने हमें जो अध्यात्मिक शक्ति का भंडार प्रदान किया है, उससे हम नई पीढि को वंचित कर रहे हैं। हमारे यहां शक्ति,बुद्धि और बल प्रदान करने वाले देवी-देवताओं और उनकी आराधना का वर्णन है। जो मनुष्य को अटूट शक्ति प्रदान करता है।
साथ ही गीता का यह संदेश है, “हमारा कर्म करने में अधिकार है। फल देना ईश्वर की इच्छा है।” यह छात्र को बाल्यावस्था से ही मंत्र की तरह याद करवा दिया जाना चाहिए। नैतिक शिक्षा के अभाव में बालक अपने मित्रों और अध्यापकों के मध्य अपना एक उचित स्थान नहीं बना पाता स्कूल में नैतिक शिक्षा का पाठ्यक्रम अनिवार्य होना चाहिए।
अभिभावकों द्वारा संवाद की आवश्यकता
माता-पिता को निरंतर बालक से संवाद बनाए रखना चाहिए। उससे प्रतिदिन निश्चित समय पर फोन पर बात करनी चाहिए। समय-समय पर हॉस्टल प्रबंधक, उसके कोचिंग संस्थान, मित्रों और अध्यापकों से भी बात करनी चाहिए।
कोचिंग संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वह टेस्ट के अनुसार उन्हीं छात्रों को कोचिंग संस्थान में प्रवेश दें जो कि वास्तव में इस योग्य हैं कि मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में पास हो सकते हों। कोचिंग संस्थान की प्रवेश परीक्षा भी स्तरीय होनी चाहिए। किंतु कोचिंग संस्थान अपना यह उत्तरदायित्व निर्वहन नहीं कर रहे हैं। वे अपने यहां ज्यादा से ज्यादा छात्रों को प्रवेश देने की होड़ में शामिल हैं।
कोचिंग संस्थान पर्याप्त शुल्क लेते हैं, उन्हें साइकोलॉजी और योग गुरु की भी वहां पर नियुक्ति देनी चाहिए। जितना पढ़ना जरूरी है, उतना ही शारीरिक और मानसिक रूप से छात्रों को मजबूत भी बनाने की आवश्यकता है। यही उम्र बालक के विकास की होती है। इसे जरूरी मानकर हफ्ते में तीन पीरियड योग के व तीन पीरियड मोटिवेशन क्लास के होने चाहिए।
साइकोलॉजी के परामर्शदाता प्रतिदिन कोचिंग संस्थान में बैठें, जहां छात्र अपनी समस्या पर, उनसे जाकर निशुल्क बात कर सकें। क्योंकि किशोर वय में बच्चों के मन में अनेक उलझने होती हैं। जिनमें हमउम्र लड़के लड़कियों की आपसी दोस्ती व दोस्ती का टूट जाना जैसी परेशानियां भी होती हैं।
हॉस्टल प्रबंधन भी भली प्रकार से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें। अक्सर देखा जाता है कि जिनके पास अधिक धन है वह हॉस्टल बना देते हैं। जो बिजनेस करना चाहते हैं वह उन्हें लीज पर ले लेते हैं और जो बेरोजगार हैं वह उसमें वार्डन बन जाते हैं। किंतु अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर उन्हें उन किशोर बच्चों के बारे में भी सजग रहना चाहिए। वे बच्चे भी उन्हीं के बच्चों की तरह, किसी मां-बाप की आंखों की तारे हैं। उन्हें पूर्ण रूप से सुविधा दें और गुणवत्ता पूर्ण भोजन हॉस्टल में दिया जाना चाहिए। कोई छात्र मैस में नहीं आ रहा है? गुमसुम है, उदास या बीमार है? तो उसका पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए। कुछ भी शारीरिक या मानसिक परेशानी का अंदेशा होते ही बच्चों के माता पिता से सम्पर्क करना चाहिए।
सरकार और प्रशासन की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। कोटा में मादक पदार्थों का बड़ा माफिया सक्रिय है। पुलिस विभाग को इस पर शिकंजा कसना चाहिए। सरकार की महति जिम्मेदारी है कि इतनी बड़ी संख्या में यहां बाहर के बच्चे रह रहे हैं तो बेहतर कानून व्यवस्था और पुलिस सुरक्षा के साथ उन्हें अच्छा वातावरण यहां पर मिले।
इस प्रकार हम एक दृष्टि पूरे परिपेक्ष्य पर डालकर इस परिणाम तक पहुंचते हैं कि इन खिलते हुए पुष्पों की देखभाल की सर्वाधिक जिम्मेदारी अभिभावकों की है। किंतु अन्य घटक भी इसके लिए जिम्मेदार है उन्हें पूरे परिश्रम से अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए तभी यह दुःखद घटनाएं रोकी जा सकेंगी।
(लेखिका साहित्यकार है)