हिंदी के साहित्यकार का रोना है कि आज की नई पीढ़ी साहित्य से विमुख होती जा रही है , हिंदी में पुस्तकें छपती हैं तो यह मुनाफे का सौदा साबित नहीं होता है , साहित्यकार की पुस्तक अब सैकड़ों में छपती हैं. उनमें से सौ समीक्षा के लिए चली जाती हैं , शेष में अगर प्रकाशक जुगाड़ू टाइप का निकला तो कुछ सरकारी पुस्तकालयों में लगवा देता है कुछ लेखक को ही दे देता है जो बेचारा अपने रिश्तेदारों और मित्रों को कम्प्लीमेंटरी कापी के रूप में समर्पित कर देता है।
प्रदीप गुप्ता जो भारतीय स्टेट बैंक में जनसंपर्क के कार्य से लम्बे समय तक जुड़े रहे हैं इन दिनों यायावरी करते हैं , साल में छै महीने विदेशों में और दो महीने देश में घूमने पर लगाते हैं. जब वे घूम नहीं रहे होते हैं तो सोशल मीडिया पर कंसल्टेंसी का कार्य करते हैं। उन्होंने अपने संस्मरणों पर एक रोचक पुस्तक लिख डाली है नाम रखा है ‘एक टांग पर विवाह। ‘ इसे अमेजान इंडिया, अमेजान यू एस, अमेजान यू के के किंडल प्लेटफार्म पर प्रकाशित किया है , इसके कारण यह पुस्तक उस नई पीढ़ी तक पहुँच पा रही है जिनकी हिन्दी मातृ भाषा है, लेकिन वे अपने विदेश प्रवास के कारण इसमें साहित्य नहीं पढ़ पा रहे हैं, इस तरह से श्री गुप्ता ने हिन्दी में पुस्तक प्रकाशन को एक बेहतर और नया प्लेटफार्म दिया है।
थोड़ा जिक्र पुस्तक के विषय वस्तु के बारे में , दरअसल इसका फ्लेवर कुछ कुछ भेलपुरी जैसा है, इसमें कई शेड्स और रंग हैं। शुरुआत उन्होंने अपनी जाति के उद्गम से की है उनका कहना है कि हर जाति ने अपने अतीत को स्वर्णिम बनाने के लिए मिथक गढ़ने की कोशिश की है , उसके हिसाब से तो हर जाति किसी न किसी राज वंश से है ! ‘एक टांग पर विवाह’ की शुरुआत पशिमी उत्तर प्रदेश के बहुत ही छोटे कसबे संभल से होती है, वहां से हैदराबाद , त्रिची , गोहाटी , क्वल्लमपुर, सिंगापुर, हांग कांग , बैंकाक , पटाया, कोलम्बो , न्यूयार्क , वाशिंगटन डी सी, लन्दन , एडिनबरा , अलास्का लिस्ट लम्बी है , पाठक मेस्मराइज होकर नए नए शहर, देश प्रदेश की संस्कृति , लोग और वहां के जीवन में इस कदर गुम हो जाता है कि वह चाहता है की इस सफर का कहीं अंत न हो. सबसे अच्छी बात यह है कि गुप्ता जी के सफरनामे टूरिस्ट ब्राऊचर के काट पेस्ट नहीं वरन सामाजिक दस्तावेज हैं जिनमें लेखक अपने व्यक्तित्व को विल्कुल अलग रखता है।