भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद होती है। लोकतंत्र में जनता द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों को जनप्रतिनिधि (सांसद, विधायक और मेयर) कहा जाता हैं। अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल की ऑल इंडिया त्रिमूल कांग्रेस की सांसद आदरणीय महुआ मित्रा के संसदीय आचरण ने नैतिकता, संसदीय आचरण, जिम्मेदार एवं जवाबदेह प्रतिनिधि,राजनीतिक आभार (अपने प्रत्येक कार्य के लिए जनता के प्रति उत्तरदाई) एवं संसदीय चरित्र और लोकतांत्रिक मूल्यों पर कुठाराघात किया है। तृणमूल कांग्रेस की हाईकमान एवं सत्तासीन मुख्यमंत्री (राज्य की व्यवहारिक प्रधान, राज्य का दूसरा सार्वजनिक व्यक्तित्व) अपने सादगी (समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया) में हवाई चप्पल में चलना, सादगी की प्रतीक मानी जाती है। गरीबी का प्रतीक माना जाता है।
संसद में सत्तासीन दल की विरोधी (मैं जब से राजनीति का क, ख और ग जाना) दिखाई देती है ।लोकतंत्र में राजनीतिक आभार सामूहिक जिम्मेदारी व जवाब देही को मजबूत करता है। लोकतंत्र में प्रत्येक जनप्रतिनिधि जनता (संवैधानिक शब्द में ‘संविधान’ और शपथ के आधार पर संविधान एवं ईश्वर) के प्रति जिम्मेदार एवं जवाबदेह होता है। एक आदर्श जनप्रतिनिधि का मौलिक कार्य और मौलिक पहचान जन कल्याण/लोक कल्याण/लोक सेवा के लिए संसद में सवाल/ प्रश्न करना,जिससे संसद का ध्यान उस विषय पर हो सके, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के बैनर तले और जनता द्वारा निर्वाचित महोदया जी का संसद में रिश्वत/ धन/ माल लेकर सवाल करना संवैधानिक, लोकतांत्रिक एवं संसदीय मूल्यों का पतन करवाने जैसा है।
उनके इस दुखदाई आचरण के लिए संसद की तदर्थ समिति/ अनुशासन समिति को सौंप दिया गया है। विधि के शासन, संवैधानिक सरकार और संविधान वाद की संहिता /प्रोटोकॉल के अनुसार इन विषयों और मुद्दों को अनुशासन समिति को सौंपा जाता है, और जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति, संगठन और संस्था को नागरिक धर्म, संवैधानिक धर्म और राष्ट्र – राज्य धर्म का पालन करना चाहिए। हमारे देश के प्रधानमंत्री/ प्रधान सेवक और देश के व्यावहारिक कार्यपालिका प्रधान विकसित भारत की संकल्पना प्रस्तुत कर रहे हैं और जनप्रतिनिधि नागरिक आभार और नागरिक धर्म का पतन कर रहे हैं। रिश्वत और धन लेकर सवाल करने के मामलों से संबंधित प्रावधान है:-
1. यदि कोई संघीय जनप्रतिनिधि/ सांसद संसद (सर्वोच्च पंचायत) में प्रश्न /सवाल रखने के लिए रिश्वत/ घूस लेता है, तो वह विशेषाधिकार हनन/ विशेषाधिकार पतन और सदन की गरिमा एवं सदन की अवमानना का दोषी होता है;
2. ऐसे मामलों को लोकसभा अध्यक्ष विशेषाधिकार समिति को अग्रसारित करते हैं;
3. विशेषाधिकार समिति निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच पड़ताल करके अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करती हैं। इस प्रतिवेदन में निष्कर्षों के साथ-साथ संबद्ध सांसद/जनप्रतिनिधि के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश/अनुमोदन करती है; और
4. दोषसिद्धि/दोष साबित के पश्चात संबंधित सांसद को निष्कासित किया जा सकता है।
कैश/ रिश्वत लेकर सवाल पूछने के मामले में लोकसभा की आचार समिति/अनुशासन समिति की सिफारिश पर तृणमूल कांग्रेस की सांसद महोदया महुआ मित्रा जी की सदस्यता रद्द कर दी गई है। विधायिका (संवैधानिक और संसदीय शब्दावली में संसद का उपर्युक्त/उचित शब्द’ विधायिका’ है।)। में सामान्य परिस्थितियों में पद रिक्त होने की परिस्थितियां रहती है। कोई सदस्य अपनी इच्छा (वास्तविक + यथार्थ) से त्यागपत्र दे दिया हो तो या उसका देहांत हो चुका हुआ हो, ऐसी स्थिति में विधायक (संसदीय और संवैधानिक शब्द ‘विधायक’ ही होता) की सीट रिक्त/खाली हो जाता है। इसके अतिरिक्त भी कई कारण है, जिनकी वजह/कारण से विधायिका (लोक सभा और राज्य सभा) की सदस्यता रद्द हो जाती है। संविधान के अनुच्छेद 102 में संसद सदस्यों के लिए अयोग्यता का प्रावधान है। इस प्रावधान में कहा गया कि कोई व्यक्ति संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं हो सकता, यदि
1. वह भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ के पद पर हो;
2. यदि उसे किसी न्यायालय द्वारा पागल घोषित कर दिया गया है;
3. यदि वह न्यायालय द्वारा उन्मुक्त दिवालिया घोषित कर दिया गया है अथवा किसी कारण से भारतीय नागरिकता की समाप्ति हो गया है और संघीय विधि के द्वारा अयोग्य ठहराया गया है।