Sunday, November 24, 2024
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परत दर परत मुंबई – एक टाइम कैप्सूल है  भूलेश्वर

आज बहुत सालों  के बाद भूलेश्वर के इलाक़े में जाना हुआ, तंग सड़कों,गलियों में बिना किसी ख़ास एजेंडे के खूब घूमा गया। एक लंबे समय से मुंबई के उपनगरों ख़ासकर अंधेरी में रहने के बाद इस इलाक़े को देख कर ऐसा लगा जैसे टाइम मशीन में बैठ कर उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में पहुँच गया हूँ। धर्म, व्यवसाय, खानपान सब कुछ पुराना सा है, यह भी नहीं कि बदलाव नहीं हुआ है पर फिर भी यहाँ उस शहर की पूरी फील है जिस में समृद्ध परंपरा और इतिहास छुपा हुआ है और जिसे लोग गर्व से बंबई या बॉम्बे के नाम से पुकारा करते थे। अगर देखा जाए तो इसे पूरे भारत के कोने कोने से आए लोगों ने बड़े संघर्ष और जतन से सजाया और संवारा है। कल की घुमक्कड़ी में सन् 1977 में ठाकुरद्वार के नेशनल हॉस्टल में बिताए दिन भी  रिफ्रेश हो गए।

जो लोग मुंबई के उपनगरों में रहते हैं उन्हें जरा भी अंदाज़ा नहीं है कि इस शहर का दिल असल में कहाँ धड़कता है। सच पूछिए तो यह भूलेश्वर और उससे सटे हुए कालबा देवी, क्रॉफ़र्ड मार्केट और मोहम्मद अली रोड ही वह इलाक़े हैं जहां आधुनिक मुंबई की नींव रखी गई थी। यहीं धार्मिक आंदोलन आंदोलन शुरू हुए, संगीत के उस्तादों ने संगीत को तराशा ,सामाजिक और राजनीतिक चेतना की शुरुआत हुई, छोटे से ले कर बड़े बड़े व्यवसायों की बुनियाद रखी गई, इतना समय गुज़रने और मुंबई के व्यापक विस्तार के वावज़ूद  यहाँ व्यवसाय की जड़ें बड़ी गहरी फैली हुई हैं। आज भी भूलेश्वर और उसके आसपास के क्षेत्र में मुंबई शहर के हर तरह के व्यवसाय का होल -सेल ट्रेड केंद्र है। जब आप यहाँ की तंग सड़कों पर घूमने निकलेंगे तभी वहाँ की भीड़ भाड़ और जीवन्तता को देख कर आप को अंदाज़ा लगेगा कि शहर का यह हिस्सा अपने आप में एक विलक्षण इतिहास समेटे हुए है।

कहते हैं कि छोटे बड़े टापुओं से बने इस महानगर बॉम्बे/ बम्बई/ मुंबई के मूल निवासी कोली समुदाय के लोग हैं और उनका मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना, नमक बनाना और खेती बाड़ी करना था। यही वह इलाक़ा है जहां मछली पकड़ने वाले  और नमक बनाने वालों की अधिष्ठात्री देवी मुंबा देवी का मंदिर  है। ये मूलत: गाँव देवी थीं जिन्हें गाँव के लोग मुंबा आई (मराठी में माँ) कहते थे इसी से इलाक़े का नाम मुंबई पड़ा। अगर ज़्यादा  छानबीन करेंगे तो पता लगेगा कि मुंबा देवी माँ पार्वती का ही रूप है। मूल  मंदिर कम से  कम छै सौ साल पुराना है। अठारहवीं शताब्दी में इसको क्षति पहुँची थी जिसका कारण ठीक ठीक पता नहीं है उसी दौरान  इसका पुनर्निर्माण हुआ था।आज इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति मुंबई में आ कर बसता है और मुंबा देवी की अर्चना आराधना करता है माँ मुंबा देवी उसकी झोली अपने आशीर्वाद से भर देती है इसी लिए कालांतर में यह मंदिर हर मुंबई वासी का अपना मंदिर बन गया है।

जो लोग बड़े बड़े माल और स्टोर से ख़रीदारी करते हैं वे यहाँ मिलने वाले सामान के रेट देखते हैं तो हैरान रह जाते हैं तब उनकी समझ में आता है कि यहाँ से ख़रीद के ले जा कर बड़े बड़े स्टोर वाले दस बीस नहीं सौ प्रतिशत से भी अधिक मार्जिन कमाते हैं। चान्या चोली, सलवार सूट,बच्चों की ड्रेस, असली और आर्टिफिशियल ज्वैलरी, घर घरेलू सामान सभी कुछ यहाँ वाजिब दाम में मिलता है इसीलिए ये गालियाँ ख़रीदारों और ख़ास कर महिलाओं से गुलो गुलज़ार रहती हैं। अब जब लोग ख़रीदारी के लिए आयेंगे तो पेट पूजा भी करेंगे उसका भी भरपूर बंदोबस्त है, क़ुल्फ़ी, गरमागरम जलेबी, फाफड़ा, डोसा, इडली, सैंडविच और भी न जाने कितने क़िस्म के विकल्प मौजूद हैं। भगत तारा चंद, प्रकाश दुग्ध मंदिर, हीरा लाल काशी दास भजिया वाला मुंबई जलेबी वाला, आदर्श थाली, पंजाब घसीटा राम, मोहन लाल एस मिठाईवाला किस किस के नाम लिए जाएँ, क्वालिटी अच्छी दाम वाजिब यही इस इलाक़े का मूल मंत्र है।

यही नहीं कुछ ऐसी सब्ज़ी और फल भी यहाँ की गलियों में मिल जाएँगे जो अन्य इलाक़ों में मुश्किल से ही दिखते हैं। कल यहीं से कमरख़, हरी और ताज़ी काली मिर्च, सोंफ़, कमल ककड़ी ख़रीदी, सच इस ख़रीदारी में बड़ा आनंद मिला। इस इलाक़े की सड़कों, भवनों को हेरिटेज का दर्जा मिलना चाहिए,ता कि लोग अपने भवनों के फ़साड के साथ छेड़छाड़ न करें और  यह पुराने व्यावसायिक केंद्र के साथ ही मुंबई की शानदार विरासत के रूप में सालों  साल तक अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखे।

(लेखक स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और सामाजिक व सांस्कृतिक विषयों पर लेखन करते हैं।) 

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