उज्जैन में विक्रम संवत् के अवसर पर गौरव यात्रा निकाली जाती है इतिहास के गवाक्षों से झांक रहा है वह दिन जब विक्रम संवत् 2000 पूरे होने के उपलक्ष्य में समूची विक्रम नगरी झूम उठी थी। और उसके साथ साथ महानगरों की धरा पर भी विक्रम के पराक्रम का परचम लहरा उठा था।
विक्रम संवत् दो हजार का पूरा होना भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। धूमिल अतीत में जिस विक्रम संवत् का प्रर्वतन हुआ था, उसके पथ की वर्तमान रेखा यद्यपि अंधकार में डूबी है परंतु इस डोर के सहारे एवं गौरवमय रहे हैं। विक्रम संवत् के प्रथम हजार वर्षों में हमने मात्र शिवनागों, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त, यशोधर्मन, विष्णुवर्धन आदि के बल और प्रताप के सम्मुख विदेशी शक्तियों को थर-थर कांपते हुए देखा।
भारत के उपनिवेश बसते देखे, भारत की संस्कृति और उसके धर्म का प्रसार बाहर के देशों में देखा। कालिदास, भवभूति, भारवि, माघ आदि की काव्य-प्रतिभा तथा दंडि और बाण भट्ट की विलक्षण लेखन-शक्ति देखी। इसके बाद भारतीय संस्कृति के उत्थान और पतन के कई दौर देखे लेकिन भारतीय संस्कृति के अभिमानियों के लिए यह कम गौरव की बात नहीं कि आज भारतवर्ष में प्रवर्तित विक्रम संवत्सर, बुद्ध निर्वाण काल-गणना को छोड़कर संसार के प्रायः सभी प्रचलित ऐतिहासिक संवतों से अधिक प्राचीन है।
विक्रम यह था वह था ये विवाद केवल अनुसंधान प्रिय पंडितों का समीक्षार्थ विषय है। दरअसल विक्रम में हम अपने विशाल देश की परतंत्र पाश पीड़ा से मुक्ति दिलाने वाली समर्थ शक्ति की अभ्यर्थना करते हैं। इसकी पावन स्मृति की धरोहर संवत वर्ष काल गणना की स्मरण मणि की तरह इतिहास की श्रृंखला भी एक-दूसरे से जुड़ी चली जाती है।
विक्रम, कालिदास और उज्जयिनी भारत के लिए स्वाभिमान और गौरव का विषय हैं। उसी उज्जयिनी या उज्जैन में पद्म भूषण, साहित्य वाचस्पति स्व. पं. सूर्यनारायण व्यास से विक्रम संवत के दो हजार वर्ष पूर्ण होने पर 1942 में एक मासिक पत्र ‘विक्रम’ का प्रकाशन आरंभ किया। इससे पहले पं. व्यास अपने पंचांग का प्रकाशन करते थे। विक्रम मासिक का प्रकाशन एक विशेष उद्देश्य को लेकर किया गया था। और वह उद्देश्य भारत के गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा करना था।
उन्हीं दिनों विक्रम द्विसहस्राब्दी की योजना भी बनी । उस योजना में ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया का विशेष सहयोग रहा। विक्रम पत्र के माध्यम से जब यह योजना देश के सम्मुख पं. व्यास ने रखी थी, तब भी वे नहीं जानते थे कि उनकी इस योजना का स्वागत होगा। विशेषकर वीर सावरकर और केएम मुंशी जी ने अपने पत्र सोशल वेलफेयर में इस योजना का प्रारूप पूरे विवरण के साथ प्रकाशित किया।
जैसे-जैसे समारोह का कार्य प्रगति कर रहा था, देश के विभिन्न भागों में एक सांस्कृतिक वातावरण बन गया था। लगभग उसी समय पत्र-पत्रिकाओं में रवींद्रनाथ टैगोर और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने भी विक्रम पर कविताएँ लिखीं। शौर्य और विक्रम उत्सव के इस उत्सव के अवसर पर हमारे खाये बल, पराक्रम की चर्चा देशी राजाओं के रक्त में उबाल अवश्य ले जाएगी। वैसे इन आयोजन में हिंदू मुस्लिम भेदभाव को कोई जगह नहीं थी किंतु जिन्ना के विरोध से वातावरण में विकार पैदा हो गया लेकिन इस सबके बावजूद चेतना फैल रही थी, जागृति फैल रही थी।
मुंबई में बड़े पैमाने पर यह समारोह हुआ। लगभग उसी समय प्रख्यात फिल्म-निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट ने पं. व्यास के आग्रह पर विक्रमादित्य सिनेमा का निर्माण आरंभ किया। इस फिल्म में विक्रमादित्य की मुख्य भूमिका भारतीय सिनेमा जगत के महानायक पृथ्वीराज कपूर ने निभाई थी। विक्रम कीर्ति मंदिर का निर्माण कर उसमें पुरातत्व संग्रहालय चित्रकला कक्ष प्राचीन ग्रंथ संग्रहालय आदि रखने का निश्चय किया गया। कुछ समय बाद ही रियासतों का विलीनीकरण हुआ, मध्य भारत बना और हजारों तरह की बाधाओं को पार कर उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय बना।
इस अवसर पर हिंदी मराठी अंग्रेज़ी में महाभारत से बड़ा एक ग्रंथ ‘विक्रम स्मृति ग्रंथ’ भी पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास के सम्पादन में प्रकाशित किया गया… इस ग्रंथ में उस समय उपलब्ध विश्व के सभी प्रमुख लेखक राजनेता इतिहासकार ने विक्रम कालिदास और उज्जयिनी पर लिखा, विश्व के सभी महान चित्र कारों ने इसकी साज सज्जा की थी , विक्रम कालिदास और उज्जयिनी पर पंडित व्यास के इस अत्यंत प्रामाणिक कार्य पर इस से पूर्व इसके बाद इस से आगे कोई काम नहीं हुआ बल्कि हज़ारों शोध प्रबंध डॉक्टर पीएचडी इस ग्रंथ से सामग्री उठा उठा कर विभिन्न विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हो गए!
(लेखक परिचय: डॉ.पं.राजशेखर व्यास पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक, दूरदर्शन / ज्योतिषाचार्य,प्रखर वक्ता,अनेक ग्रंथ और पुस्तकों के लेखक हैं….भगत सिंह पर विशेष शोध और लेखन के लिए जाने जाते हैं)