क्या शून्य का सबसे पहले उपयोग भारत में हुआ था? क्या शून्य के गणितीय महत्व को दुनिया में फैलाने वाला भारत ही है? इन दोनों सवालों का जवाब हां है। खबरों की मानें तो भारत सरकार प्राचीन भारत में शून्य की अहम खोज के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, कला, संगीत और दार्शनिक पहलुओं से दुनिया को रूबरू कराने की पहल कर रही है।
इससे पहले सरकार कुछ ऐसा ही काम योग के लिए भी कर चुकी है जिसमें योग की भारतीय परंपरा को दुनिया में मान्यता दिलाई गई है। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी यूनेस्को मुख्यालय में शून्य पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी कर रही हैं। इसका आयोजन यूनेस्को में भारत के स्थाई प्रतिनिधिमंडल और पेरिस स्थित पियरे एंड मेरी क्यूरी यूनिवर्सिटी साथ मिलकर कर रहे हैं।
इसमें यूनेस्को की महानिदेशक इरीना बोकोवा भी हिस्सा ले रही हैं। सम्मेलन के कई सत्रों में शून्य के अलग-अलग पहलुओं पर संबोधन होंगे। जाने माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल ने बताया कि भारत के गणितज्ञों को संख्याओं की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। सदियों पहले शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ, जिसके आधार पर गणित की सारी बड़ी गिनतियां होती हैं।
प्राचीन भारतीय शास्त्रों और श्लोकों में गणित के तथ्य छिपे हुए हैं, जो कुछ न होकर भी सब कुछ कहते हैं। उन्होंने कहा कि गणित के क्षेत्र में इस महान खोज को आज दुनिया के सामने भारत के संदर्भ में रखना अच्छी पहल है। उन्होंने कहा कि प्राचीन ग्रंथों में ऐसी चर्चा रही कि आखिर शून्य किसे कहेंगे।
अर्थात जो इतना छोटा हो जिसे हम माप नहीं सकेंगे, वही शून्य है। विज्ञान की भाषा में जो प्लैंक सीमा से छोटा हो उसे शून्य कहेंगे। कई वैज्ञानिक शोधों में कहा गया है कि यदि आप शून्य के भाव को देखें तो आप देखेंगे कि शून्य का अपना एक महत्व है।
बिग बैंग का सिद्धांत कहता है कि महाविस्फोट से पहले जब दिक, काल नहीं था तब ब्रह्मांड सूक्षमातिसूक्ष्म रूप में था। उसी सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप को प्राचीन ग्रंथों में गुहा कहा गया है और शून्य की उत्पत्ति भी इसी से जुड़ी बताई गई है।
साभार- http://www.nayaindia.com/ से