अचानक दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी, रावी ने जाकर दरवाज़ा खोला तो स्तब्ध रह गयी| लेकिन यह क्या, ये तो वही व्यक्ती है जिनसे रावी कल मिली थी| इससे पहले की वो कुछ कह पाते की रावी बोल पड़ी – मैंने कुछ नहीं किया, आपका बटुआ रास्ते पे पड़ा मिला।
और इससे पहले रावी कुछ और कहती, दरवाजे पर खड़े साहब बोले- “अरे मैं इसीलिये नही आया था| मैं तो तुम्हे शुक्रिया कहने आया था, तुमने जिस ईमानदारी से मेरा बटुआ लौटाकर मेरी बहूत मदद की है, उससे मैं बहूत खुश हू|”
इतना कहते हुये वह महाशय अंदर घुस गये और एक टूटी हुई चारपाई पर बैठ गये| फिर उन्होने पूछा – “तुम्हारे घर मे और कौन-कौन है|”
रावी सिर्फ उनका चेहरा देखती रही, और शायद वह उसके इस तरह देखने का आशय समझ गये| रावी का इस दुनिया ने कोई नही है, वो अनाथ है| वो गुमसुम सी चुप खड़ी रही|
उन्होने फिर पूछा – ”अच्छा एक बात बताओ तुमने मुझे वह बटुआ वापस क्यो कर दिया था, तुम खुद उसे ले सकती थी, उसमे तो ढेर सारे पैसे थे जिससे तुम चाकलेट खा सकती थी”
और उसने एक मासूम सा जवाब दिया – “मेरी मम्मी कहती थी किसी दूसरे की चीज को बिना पूछे नही लेना चाहिये|”
उन्होने उठकर प्यार से रावी को गले लगाया और रावी के सर पर हाथ फेरते हुये बोले- “तुमसे सच्चा और ईमानदार और कोई नही हो सकता की तुम्हे इन पैसो की सख्त जरूरत है और तुमने मुझे इस तरह इसे वापस कर दिया जैसे ये रुपये नही कागज के टुकड़े मात्र हो|”
फिर वह सज्जन बाहर चले गये और थोड़ी देर मे हाथ मे एक थैला लेकर वापस आये| उन्होने फिर चाकलेट का पैकेट रावी के हांथो मे रख दिया, उसमे खाना और चॉकलेट के कुछ पैकेट थे, उन्होने रावी को देते हुये कहा – “खा लेना|”
और अपना मोबाइल नंबर देते हुये बोले -“तुम कभी भी खुद को अकेला मत समझना, कोई हो या ना हो मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा रहूँगा|”