दिल्ली। वट का बीज़ इतना छोटा और अदृश्य सरीखा होता है कि उसके आकार को देखकर कोइ अनुमान नहीं कर सकता कि इसके भीतर इतना बड़ा पेड़ छिपा है। रचनात्मकता को बढावा देने में साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका इसी तरह की होती है। वरिष्ठ कथाकार एव बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के पूर्व निदेशक प्रो रामधारी सिंह दिवाकर ने हिन्दू कालेज में एक आयोजन में कहा कि महाविद्यालयों – विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभाग साहित्य प्रेम की नर्सरी बनें इससे अधिक सुन्दर बात कुछ हो नहीं सकती। प्रो दिवाकर हिन्दी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित दीवार पत्रिका 'अभिव्यक्ति' के नये अंक का लोकार्पण कर रहे थे। उन्होंने इस अवसर पर अपअने अध्यपकीय जीवन के संस्मरण भी सुनाए।
आयोजन की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ आलोचक और साहित्य अकादेमी की हिन्दी समिति के सदस्य प्रो माधव हाड़ा ने एक अन्य पत्रिका 'लहर' का लोकार्पण करते हुए कहा कि मशीनी दौर में युवा विद्यार्थियों में हाथ से लिखने के प्रति गैर जिम्मेदारी का भाव बना हुआ है लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिये कि परीक्षा लिखने की ही होती है। उन्होने युवा विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि रचनात्मकता जीवन में बहुत उपयोगी मूल्य है, शिक्षा में भी रटने वाले भले अधिक अंक पा जाएं लेकिन आगे वही बढ्ते हैं जिनमें रचनात्मकता के गुण होते हैं। प्रो हाड़ा ने इस सम्बन्ध में हिन्दी साहित्य सभा की गतिविधियों की सराहना करते हुए कहा कि इनसे हिन्दी साहित्य को नये और गम्भीर पाठक मिलेंगे।
इससे पहले विभाग के प्रभारी डा पल्लव ने दोनों अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि साहित्य के विद्यार्थियों को रचनात्मकता के ऐसे अवसर उपलब्ध करवाने के पीछे उद्देश्य यही है कि इनका व्यक्तित्व वास्तव में बहुआयामी बन सके। पत्रिकाओं की सम्पादक डा नीलम सिंह ने अतिथियों का आभार माना। विभाग की तरफ़ से मिहिर पंड्या और कुमारी अन्तिमा ने दोनों मेहमानों को पुस्तकें भेंट कीं। डा अरविन्द कुमार सम्बल ने लेखकों का परिचय दिया। आयोजन में विभाग के प्राध्यापकों सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे।
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नीलम सिंह
संपादक, लहर
हिन्दी विभाग, हिन्दू कालेज