विश्व मंदावी नंगे पांव मीलों दूरी तय कर छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में लोहानीगुंडा ब्लॉक मुख्यालय तक पहुंचा, ताकि अपनी बेटी की शादी के लिए निजी बैंक से कर्ज का बंदोबस्त हो सके। लेकिन उन्हें उस समय झटका लगा जब बैंक ने उनके ऋण आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया कि उनके पास ऋण लेने के लिए आवश्यक जमीन नहीं है। ऋण पुस्तिका (ग्रामीण की लोन बुक) में केवल तीन एकड़ जमीन उनके नाम से दर्ज है, जबकि उनके पास बेलार गांव में करीब 4 एकड़ से ज्यादा जमीन है। राजस्व विभाग की स्थानीय टीम ने पिछले साल नया रिकॉर्ड तैयार किया था और उसमें गड़बड़ी के कथित आरोप हैं। मंदावी अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जिन्हें इस तरह की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। आदिवासियों की बड़ी आबादी इस समस्या को लेकर शिकायत कर रही है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए बस्तर के जिलाधिकारी अमित कटारिया ने जिले के सभी भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण करने की पहल की है। यह इलाका वामपंथी चरमपंथियों का गढ़ माना जाता है। जमीन के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण करने की प्रक्रिया जनवरी में शुरू हुई थी और यह रिकॉर्ड समय में पूरा कर लिया गया। पिछले हफ्ते राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने बस्तर में ऑनलाइन जमीन रिकॉर्ड सेवा की शुरुआत की।
कटारिया ने कहा, ‘यह कदम बस्तर में भूमि सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।’ उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड को डिजिटलीकृत करने की राह में सबसे बड़ी चुनौती अच्छे सॉफ्टवेयर टीम का चयन करना था। रायपुर की सॉफ्टवेयर कंपनी कंप्यूटर प्लस को काम की जिम्मेदारी दी गई और उसने सफलतापूर्वक इस काम को पूरा किया। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को कहा कि बस्तर के इस मॉडल को अन्य जिलों में भी लागू किया जाए। 598 गांवों के जमीन का रिकॉर्ड दर्ज हो चुका है, जिनमें से ज्यादातर इलाके नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में हैं। अब कंप्यूटर पर बस एक क्लिक करते ही 1952 से जमीन के सभी रिकॉर्ड सामने आ जाएंगे। सॉफ्टवेयर को आगे अद्यतन किया जाएगा, ताकि 1930-32 तक के रिकॉर्ड को इसमें शामिल किया जा सके। आदिवासियों को अपनी जमीन के बारे में सही-सही ब्योरा पता नहीं होता है, ऐसे में उनका शोषण भी खूब किया जाता है और कई बार तो उन्हें जमीन के अधिकार से वंचित तक कर दिया जाता है।
साभार- http://hindi.business-standard.com/ से