Wednesday, December 25, 2024
spot_img
Homeखबरेंकपिल शर्मा की ज्विगाटों की आईएफएफएलए द्वारा लॉस एंजलिस में विशेष...

कपिल शर्मा की ज्विगाटों की आईएफएफएलए द्वारा लॉस एंजलिस में विशेष प्रदर्शन

पिछले हफ्ते लॉस एंजलिस के ल्यूमिनर म्यूज़िक हाल ( Lumiere Music Hall )में कपिल शर्मा की नयी फिल्म Zwigato की आईएफएफएलए ( IFFLA) द्वारा स्पेशल स्क्रीनिंग की गयी। इस अवसर पर मशहूर फिल्मकार, लेखक और फिल्म की निर्देशक नंदिता दास मौजूद थीं। जैसा की विदित है की फिल्म Zwigato एक फ़ूड डिलीवरी वाले की कहानी है। उसके सुख-दुःख, उसकी पीड़ा, उसके सम्मान-अपमान और एक भावुक किरदार मानस की कहानी है। कपिल शर्मा का नाम आते ही लोग सोचते हैं की उन्होंने शायद कोई मज़ाकिया काम किया होगा पर फिल्म एक गंभीर विषय पर है और कपिल ने अपने व्यवहार से बिलकुल अलग काम किया है। कपिल शर्मा आज एक ब्रांड बन चुके हैं और उनके नाम से ही प्रोडक्ट बिकते हैं। फिल्म की स्क्रीनिंग में भी ऐसा ही हुआ और बुधवार की शाम होने के बावज़ूद, पूरा हाल दर्शकों से खचाखच भरा था। समझना मुश्किल है कि लोग नंदिता दास की वजह से आये थे या फिर कपिल शर्मा की वजह से आये थे पर हाल में इतनी भीड़ देखकर इस स्पेशल स्क्रीनिंग के आयोजक आईएफएफएलए (IFFLA ) बहुत खुश हुए होंगे।

इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ लॉस एंजेलिस (INDIAN FILM FESTIVAL OF LOS ANGELES) (IFFLA) वर्ष भर इस तरह के आयोजन करता रहता है और भारत की चुनिंदा फिल्मों का प्रदर्शन लॉस एंजेल्स के अलग-अलग स्थानों पर करता रहता है। इसी क्रम में इस बार वे नंदिता दास की Zwigato का प्रदर्शन कर रहे थे। फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले नंदिता दास सबसे मिलीं और बातें की। तकनीकी ख़राबियों के चलते फिल्म निर्धारित समय से नहीं शुरू हो पायी इसलिए नंदिता दास ने पहले अपने बारे में लोगों को बताया। नंदिता जो आजकल एक सफल लेखक और निर्देशक हैं, उससे पहले वो 40 फिल्मों में अभिनय भी कर चुकी हैं। बतौर निर्देशक, Zwigato, नंदिता दास की तीसरी फिल्म है। इससे पहले वो 2008 में गुजरात दंगों पर बनी फिल्म फ़िराक उसके बाद 2018 में मंटो का निर्देशन कर चुकी हैं। बतौर फिल्म निर्देशक वो हमेशा एक ऐसे सामजिक विषयों को चुनती हैं जो अक्सर हमारे सामने घटित होते हैं पर हैं हमें महसूस नहीं होते। Zwigato भी एक ऐसे ही विषयवस्तु पर बनी फिल्म है और आजकल के परिवेश में सामायिक है।

 

भारत जैसे देश में जहाँ मेहमानों के लिए 24 घंटे चूल्हा जलता रहता था और कुछ न कुछ बनता रहता था, आज अपने घर में हम खुद ही मेहमान हो गए हैं। सब कुछ बाहर से आने लगा है तो ऐसे में फ़ूड डिलीवरी वाले व्यापार खूब फल-फूल रहें हैं पर वो कहते हैं न, कि हर वो चीज़ जो चमकती है, सोना नहीं होती। कुछ वैसा यहाँ भी है, फ़ूड डिलीवरी का व्यापार खूब चल रहा है, व्यापारी भी पैसा कमा रहें हैं पर इन सबके बीच फ़ूड डिलीवरी वाले का जीवन किसी को नहीं दिखता और सबको खाना खिलाने वाले अक्सर भूखे रह जाते हैं, यही इस फिल्म की कहानी है। विषय-वस्तु अच्छी है पर कहानी को सरल तरीके से परोसा जाता तो बात कुछ और होती। एक गंभीर विषय को गंभीरता से कहने की बजाय अगर यही बात व्यंग में कही जाती तो कपिल शर्मा को फिल्म में हीरो रखने का मतलब भी सार्थक होता और फिल्म भी व्यावसायिक रूप से ज्यादा सफल होती। आखिर कपिल शर्मा, नवाज़ज़ुद्दीन नहीं हो सकते हैं और नवाज़ज़ुद्दीन, कपिल शर्मा नहीं बन सकते। दोनों की अपनी-अपनी ताकत है। खैर, ये नंदिता दास की तीसरी फिल्म है और कपिल शर्मा की भी तीसरी फिल्म है, दोनों को अभी बहुत लम्बा सफर तय करना है और उम्मीद है, आने वाले समय में और बेहतर फ़िल्में देखने को मिलेंगी।

फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद, Los Angeles की मशहूर लेखक और निर्देशक स्मृति मुंधरा ने नंदिता दास से बातचीत की। मुंधरा, अपनी डाक्यूमेंट्री A Suitable Girl के लिए जानी जाती हैं जिसके लिए उनकी बड़ी सराहना हुई थी और कई पुरस्कार उनके नाम हुए थे। 2019 में उनकी डाक्यूमेंट्री St. Louis Superman, ऑस्कर के लिए भी नामांकित हुई थी।

मुंधरा से कई मुद्दों पर बात-चीत हुई। उनसे बात करते हुए, नंदिता ने कई सामजिक और फिल्म से जुड़े विषयों पर बात की। भारत में आज हर इंसान के पास सेल फ़ोन है पर वो इसे प्रगति हिस्सा नहीं मानतीं। उनके हिसाब से कई बार अच्छी डील मिलने के कारण या फिर कुछ कंपनियां सस्ते रेट पर ये सेल फ़ोन मुहैया कराती हैं इसलिए लोगों के पास सेल फ़ोन है पर वो समाज में सबके लिए समानता को ही सही विकास मानती हैं। भारत की सामजिक असमानता से वो असहज नज़र आयीं। हालांकि भारत में विकास के बहुत से और बिंदु भी हैं जिन पर उनसे बात की जा सकती थी पर उन्होंने सिर्फ अपनी बात रखी। उनका मानना है की भारत अभी भी बहुत सी सामजिक कुरीतियों से जूझ रहा है और इन सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ कोई बोल नहीं रहा है। एक फिल्मकार के तौर पर वो इन मुद्दों पर बात कहना चाहती हैं जबकि वो मानती हैं की फिल्मों से वो कोई रेवोलुशन नहीं ला सकतीं पर वो कोशिश कर रहीं हैं।

उन्होंने बताया की एक लेखक तौर पर जब वो फ़िल्में लिखती हैं तब वो सिचुएशन को ज्यादा समझ पाती है इसलिए वो अपनी फिल्मों की लेखिका स्वयं होती हैं या फिर किसी और के साथ मिल कर लिखती हैं। बतौर लेखक और निर्देशक वो फिल्म के बारे में, उसकी लोकेशन के बारे में और किरदार के बारे में ज्यादा समझ सकती हैं। Zwigato के बारे में बात करते हुए वो बताती हैं की सब लोग उन्हें बंगाली समझते हैं पर वो उड़िया हैं और ये पूरी फिल्म उन्होंने उड़ीसा में ही शूट की ताकि लोगों को उड़ीसा के बारे में पता चल सके। फिल्म में कपिल शर्मा और शहाना की डायलॉग डिलीवरी पर उन्होंने ज्यादा काम किया क्योंकि वो लोग उस जगह नहीं रहते।

फिल्म के ज्यादातर कलाकार वहां के लोकल लोग थे जिनको एक्टिंग का बहुत थोड़ा या बिलकुल भी अनुभव नहीं था। ऐसे में उनके साथ काम करना पड़ता था। ज्यादातर लोग रिहर्सल में अच्छा करते थे पर सेट पर आते ही कपिल शर्मा को देख कर वो नर्वस या फ्रीज़ हो जाते थे क्योंकि कपिल शर्मा टीवी का एक पॉपुलर चेहरा हैं और लोग उनको सामने देखकर हतप्रभ हो जाते थे तो उनके साथ उस सिचुएशन में काम करना पड़ता था। कपिल शर्मा की नेचुरल एक्टिंग से वो बहुत प्रभावित लगीं। फिल्म की एक सिचुएशन के बारे वो बताती हैं कि जब कपिल एक फ्लिकरिंग tube लाइट को ठीक करते हुए अपनी वाइफ को ये कहते हैं की तुमको काम करने की कोई ज़रुरत नहीं हैं, सब ठीक हो जायेगा तो वो शॉट उन्होंने बहुत ही सरल तरीके से किया और यही वो अपनी फिल्मों में करना चाहती हैं कि साधारण तरीके से असाधारण बात कही जाए।

जब मैंने उनसे पूछा की ये फिल्म उन्होंने कोविड के दौरान बनाई तो उनको कितनी समस्या हुई, इस पर बोलते हुए उन्होंने कहा की मुश्किल था क्योंकि हमारा बजट लिमिटेड था और सब कुछ एक निश्चित धन राशि और एक निश्चित समय के अंदर ही करना था। क्योंकि कपिल शर्मा खुद एक पॉपुलर टीवी शो चला रहे हैं. वे भी ज्यादा दिन साथ नहीं रह सकते थे। ऐसे में वो अपने एपिसोड के बैंक बना कर शूटिंग पर आते थे और उतने दिनों में ही फिल्म को पूरा करना था पर फिर भी लोगों के सहयोग और हमारे प्रयत्न से ये फिल्म बन पायी।

कुल मिलाकर फिल्म की स्क्रीनिंग अच्छी रही। लोगों की प्रतिक्रिया वैसी ही थी जैसी बॉक्स ऑफिस पर थी पर नंदिता दास को और उनकी फिल्मों को करीब से जानना अच्छा रहा। उम्मीद है आने वाली तमाम फिल्मों में वे बतौर निर्देशक और लेखक और बेहतर काम करेंगी और कुछ हल्की-फ़ुल्की फ़िल्में भी बनाएंगी क्योंकि विद्या बालन ने कहा हैं की फ़िल्में सिर्फ तीन चीज़ों से चलती हैं “एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, और एंटरटेनमेंट!!

फोटो सौजन्यः अविनाश श्रीवास्तव

रचना श्रीवास्तव अमेरिका में रहती हैं और वहां की गतिविधियों पर हिंदी मीडिया के लिए नियमित रूप से रिपोर्टिंग करती हैं

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार