बचपन में हम दादी-नानी से सुनी हुई कहानियों से लेकर बच्चों की कहानियों की पुस्तको ंमें जिन परीकथाओं की रोमांचक दुनिया में सैर करते थे उसे सुन पढ़कर लगता था कि काश! कोई ऐसी परी हमें भी मिल जाए जो हमारे छोटे छोटे सपनों को, हमारे रोमांच को, हमारी सोच को आकार दे और पजो कहानी में परी किसी बच्चे को पलक झपकते हरी दे दिया करती है। ऐसी परी का मिलना हर किसी के भाग्य में नहीं होता लेकिन ओड़ीशा के वे हजारों बच्चे इस बात पर जरुर प्रसन्न होते होंगे कि उनको कोई परी भले ही नहीं मिली है बल्कि एक ऐसा देवदूत मिला है जो बगैर मांगे उनकी हर इच्छा पूरी कर रहा है। ये देवदूत है डॉ. अच्युत सामंता, जिसकी विराट् सोच के आगे बड़े से बड़े कॉर्पोरेट और सर्वशक्तिमान सरकारों की उपलब्धियाँ भी छोटी पड़ जाए। इस अकेले व्यक्ति ने अपने संकल्प से वो कर दिखाया है जो करोड़ो अरबों खर्च करने वाली सरकारें, एनजीओ और बड़े से बड़े कॉर्पोरेट घराने नहीं कर सकते। अच्युत सामंता अपनी मिसाल खुद हैं, उनके जैसा दुर्लभ व्यक्तित्व इस पृथ्वी पर है ये तभी जाना जा सकता है जब आप भुवनेश्वर में https://kiss.ac.in/ और https://kiit.ac.in/ जैसे संस्थानों को प्रत्यक्ष जाकर देखें।
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कीस सामाजिक न्याय के साथ आत्मनिर्भर भी हैः -प्रोफेसर अच्युत सामंत
ओड़िशा की धरती पर जन्मा एक देवदूत
जनसेवा,लोकसेवा तथा आदिवासी सेवा हेतु समर्पण के यथार्थ प्रतीक,मानवता की एक बेहतरीन मिसाल,कर्म ही जिसका धर्म है,सेवा की जिसकी निष्ठा है और आत्मविश्वास ही जिसकी विशिष्ट पहचान है, वे हैं संतशिरोमणि,निःस्वार्थ कर्मवीर,महा जननायक तथा सच्चे गांधीवादी प्रोफेसर अच्युत सामंत जो प्राणप्रतिष्ठाता हैं ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कीट-कीस दो डीम्ड विश्वविद्यालयों के तथा कंधमाल के माननीय सांसद हैं। उनके पास तीनों प्रकार की प्रतिभाएं हैं जिनके बदौलत दुनिया उनसे सच्चे दिल से श्रद्धा रखती है। श्रद्धा तीन प्रकार की होती हैःप्रतिभा,शील तथा संपत्ति को लेकर। दुनिया व्यक्ति विशेष की असाधारण प्रतिभा, आदर्श व पारदर्शी पवित्र चरित्र (शील) तथा संपत्ति से श्रद्धा करती है।
प्रोफेसर अच्युत सामंत ओडिशा उत्कल विश्वविद्यालय से 1987 में रसायनविज्ञान में एम.एससी हैं। सामाजिक विज्ञान में डाक्टरेट हैं। 22साल की उम्र से अध्यापन कार्य आरंभ कर कुल 33 वर्षों के शिक्षण का लंबा अनुभव भी है उनके पास।उनको भारत समेत विश्व के अनेक नामी विश्वविद्यालयों से कुल लगभग 47 मानद डाक्टरेट की डिग्री प्राप्त है। वे सबसे कम उम्र के कीट डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के संस्थापक कुलाधिपति रह चुके हैं।वे विश्व के प्रथम आदिवासी आवासीय कीस डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के संस्थापक कुलाधिपति हैं। 2018-19 में वे राज्यसभा के बीजू जनतादल सांसद मनोनीत हुए। आज वे कंधमाल संसदीय लोकसभा क्षेत्र से विजयी होकर बीजू जनतादल के माननीय सांसद हैं।उनकी संस्था कीट एक कारपोरेट है जबकि कीस(आदिवासी आवासीय विद्यालय) कीट की सामाजिक जिम्मेदारी है।58वर्षीय प्रोफेसर अच्युत सामंत एक चरित्रवान पारदर्शी व्यक्तित्व हैं। वे प्रातः स्मरणीय,दर्शनीय तथा वंदनीय महाजननायक हैं।
ओडिशा प्रदेश के आदिवासी समुदाय के जीवित मसीहा प्रोफेसर अच्युत सामंत के मात्र नित्य दर्शन के लिए हजारों लोगों की भीड उनके नयापली किराये के मकान के सामने तथा कीस प्रांगण में साल के 365 दिन दिखाई देती है। प्रतिदिन उनके दर्शन करनेवाले यह बताते हैं कि प्रोफेसर अच्युत सामंत के दर्शन मात्र से ही उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। उनके सुंदर चेहरे की सहज मुसकराहट जैसे प्रत्येक समस्या के समाधान हेतु जीवंत संजीवनी बूटी है। इंसानीयता, प्रेम,करुणा,दया,सेवा,सहयोग,भलाई तथा परोपकार आदि उनके साधुमना व्यक्तित्व की सहज पहचान है। उनका आत्मीय,सरल,मृदुल तथा सहज मिलनसार व्यक्तित्व भी प्रतिदिन उनके दर्शन करनेवाले की मनोकामना पूर्ति के लिए पर्याप्त है। प्रोफेसर अच्युत सामंत का जीवन-दर्शनःआर्ट आफ गिविंग(2013 से) भी उनको विश्व का महा दाता बना चुका है जिसे आज पूरा विश्व अन्तर्राष्ट्रीय आर्ट आफ गिविंग के रुप में स्वेच्छापूर्वक मना रहा है। प्रतिदिन का उनका आध्यात्मिक जीवन(कुल लगभग तीन घण्टे तक पूजा-पाठ करना) सचमुच उनके व्यक्तित्व को प्रातःस्मरणीय,वंदनीय,अनुकरणीय आलोकपुरुष प्रोफेसर अच्युत सामंत बना दिया है।मानव सेवा तथा मानवता की सेवा के वे बेहतरीन मिसाल हैं।
अमुमन यह देखा गया है कि किसी के बचपन की घोर गरीबी उसे गलत आचरण की ओर ले जाती है(भूखा पेट तो पाप करता ही है) लेकिन प्रोफेसर अच्युत सामंत के शैशवकाल की घोर आर्थिक गरीबी ने उनको आलोकपुरुष प्रोफेसर अच्युत सामंत बना दिया है जो जन-जन के प्रिय लोकसेवक हैं। उनके बाल्यकाल की गरीबी ने उनके व्यक्तित्व को कीचड में कमल की तरह खुशबूदार,यशस्वी,तेजस्वी तथा मनस्वी बना दिया है। वे जिस किसी भी काम का श्रीगणेश करते हैं,वह काम जैसे माटी से सोना बन जाता है।
1992-93 में प्रोफेसर अच्युत सामंत ने अपनी कुल जमा पूंजी मात्र पांच हजार रुपये से कीट-कीस(कलिंग इंस्टीट्यूट आफ इंडस्ट्रीयल टेक्नालाजी,कीट तथा कलिंग इंस्टीट्यूट आफ सोसलसाइंसेज,कीस) की स्थापना राजधानी भुवनेश्वर के एक किराये के मकान में की। उन दोनों की स्थापना के पीछे उनका उद्देश्य मात्र उत्कृष्ट तालीम उपलब्ध कराकर युवाओं को नौकरी देना ही नहीं था,स्वावलंबी बनाना ही नहीं था अपितु दोनों ही विश्व स्तरीय शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना के मूल में इंसानीयत,प्रेम,करुणा तथा दया भाव को सतत विकसित करना रहा है। कीस में प्रतिवर्ष लगभग तीस हजार से भी अधिक अनाथ,बेसहारा,गरीब और समाज के विकास से वंचित आदिवासी बच्चे समस्त आवासीय सुविधाओं का निःशुल्क उपभोग करते हुए केजी कक्षा से लेकर पीजी कक्षा तक पढते हैं। अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करते हैं। स्वावलंबी बनकर अपने भावी जीवन में प्रवेश करते हैं। इसीलिए तो कीस को विश्व का एकमात्र मानव-निर्माण- कारखाना कहा जाता है जहां पर मानव और मानवता गढी जाती है,संस्कार और संस्कृति विकसित की जाती है। कीस आज विश्व का आधुनिक तीर्थस्थल बन चुका है। भारत का दूसरा शांतिनिकेतन बनकर प्रकृतिप्रेम और मानवप्रेम की खुशबू को पूरे विश्व में कीस फैला रहा है।
आलोकपुरुष प्रोफेसर अच्युत सामंत आज दुनिया के एक महान शिक्षाविद् ही नहीं हैं अपितु विश्व के करोडों युवाओं,कारपोरेट जगत के भामाशाहों, न्यायवेत्ताओं,राजनेताओं,खिलाडियों,फिल्मी हस्तियों तथा कीट-कीस समेत लाखों अभिभावकों के रोलमोडल हैं जो निर्विवाद रुप में नित्य प्रातः दर्शनीय,स्मरणीय तथा वंदनीय आलोकपुरुषः प्रोफेसर अच्युत सामंत हैं।
(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं व आकाशवाणी व दूरदर्शन से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के सीधे प्रसारण का आँखों देखा हाल सुनाने के लिए जाने जाते हैं)