लोगों को अलग-अलग तरह की यात्राएँ पसंद रहती हैं, किसी को बर्फ वाले स्थल तो किसी को रेगिस्तान में यात्रा करना पसंद रहता है। किसी को नवनिर्मित स्थलों पर पहुंचने में आनंद आता है तो कोई को प्राचीन अवशेष वाले स्थलों पर घूमकर वहां से इतिहास को समझना पसंद करता है। इन सबके बावजूद भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों की समझ विकसित करने के लिए होने वाली यात्रायें व्यक्ति को हमेशा ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
देश का हर नगर और जिला अपने अंदर धरोहरें संरक्षित किये हुए रखे है, हमें बस उनकी ओर जाने की आवश्यकता है। युवा होने के नाते मैं सभी स्थलों पर घूमना पसंद करता हूँ लेकिन इसके साथ भी ऐतिहासिक महत्व वाले स्थल पर पहुंचना अपनी प्राथमिकताओं में रखता हूँ। यहां के इतिहास को जानना और हजारों वर्षों पूर्व तैयार की चीजों को देखना समझना जरूरी है, जो इतना समय गुजर जाने के बाद हमेशा ही कुछ नया सिखाया करती हैं।
यूँ तो अनेक यात्राएं अब तक कर ली हैं परंतु मध्यप्रदेश के प्राचीन नगर उदयपुर की यात्रा से अलग ही जुड़ाव महसूस करता हूँ। यहाँ जब भी गया हमेशा कुछ नया ही प्राप्त करके आया। यहां से काफी कुछ सीखा है, जो सतत जारी है।
बात विगत वर्ष के फरवरी माह की है मैं अपने अन्य साथी मधुर शर्मा, रॉबिन जैन आदि के साथ विदिशा जिले की गंजबासौदा तहसील से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ उदयपुर गया था। यहाँ आने के पीछे कारण था यहां की रोचकता। स्थापत्य की बेहतर कला को प्रदर्शित करने वाले इस स्थल के बारे में समझ विकसित करने के लिए एक पहल हम इसे कह सकते हैं।
कितने राज यह अपने साथ संजोए हुए है। बहुत ही कम जनसंख्या वाले इस कस्बे में इतिहास की कई कहानियां छुपी हुई हैं। यहां पर बना नीलकंठेश्वर मंदिर वर्षों पहले हुए हमारे कुशल कारीगरों की कारीगरी की गवाही देता है।
रविवार सुबह से शाम तक शुरू हुई यह यात्रा अगले कुछ माहों तक प्रत्येक रविवार की कहानी बन गयी। यहां से हमारे पास इस पुरातत्विक नगरी की अनेक जानकारियां सामने निकालकर आईं।
उदयपुर, यह कस्बा इतिहास में सम्पन्न नगर होने की गवाही देता है। बेहतरीन नगर की रचना यहां समझ आती है।
यहां पर मौजूद बावड़ियां, निगरानी चौकियां, महल, अलग-अलग शहरों से जोड़ने हेतु रास्ते, चारों दिशाओं में भेजने वाले बड़े-बड़े गेट यहां के वैभवशाली इतिहास की गाथाएं गाते हैं। उदयपुर के पत्थर का अपना ही महत्व है, जो देश के अलग-अलग राज्यों सहित विदेशों में भी भेजा जाता है। यह क्षेत्र पत्थरों के लिए भी जाना जाता है।
इन सबमें यहाँ का नील्कंठेश्वर मंदिर अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है। पूर्णतः पत्थरों से निर्मित नीलकंठेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। जो कि अपने आप में बेहद ही अद्भुत एवं आकर्षित करने वाला है।
यह देश के उन मंदिरों में आता है, जहां पर सूर्य की पहली किरण भगवान के शिवलिंग पर पड़ती है। इसके बाद मंदिर की किसी और अंदर के हिस्से में यह पहुंचती है। स्थापत्य का अनुपम उदाहरण यह मंदिर है।
मंदिर के बारे में जो जानकारियाँ हैं उनमें मार्च 1080 में इस मंदिर के ध्वजारोहण होने की बात कही गयी है। नीलकंठेश्वर मंदिर नागर शैली की उपशैली भूमिज शैली में बनकर तैयार हुआ है। यहां बाहर की तरफ देवी- देवताओं के विभिन्न अवतार उकेरे गए हैं। यह मंदिर दिशाओं का बोध कराता है।
हमारे ग्रंथों में वर्णित जानकारी के अनुसार प्रत्येक दिशा के एक देवता नियुक्त हैं, जिन्हें ‘दिग्पाल’ कहा गया है। अर्थात दिशाओं के पालनहार, दिशाओं की रक्षा करने वाले। इसी के आधार पर उदयपुर के नीलठेश्वर मंदिर के बाहर दिशाओं के अनुरूप देवताओं की प्रतिमा बनी हुई हैं। जहाँ पूर्व दिशा में भगवन इंद्र, पश्चिम में वरुण, उत्तर में धन के देवता कुबेर, दक्षिण में यमराज की प्रतिमा भी मौजूद है। वहीं उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, आग्नेय के अग्नि या वहि, नैऋत्य के नऋति, वायव्य के वायु और मारुत, और अधो के अनंत देवता की प्रतिमा भी मंदिर में दिशा अनुरूप मंदिर में बनी हुई है।
मंदिर के बाहर शिव-पार्वती संवाद, चामुंडा देवी, महिसासुर मर्दिनी, भगवान गणेश, नटराज, देवर्षि नारद, वांसुरी बजाते कृष्ण, अपने सप्त घोड़ों के साथ रथ पर खड़े सूर्य देवता, भगवान शंकर के ससुर प्रजापति दक्ष, अपने पैर से कांटे को निकालती हुई महिला सहित आभूषण व कपड़ों को पहने पत्थर पर बनी मूर्तियां को बड़ी सहजता से उकेरा गया है।
इस मंदिर में एक रोचक बात है कि आम तौर पर मंदिरों में भगवान गणेश के पुरुष रूप की प्रतिमाएं ही देखने को मिलती हैं लेकिन यहां भगवान श्री गणेश के स्त्री के स्वरुप में भी प्रतिमा बनी हुई है, जो इस मंदिर को और भी विशेष बनाती है। नीलकंठेश्वर मंदिर परिसर में देवताओं की 60 से अधिक प्रतिमाएं स्थापित हैं, यह सभी प्रतिमाएं मंदिर की बाहरी ओर हैं। अन्दर और अन्य प्रतिमाएं बनी हुई हैं। भारत को समझने की शुरुआत में यह मंदिर महती भूमिका का निर्वहन करता है। छोटे से कस्बे में बना यह मंदिर भारत के वैभवशाली इतिहास की यशोगाथा सुनाता है। यह मंदिर अद्भुत है। आपको अपनी यात्रा में उदयपुर जैसे स्थान को चुनना चाहिए। यह स्थल काफी कुछ सिखाने वाला है।
हमने कई महिनों तक उदयपुर की यात्रा की श्रृंखला बनाई। इस दौरान सुबह इस कस्बे में जाते, दिन-भर विभिन्न स्थलों पर घूमते, समय मिलने पर भोजन करते और फिर जानकारियां एकत्रित कर आ जाते। उदयपुर की यात्रा में हमने यहां के महल, बावड़ियों, पहाड़ो और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों भ्रमण किया। इनसे अनेक जानकारियां जुटाईं, जिसने हमें जिंदा इतिहास के प्रति सजग किया।
यह तो उदयपुर की कहानी है। ऐसे कई अनूठे उदयपुर हमारी राह देख रहे हैं, जो अपने आप में ढेरों जानकारियां रखे हुए हैं। हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इन स्थलों पर पहुंचकर, यहां की जानकारियां जुटाकर अधिक से अधिक लोगों को अपनी धरोहरों कर प्रति जाहरुक करें। क्योंकि हमें पुरातात्विक महत्व रखने वाले स्थलों की समझ होना आवश्यक है। ऐसे स्थल हमारे देश समृद्धि की दर्शाते हैं।
अंत में भारत के महत्व के संदर्भ में हमें मोहम्मद इकबाल की यह बाद हमेशा याद रखना चाहिए-
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाकी नामों निशाँ हमारा,
कुछ तो बात है की हस्ती मिटती नही हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर ऐ जमां हमारा।
(सौरभ तामेश्वरी, लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ब्लॉगर हैं)