भारत के विदेशमंत्री आदरणीय एस जयशंकर जी ने विगत महीने नेपाल की आधिकारिक और राजकीय यात्रा पर थे। भारत और नेपाल वैश्विक स्तर पर सहयोगी राष्ट्र-राज्य,हिंदुत्व की विचारधारा के उन्नयन और सांस्कृतिक मूल्यों के उन्नयन के लिए सभ्य पड़ोसी राष्ट्र-राज्य है। भारत ने इस तराई क्षेत्र (भौगोलिक स्थान के आधार पर) की सुरक्षा, संरक्षा और सांस्कृतिक और समृद्धि सुनिश्चित करने के साथ-साथ तकनीकी विकास, सामरिक सहयोग और बड़े भाई (प्राकृतिक आपदा के समय बढ़-कर का सहयोग करना, गरीबी निवारण में सहयोग करना और नेपाल के लोगों को गोरखा रेजिमेंट में नौकरी देना) और समकालीन में सांस्कृतिक संबंधों (भारत में राम मंदिर निर्माण के कारण) एक दूसरे के साथ संबंधों का उन्नयन हुआ है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की धरातल, भौगोलिक निकटता, दोनों सभ्य राष्ट्र- राज्य (देश) के बीच परंपरागत संबंध (रोटी बेटी की धारणा) पर आधारित है। सनातन संस्कृति के सभ्य संबंध और हिंदुत्व की विचारधारा का उन्नयन खास कर (वर्तमान सरकार) में हो रहा है।
भारत और नेपाल के मध्य साझा हितों के मुद्दे के समाधान के त्वरित कदम उठाने के साथ – साथ दोनों नितांत पड़ोसी देशों के मध्य सद्भाव, माधुर्य, कूटनीतिक और सफल राजनीतिक संबंध उत्तरोत्तर गुणात्मक उन्नयन कर रहे हैं। दोनों सभ्य राष्ट्र- राज्यों के बीच भारतीय रॉकेट से नेपाली सैटेलाइट “मुनाल” को प्रक्षेपित करना, सीमा पर ट्रांसमिशन लाइन और भूकंप के पश्चात राहत सामग्री के लिए 1000 करोड रुपए अनुदानित की बात हुई है। भारत अगले 10 साल के भीतर नेपाल से 10000 मेगावाट बिजली का आयात करेगा और नेपाल के भीतर जल विद्युत यानी हाइड्रोइलेक्ट्रिक सिटी के क्षेत्र में बड़ा निवेश करेगा ।इस समझौता का उपादेयता आर्थिक क्षेत्र, राजनीतिक क्षेत्र और कूटनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान भी है। इस समझौता के द्वारा चीन को नेपाल में सामरिक और राजनीतिक उपादेयता को न्यून करना है।
विगत 2015 की कथित नाकेबंदी, नक्शा संबंधी विवाद (भौगोलिक सीमाओं की स्थिति को लेकर) संबंधित घटनाएं हुई थी, जिससे भारत और नेपाल के बीच संबंधों में दूरियां बढ़ी है, ऐसी स्थिति में चीन ने मौके का फायदा (अवसर का फायदा) उठाकर नेपाल में निवेश किया है, शासकीय व्यवस्थाओं को सहयोग किया था, जिससे भारत अपने आपको असहज महसूस करने लगा था। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई कहते थे कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मित्र बदले जा सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं। वैश्विक स्तर पर क्षेत्र नीति का अध्ययन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यावहारिक अध्ययन के तथ्यों एवं आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय वैदेशिक संबंध स्थिर नहीं होते हैं, क्योंकि राष्ट्र-राज्यों के संबंध परस्पर राष्ट्रीय हितों और बहुपक्षीय संबंधों पर आधारित होता है, इसके अतिरिक्त भारत और नेपाल के संबंध परिवर्तनों के साथ भी प्रगतिशील और सदभाव पर आधारित है। 2016 से नेपाल के सांसदों की भारत यात्रा की बारंबारता से दोनों देशों के मध्य आपसी संबंधों में माधुर्य आई है। जून, 2023 में नेपाली प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान आर्थिक और विकास पर सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे।
भारत और नेपाल के रिश्ते इतिहास और भूगोल के चलते, कई विभिन्न वास्तविकताओं से जूझते आएं हैं। उनका सुदूर और निकट अतीत का संदर्भ, आधुनिक इतिहास और समकालीन राजनीति उनकी प्रतिरूपी किंतु भिन्न प्रगति और उनका उभरता हुआ भविष्य कुल मिलाकर एक ऐसे कठिन मैट्रिक्स की रचना करते हैं जिसमें वैश्विक शक्ति संपन्न राष्ट्रों (देशों) के उत्सुकता बढ़ जाती है। इस रिश्ते के विभिन्न पक्षों के बीच संतुलन ही इसका समग्र चरित्र को निर्धारित कर रहा है।
सदियों की संपन्न बौद्धिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों ने भारत और नेपाल के आपसी शासकीय और नागरिक संबंधों को सामिप्य लाने में मजबूत कारक है। इनकी प्रेरक प्रत्यय दोनों देशों के विचारों और व्यापार का सशक्त समीश्रण है। भारत और नेपाल के संबंधों की ऊर्जावान क्रियाशीलता, भारतीय फिल्मों की लोकप्रियता और पर्यटन के प्रोत्साहन के साथ अति घनिष्ठ की ओर उन्नयन हो रहे हैं। 1962 के भारत-चीन युद्ध में गोरखा रेजीमेंट द्वारा दुर्गम हिमालय में खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को सैनिकों के लिए जीवन रेखा के समान था, हालांकि 2015 के पश्चात इसकी उपादेयता कम हो गया है ।बंधुत्व को संजोए रखना भारत और नेपाल के लिए लाभदायक सिद्ध होने वाला है।
भारतीय वैदेशिक मंत्री की यात्रा के दौरान सफलता का प्रबल उपादेयता इस तथ्य में है कि नेपाली प्रधानमंत्री से 10 सालों में 10000 मेगावाट बिजली खरीदने के लक्ष्य को दोनों देशों के शासकाध्यक्ष के मध्य औपचारिक अनुसमर्थन था, जिसको विदेश मंत्री के कूटनीतिक कौशल से सफल कर दिया। यह समझौता भारत और नेपाल के मध्य कूटनीतिक उपादेयता का प्रबल संकेत है। इस सफलता पर प्रोफेसर महेंद्र लामा का कहना है कि इस समझौते के पश्चात भारत का पड़ोसी देशों में कद बढ़ गया है। उनका कहना है कि” पिछले दस-पन्द्रह सालों में भारत और दक्षिण एशिया के देश विद्युत ऊर्जा पैदा करने के साथ-साथ ट्रांसमिशन लाइनें भी बिछा रहे है। इन सालों में भारत ने नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के मध्य कई ट्रांसमिशन लाइन बिछाई है ताकि सरलता से बिजली का आदान-प्रदान किया जा सके। इससे बड़े पैमाने पर इन देशों में निवेश हुआ है।”
पिछले वर्ष में जून में नेपाल के आदरणीय प्रधानमंत्री श्री पुष्प दहल कमल जी भारत के राजकीय यात्रा पर आए थे ,तो भारत और नेपाल के बीच 10 वर्षों के 10000 मेगावाट बिजली खरीदने के समझौते को हरी झंडी दिया गया था। इस समझौते का तत्कालीन समय में मंजूरी नहीं मिली थी लेकिन भारत के विदेश मंत्री श्रीमान जय शंकर जी के राजकीय यात्रा के दौरान समझौते को दोनों देशों ने संवैधानिक सहमति प्राप्त कर लिए।
यह समझौता भारत और नेपाल के मध्य कूटनीतिक प्रगाढ़ का संकेत है, जिसको विदेश मंत्री के विवेकी सूझबूझ और प्रबल राजनय के द्वारा संभव हुआ है। इसकी पारंपरिक उपादेयता पर प्रोफेसर महेंद्र लामा जी का कहना है कि” अब भारत विद्युत का उत्पादन या उसे बेचने का काम नहीं करता है। भारत एक पारगमन राष्ट्र- राज्य बन चुका है, जिसके जरिए नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार को विद्युत बेच सकता है। यह एक नीतिगत परिवर्तन है।” नेपाल की पन बिजली सामर्थ्य को भारत इस समझौते से उन्नयन करना चाहता है, जिससे दोनों देशों के बैदेशिक और आर्थिक नीतियों में उन्नयन हो सके। 2014 में प्रचंड बहुमत से नरेंद्र मोदी जी ने सरकार बनाया था और अपना पहला राजकीय विदेशी यात्रा भूटान का किया था ,और उसके पश्चात नेपाल की यात्रा किए थे। उस समय नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि” पहाड़ के पानी (सौंदर्य) और जवानी (ऊर्जा) को बर्बाद नहीं होने देंगे।”
पहाड़ के जल का सदुपयोग सिंचाई, पेयजल और पन बिजली उत्पादन के लिए किया जाए और भारत के भीतर के काम में नेपाल की शक्तिपुंज का सदुपयोग किया जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल के पास पन बिजली की उत्पादन की धारिता है, उसका वह मात्र दो प्रतिशत सदुपयोग कर रहा है। भारत नेपाल के इस बिजली क्षमता का बृहद स्तर पर सदुपयोग कर सकता है और उत्तर प्रदेश और बिहार की ऊर्जा आवश्यकताओं की आपूर्ति कर सकता है, इन राज्यों में बिजली की 50% और 65 % की ऊर्जा आवश्यकता है। भारत के कुल 5 राज्यों की सीमा नेपाल के सीमा से जुड़ी है ।इन राज्यों की सीमाओं की लंबाई 1800 किलोमीटर है। यह राज्य क्रमशः सिक्किम, पश्चिम बंगाल ,बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड है, इनमें से कुछ राज्यों की केंद्र के साथ विचार धारात्मक क्लेश है जो दोनों देशों के माधुर्य संबंध को चोटिल कर देते हैं, जिससे दोनों हिंदू राष्ट्र – राज्यों (नेपाल और भारत उन्नयन की ओर अग्रसर है) में वैचारिक तनाव हो जाता है।
नरेंद्र मोदी जी के शासकीय कार्यकाल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रासंगिकता पड़ोसी राष्ट्र- राज्यों( देशों) को हृदय मित्र( सब एक ही स्थिति में रखने) की है। इस विषय में वर्तमान विदेश मंत्री अपनी कूटनीतिक कौशल, राजनय प्रधानता और सेवाकाल के अकादमिक और व्यावहारिक विशेषज्ञ है, और किचन कैबिनेट के महत्वपूर्ण हिस्सा है। वर्तमान नेतृत्व और सरकार के मंथन वैचारिकी संगठन (आरएसएस )भी पड़ोसियों के साथ सफल, स्थिर और सौहार्द संबंध का आकांक्षी है। भारत अपने वैदेशिक नीति को नेपाल और भूटान के सहयोगी की तरह क्रियान्वित करता है और दोनों राष्ट्र-राज्यों के लिए” बड़े भाई” (अग्रज भाई) की भूमिका में अग्रसर रहता है।
सवाल यह उठता है कि भारत का पड़ोसियों के प्रति कृतज्ञता नीति होने के बावजूद भी चीन के प्रति आकर्षण पड़ोसी क्यों है?
चीन नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है। दोनों देशों के सालाना व्यापार 180 करोड अमेरिकी डॉलर से ज्यादा है। चीन ने अपने देश में 8000 से ज्यादा नेपाली उत्पादों को उत्पाद मुक्त घोषित किया है, इस कारण से नेपाल चीन के प्रति कृतज्ञ है। चीन और नेपाल के बीच पिछले साल 12 करार(समझौतों) पर समझौता हुआ था। चीन नेपाल के पोखरा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट को बनाने में भी सहयोग कर रहा है और 2017 से प्रारंभ इस प्रोजेक्ट के लिए चीन ने नेपाल को कर्ज भी दिया है। भारत को नेपाल के साथ वृहद कूटनीति और राजनीति का प्रयोग करके सामरिक, नक्शा संबंधी मनभेद, भौगोलिक राजनीति, सांस्कृतिक, वैदेशिक और व्यापारिक संबंधों को वरीयता देकर मजबूत करना चाहिए। नेपाल एक विकासशील राष्ट्र – राज्य (देश)है ।भारत को आर्थिक कूटनीति तत्व को प्रोत्साहित करना चाहिए,जिससे दोनों देशों के संबंधों में परिवर्तन के साथ भी प्रगतिशील और निरंतरता बरकरार रहे।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं।)