Saturday, November 23, 2024
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भारत रत्न किस लिए?

सचिन तेंदुलकर 24 वर्ष के सफल कैरियर से सन्यास ले लिये। सचिन के चाहने वालों में एक निराशा हुई कि सचिन अब मैदान पर खेलते हुए नहीं दिखेंगे। सचिन के चाहने वालों ने उनको ईडेन गार्डन से लेकर वानखेड़े स्टेडियम व भारत के अनेकों शहरों कस्बों में अपने अपने तरीकों से याद किया और विदाई दिये। ईडेन गार्डन में मैच से पहले शहर को सचिन के कार्टून से भर दिया गया था उनके ऊपर फूलों की बारिश की गई और टास सचिन के छपे फोटो वाले सिक्के से किया गया। सचिन शतक बना पायेंगे कि नहीं इस पर हजारों करोड़ का सट्टा लगा। सचिन ने 24 वर्ष में बैट के साथ-साथ बॉल से भी अच्छा खेल दिखाया है जिसके कारण वह क्रिकेट के भगवान बन गये। क्रिकेट के इस भगवान में जो क्रियेटविटी थी उसका लाभ पूंजीपति वर्ग ने भी जमकर उठाया।

उनको बहुत से विज्ञापन मिले जिनसे उन्हें करोड़ों रु. मिले। सचिन विज्ञापन करते समय उनके गुणवत्ता को भी नहीं देखते हैं। जिस पेप्सी का प्रचार कर सचिन करोड़ों कमाते हैं वह पेप्सी स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक है यह बात साबित हो चुका है। सहारा इंडिया के जिस क्यू ब्रांड को हिमाचल प्रदेश के हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित कर रखा है, सेबी विज्ञापन के द्वारा लोगों से सार्वजनिक अपील की थी कि वे सहारा के क्यू प्लान में निवेश नहीं करें। भारत के उच्चतम न्यायलय के बावजदू जनता के 24000 करोड़ न लौटाने वाली सहारा इंडिया का प्रचार सचिन और उनके साथी खिलाड़ी करते रहे हैं।

सचिन को जब भारत के लिए आयकर चुकाना पड़ता है तो वे अपने को एक्टर बता कर आयकर में छूट हासिल करते हैं। 2001-2002 और 2004-2005 में स्टार स्पोर्टस व पेप्सी के विज्ञापन से 5,92,31,211 करोड़ की कमाई कि जिस पर 2,08,59,707 रु. आयकर चुकाना था लेकिन सचिन ने आयकर के दावे को चुनौती दी थी और अपना आयकर देने से बच गये थे। जब वह डॉन ब्रेडमैन की 29 शतक लागने की बराबरी की तो उन्हें तोहफे में फरारी कार मिली जिसकी 1.13 करोड़ की आयात ड्युटी चुकाना सचिन ने मुनासिब नहीं समझा। इस मामले पर कोर्ट ने सचिन व केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया। मामला बढ़ता देख फिएट कम्पनी ने यह आयात कर चुकाया। बाद में सचिन ने इस कार को सूरत के एक व्यापारी को बेच दिया, जिस पर तुषार गांधी ने ट्वीट किया था कि जब सचिन फरारी को गिफ्ट में चाहते थे तो आयात कर में छूट मांगी थी, लेकिन जब उन्होंने कार बेच दी है तो क्या उनसे मुनाफा पर टैक्स मांगा जाएगा?

सचिन कभी भारत के लिए नहीं खेले क्रिकेट टीम बीसीसीआई के अधीन होती है और बीसीसीआई एक स्वायत सेवी संस्था है। बीसीसीआई तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है इस पर सरकार का कोई भी नियम कानून लागू नहीं होते हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह ने सचिन के बधाई पत्र में लिखा है कि ‘‘यह सम्मान आपको प्रदान करके राष्ट्र ने एक जिवंत इतिहास को सम्मानित किया है, जिसकी क्रिकेट में असंख्य उपलध्यिां रही हैं। और उनके अनुकरणीय खेल ने विश्वभर में अनेक लोगों को प्रेरित किया है। आप खेल की दुनिया के सच्चे राजदूत हैं। हम आपको एक खेल प्रतिभा और वैश्विक खेल प्रतिमा के रूप में सलाम करते हैं। आप न केवल खेलों में बल्कि मानवीय व्यवहार के अन्य क्षेत्रों में भी देशवासियों को निरंतर प्रेरित करते रहेंगे।’’

इस तरह से ऐसे व्यक्ति को भारत रत्न दिया जा रहा है जिसको भारत की जनता की जीवन से कुछ लेना-देना नहीं है। वह एक संस्था के लिए खेलते रहे और विज्ञापन करके अपने प्रशंसकों को छलते रहे। इससे उन्होंने 1500 करोड़ रु. की कमाई की और उनके विज्ञापन से कम्पनियों ने कितने लाख करोड़ की कमाई की होगी उसका कोई हिसाब नहीं है। भारत रत्न से नवाज कर उनको पूरे जिन्दगी प्रधानमंत्री के वेतन के बराबर या आधी राशि बतौर पेंशन मिलती रहेगी। भारत में कही भी विमान और रेल में फस्र्ट क्लास की यात्रा मुफ्त में कर सकता है, जरूरत पड़ने पर जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा भी दी जाती है। यह सब सुविधाएं आम आदमी के टैक्स के पैसे से दी जाती रहेंगी, जिस टैक्स को बचाने के लिए सचिन झूठ का सहारा लेते रहे। आम आदमी जिसके पास दो जून की रोटी जुटाने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती है उसका दिया हुआ टैक्स इस तरह उड़ा दिया जाता है।

क्या यह पुरस्कार सचिन को पूंजीपतियों के सेवा करने के लिए दिया जा रहा है? या यह कांग्रेस के वोट बैंक का सवाल है? जैसा कि केन्द्रीय गृहमंत्री ने बीएसएफ की नई बटालियन को उद्घाटन करते हुए बोले कि सचिन को भारत रत्न जनमानस को देखते हुए दिया गया।

79 वर्षीय डॉ. सीएनआर राव (चिंमामणि नागेश रामचंद्र राव) को भी भारत रत्न देने की घोषणा की गई है। राव को दर्जनों  अंतराष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि दुनिया भर में उनके रसायन शास्त्र के ज्ञान की लोहा माना जाता है। वे इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, एचडी देवगौड़ा, इन्द्रकुमार गुजरात और डॉ मनमोहन सिंह के वैज्ञानिक सलाहाकर परिषद के अध्यक्ष रहे हैंं। कुछ समाचार पत्रों में उनको मंगल अभियान का जनक भी कहा जा रहा है। प्रेस वार्ता में वे नेताओं को इडियट (मूर्ख) कहा। उनका कहना था कि ‘‘हमारा निवेश बहुत कम है, देर से मिलता है। हमें जो पैसे मिले उसके लिए हमने काम किया। हमें जितने पैसो मिल रहे हैं वो कुछ भी नहीं है।’’ बाद में उनको लगा कि उनके बयान से भारत रत्न खटाई में पड़ सकता है तो उन्होंने अपने बयान से पलटते हुए कहा कि नेताओं से उन्हें कोई शिकायत नहीं है। मजाक में नेताओं को बेवकूफ कहा था। हमारे बहुत सारे दोस्त नेता हैं।

जिस देश में 77 प्रतिशत जनता 20 रु. रोजाना पर गुजारा करती है। जहां 9 नौ छात्रों में से एक छात्र ही कालेज पहुंच पाता है। शिक्षा की यह हालत हैं कि मानविकी में डिग्री ले चुके दस में से एक छात्र और इंजीनियरिंग में डिग्री में ले चुके 4 में से एक छात्र ही नौकरी पाने के योग्य होता है। शिक्षण संस्थानों में कमी के कारण कटऑफ इतना ऊंचा पहुंच रहा है कि बहुत से योग्य छात्राओं को भी दाखिला नहीं मिल पाता है। जैसा कि पिछले वर्ष श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स में बी कॉम आनर्स की कटऑफ 99 प्रतिशत गया। दुनिया में तीन करोड़ गुलामों में से आधे भारत में है। भारत में पैदा होने वाले 1000 नवजातों में से 44 की मृत्यु हो जाती है, जो कि पूरे विश्व में नवजातों की मृत्यु भारत का प्रतिशत 28 है। सरकार ने गर्भवती महिलाओं के लिए योजनायें भी चलाई है लेकिन उन योजनाओं में बजट कम होने के कारण अस्पतालों की हालत बहुत बुरी है इसलिए महिलाएं अस्पताल जाने के बजाय घरों में ही बच्चे को जन्म देती है।

सचिन के 100 शतक से या मंगल पर पहुंच जाने से भारत की आम जनता की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है? निश्चित ही सचिन के 100 शतक से पूंजीवाद को फायदा हुआ। मंगल पर हम पहुंच भी जायें तो क्या देश की 100 करोड़ जनता को कोई लाभ पहुंचेगा या पहुंचने वाले अरबपतियों-खरबपतियों की कीमत भी इन्हीं जनमानस  को उठानी पड़ेगी? ऐसे में जनता के टैक्स के पैसे को उन लोगों पर क्यों खर्च किया जा रहा है जो कुछ प्रतिशत के लिए काम करते हैं? क्या इन पैसों से यहां पर शिक्षा, स्वास्थ्य, ट्रांसपोर्ट को नहीं सुधारा जा सकता है?

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