Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeअध्यात्म गंगाभारतीय  लोक मानस में रामनाम समाया हुआ है!

भारतीय  लोक मानस में रामनाम समाया हुआ है!

भारतीय लोक मानस लोक महासागर की तरह गहराई लिए हुए है। लोक मानस की गहराई और विविधता अनोखी पर सहजता लिए होती है।हम अगर यह कहे कि भारतीय लोकमानस में रामनाम समाया हुआ है तो इसे अतिशयोक्ति नहीं माना जाएगा। आजादी आन्दोलन के योद्धा और समाजवादी आंदोलन के नेतृत्व करने वाले चिन्तक विचारक डा.राममनोहर लोहिया ने राम, कृष्ण और शिव को मर्यादित, उन्मुक्त और अनन्त का पर्याय निरूपित करते हुए कहा था कि भारतीय लोकमानस में राम मर्यादा के लिए, कृष्ण उन्मुक्तता और शिव अनन्त या अविनाशी स्वरूप में रचे-बसे हैं।

महात्मा गांधी ने अपने अंदर बाहर समाहित या रचे-बसे राम को जगाने का मंत्र भारतीय लोकमानस को आजादी आन्दोलन में दिया। भारतीय लोक मानस में सारे रुप रंग और अनन्त विविधताओं की अनवरत श्रृंखला दिखाई देती है। भारतीय लोकमानस की अनन्त सोच-विचार और रूप-रंग की विविधता लोकसागर की विशालता और गहन गहराई लिए हुए है।
संत विनोबा भावे ने अपने जीवन अनुभव में विचार प्रवाह के अनेक प्रयोग किए।बालक विनोबा को मां ने विन्या कहा, विनायक से आजादी आन्दोलन में विनोबा भावे से बाबा विनोबा हो गये और जीवन के सायंकाल में विनोबा ने अपने माता-पिता, साथी सहयोगी अनुयाइयों द्वारा प्रदत्त सारी संज्ञाओं का विसर्जन कर “राम हरि “को अपना हस्ताक्षर बना लिया। विनोबा का मानना था राम हरि में सब समाया हुआ है। इसीलिए अभिवादन की अभिव्यक्ति भी विनोबा ने जयजगत के रूप में की। राम हरि और जय-जगत इसमें साकार निराकार सब समाया है और जगत और जीवन का सूक्ष्म स्वरूप भी समाया हुआ है।इस लेख में अभी तक जो अभिव्यक्त हुआ है वह भारत के आजादी आन्दोलन की तीन विभूतियों जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व में भारतीय लोकमानस समाया हुआ है उसका अंश है।

दुनिया भर में माता पिता अपनी संतानों का नामकरण करते हैं। भारतीय लोकसमाज में अपने बेटों के नामकरण में एक अनोखा राममय समर्पित भाव दिखाई देता है। राम में सब कुछ समाया है इस विचार को मानने वाले लोकमानस में रामनाम की विविधता का नाम सागर समाया हुआ है। बानगी देखिए राममनोहर, रामसहाय, रामखेलावन, रामभरोसे, रामनिहोरे, रामजीवन, रामाश्रय, रामप्रसाद, रामकृष्ण, रामस्वरूप, रामसेवक, रामनिवास, रामायण प्रसाद, रामनिरंजन, रामकृपाल, रामदेव, रामविलास,रामलखन, रामधारी, रामानंद, रामानुज, रामसुंदर, रामवीर, रामविभोर, रामभज, रामगोपाल, रामगुलाम, रामगुप्त, रामफल, रामलाल, रामसिंह, रामदयाल, रामदरबार, रामअनोखे, रामआसरे, रामसुख, रामसुबीर, रामचंद्र, रामकुमार, रामस्नेही, रामसंजीवन, रामसुभग, रामसुलभ, रामलीला, रामसंवारे, रामनाथ, रामेश्वर, रामभजन, राममणि, रामअवतार, रामआश्रय, रामहर्ष, रामहरि, रामकौशल, रामाधीर,रामविजय, रामविनय, रामलीला, रामविशाल, रामप्रकाश, रामप्रताप, रामसुंदर, रामभजन, रामतीर्थ, रामसीखावन, रामदर्शन, रामदरस, रामरज, रामचरण, रामनयन, राम-रहीम, रामप्यारे, रामदुलारे, रामेश्वर, रामगोपाल, रामकौशल, रामकमल, राम-जानकी, रामसीखावन, रामसूरत,रामनिधि, रामसुलभ, रामकिशोर, रामकिशन, राममूर्ति, रामलुभावन, रामसखा, रामविशाल, रामसुबीर, रामचंद्र, रामरति, रामसागर, रामानंद, रामरति,रामराज, रामराय, रामवृक्ष, रामलुभावन, रामसखा, रामलुभाया, रामबाबू, रामकिंकर, रामकरण, रामसमीर, रामनयन, रमाशंकर, रामनाथ ये एक सौ आठ नाम इस बात का एक उदाहरण है कि भारतीय लोकमानस में रामनाम किस तरह से समाया हुआ है।

आज के काल में प्रायः यह बात हम सब के मन में आती हैं कि यह काल एक तरह से अमर्यादित व्यवहार, विचार, टिका टिप्पणी, विकास, प्रदूषण, असहिष्णुता, अभद्रता, संग्रह प्रवृत्ति, भोग, भोजन, बनावटी जीवन शैली, अशांति और अनुशासनहीनता का काल है। राममय लोकमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मूल विशेषता मर्यादा का जीवन के प्रत्येक या सभी आयामों में जिस तरह सेअमर्यादित उल्लंघन महसूस हो रहा है उससे उबरने का राममय लोकमानस वाला समाज कैसे रास्ता निकालेगा? पंडित जसराज ने एक बहुत प्रभावी भजन गाया है ” राम भजो आराम तजो, राम ही प्रेम की मूरत है,राम ही सत्य की सूरत है।” आज के काल खंड में यह भजन हमारे लोकजीवन में शामिल हो चुकी जीवन की लोकसमस्यों से निपटने का एक आसान तरीका है कि समस्या से जूझ रहे भारतीय लोकमानस में रामनाम जपिये पर आधुनिक भारतीय लोकमानस में यांत्रिक जीवन शैली से उपजी आराम तलबी और आलस्य से भरपूर संकीर्ण मानसिकता से छुटकारा पाने का एक ही सूत्र है “आराम तजो”। राम ही जीवन कार्य सिखाएं राम ही बेड़ा पार लगाए। राम ही प्रेम की मूरत है,राम ही सत्य की सूरत है।

पुरुषोत्तम राम की मर्यादा का आज के भारतीय लोकजीवन के दैनंदिन जीवन क्रम में जनता के मन मे अंधी यांत्रिक सभ्यता के कारण उपजे आलस्य और वैमनस्य के त्याग मात्र से हम भारतीय लोकमानस में पुरूषोत्तम राम के मर्यादित, कृष्ण की उन्मुक्तता और शिव की असीम या अनंतता की प्राण-प्रतिष्ठा अपनी व्यापक समझ और व्यवहार में सहजता और सरलता अपनाकर राम, कृष्ण और शिव की सनातन जीवन संस्कृति को आत्मसात कर, आजीवन राम की मर्यादा का गुणगान कर ,भारतीय लोकमानस की रामसीखावन को अपने मूल जीवन, राजकाज और लोकजीवन का मूल आधार बनाकर “राम भजो आराम तजो”के भजन को साकार स्वरूप में प्रेममय और सत्यनिष्ठ मर्यादित जीवन का गुणगान कर जीवन्त सकते हैं ।

(लेखक अभिभाषक और स्वतंत्र लेखक है और त्रिवेदी परिसर ३०४/२भोलाराम उस्ताद मार्ग ग्राम पिपल्या राव आगरा मुम्बई राजमार्ग इन्दौर मध्य प्रदेश में रहते हैं।)
Email – aniltrivedi.advocate@gmail.com
Mobile Number 9329947486

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार