दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार, तेलुगु भाषी बालशौरि रेड्डी का आज (दि.15 सितंबर, 2015) सुबह 8.30 बजे उनके निवास पर आकस्मक निधन हो गया । सुबह अपने परिवार वालों से उन्होंने शिकायत की कि उनकी तबीयत गड़बड़ है । डॉक्टर के पास जाने से पहले उनका निधन हो गया । रेड्डी जी हिंदी के ख्यातनाम हस्ताक्षर है । उनके योगदान में शताधिक पुस्तकें हैं जिनमें 14 मौलिक उपन्यास, आलोचनात्मक कृतियाँ, अनूदित कृतियाँ शामिल हैं । उपन्यासकार एवं कथाकार के अलावा हिंदी सेवी के रूप में बालशौरि रेड्डी उत्तर-दक्षिण के असंख्य पाठकों, साहित्यकारों के बीच में सुख्यात हैं । उनके सुपुत्र वेंकट रमणा रेड्डी ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार 16 सितंबर को 12 बजे चेन्नई में होगा । उनका पार्थिव शरीर दर्शनार्थ चेन्नई में उनके वेस्ट मांबलम (27, वडिवेलु पुरम) स्थित निवास में रखा गया है ।
10 से 12 तक भोपाल में संपन्न 10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन में शामिल होकर वे 13 की सुबह घर लौट आए थे । दि.26 से 28 तक गोवा में प्रस्तावित सूर्य संस्थान, नोएडा की अंतर्भारती भाषा समन्वय संगोष्ठी एवं भारतीय भाषा सम्मान समारोह में समापन सत्र की अध्यक्षता उन्हें करनी थी, और इन पंक्तियों के लेखक के साथ उन्हें 25 की शाम चेन्नई से इंडियन एयरलाइन्स के विमान में गोवा कार्यक्रम के लिए प्रस्थान करना था । रेड्डी जी के आकस्मिक निधन से उनके असंख्य साहित्यिक मित्र शोकमग्न हैं ।
रेड्डी जी का जन्म 1 जुलाई 1928 को आंध्र प्रदेश के कडपा जिल्ला गोल्लल गूडूर में हुआ था ।
‘सबके अपने बालशौरि’
शीघ्र प्रकाश्य ‘सबके अपने बालशौरि’ (साहित्यकार बालशौरि रेड्डी जी की जीवनी) से कुछ पंक्तियाँ पाठकों की जानकारी के लिए ….
चेन्नई वेस्ट मांबलम आवास संख्या 27 के आवरण में प्रवेश करते हुए आप महसूस करेंगे कि सरस्वती निलय में आपका प्रवेश हो रहा है । बैठक में उस घर के अट्ठासी पार मालिक की आत्मीय मूर्ति के सामने बैठकर जब आप बातचीत करने लगेंगे तो जरूर महसूस करेंगे कोई चिरपरिचित अभिन्न मित्र के साथ आपकी बात हो रही है । अपने हाथ में पसंदीदा ‘चंदामामा’ पानेवाले बच्चों की भांति आप बेहद खुश हो जाएँगे उस सारस्वत योगी के बाल-सहज स्वभाव से मुख़ातिब होकर, तब भी यह जानकारी हो जाए कि आप जिनके समक्ष बैठे हैं वे भारत के तमाम राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों के करकमलों से सम्मानित एकमात्र हिंदी साहित्यकार हैं, आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं होगा । कुछ पल के लिए आप बेसुध हो जाएँगे कि कई मंचों पर बड़े दिग्गज नेताओं, साहित्यकारों के साथ बैठने वाले गंभीर वक्ता के सामने आप बैठे हैं, उनके साथ आपके चंद क्षण भी असीम आनंद के पल होंगे ।
अपने आपको महसूस करेंगे कि आसमान को पारकर चाँद को आसानी से हासिल कर लिया हो । 23 वर्ष तक ‘चंदामामा’ की चमक-धमक के कर्ता का, शताधिक कृतियों के विराट लेखक का सहज सान्निद्य के आनंदमय क्षण आपके जीवन में अविस्मृत बन जाएँगे । उन्होंने अपने स्कूल के चपरासी को चार-आना देकर हिंदी सीखना शुरू किया था । गांधीजी से प्रेरणा पाकर हिंदी का प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लेकर काशी जाकर हिंदी की उच्चशिक्षा हासिल की थी और अपना समूचा जीवन हिंदी भाषा एवं साहित्य की सेवा को समर्पित कर दिया । विराट सेनानी के सामने आप बैठकर उनकी आपबीती सुनते हुए कुछ क्षण अपने आपको भूल जाएँगे । बालशौरि जी की सहज आत्मीयता, स्नेह से गद्गद् होकर आप उन्हें एक अनन्य मित्र ही मानेंगे । रेड्डी जी की साहित्यिक साधना की नाप-तोल कर पाना, उनकी उपलब्धियों को चंद मिनटों में आंकने का साहस कर पाना आपके लिए सहज ही असंभव महसूस होगा । ऐसे अन्यतम साधक के प्रति आपके मन में अनन्य श्रद्धा ज़रूर जागृत हो जाएगी, सरलता, सहजता और सादगीपूर्ण सद्व्यवहार उनके स्वभाव का आभास पाकर । लोकमंगल की साधना को समर्पित कलम-कर्मी के समक्ष स्वयं रहकर भी कुछ समय अपने-आप आभासी दुनिया में भटक जाएँगे । बालशौरि रेड्डी की सतत-साधना को चंद मिनटों में समझ पाना बेहद मुश्किल है, मगर उनकी आत्मीयता और स्नेह हासिल करना बेहद आसान है । रेड्डी जी की जीवन-गाथा एक दीक्षाधारी साधक की सहज-गाथा के रूप में आप पाएँगे ।
एन. मुनिवरराजु ने उनके संबंध में सही कहा है—
“विद्याविवेकविनयाव्वित पूत चित्रम्
सामाजिकाभ्युदय कार्यनं, विशुद्ध्म्
आदर्शमानवगुणान्वित जीवनायम्
सर्वेस्मरंतु निजजीवन धन्यतायै ।
अस्मिन भावुकजीवने भजतु
तेलक्ष्यं च साकारनाम्…. ”
आइए हम ज्यादा करीबी से उन्हें जानने की कोशिश करेंगे ।
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डॉ. सी. जय शंकर बाबु
संपादक, ‘युग मानस’
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