Saturday, November 23, 2024
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चॉकलेट का वजन कम निकला, 1 लाख का जुर्माना

घर का सामान खरीदने गए युवक ने बच्चे के लिए पर्क चॉकलेट खरीदी। रिटेल स्टोर से बाहर आने के बाद खोलने के लिए जैसे ही हाथ में लिया, कुछ शंका हुई। पैकेट संभाल कर रख लिया। अगले दिन नापतौल विभाग में शिकायत कर दी। जांच की गई तो चॉकलेट 7 ग्राम कम निकली। अंतत: कंपनी को 1 लाख जुर्माना भरना पड़ा। स्टोर से भी 30 हजार का जुर्माना वसूल किया गया है।

उप नियत्रंक केएस चौहान ने बताया कि छत्रीबाग में रहने वाले मुकेश अमोलिया ने लिखित शिकायत की थी कि उन्होंने स्कीम-71 के एक रिटेल स्टोर से पर्क चॉकलेट खरीदी। जैसे ही खोलने लगा तो वजन कुछ कम होने का शक हुआ। उसने नापतौल विभाग में शिकायत की।

उच्च स्तरीय मशीनों पर इसका वजन किया गया तो बात सही पाई गई। पांच रुपए कीमत वाली इस चॉकलेट का वजन 15 ग्राम और रेपर सहित 16 ग्राम होना चाहिए था, लेकिन जो चॉकलेट मुकेश लेकर आए थे, उसका वजन रेपर सहित 9 ग्राम ही निकला। इसके बाद भारत में पर्क चॉकलेट बनाने वाले मांडलेज इंडिया फूड लिमिटेड के अधिकारियों को सूचना दी गई।
अधिकारियों ने देखा रेपर से छेड़छाड़ तो नहीं
निरीक्षक केएस ठाकुर ने बताया कि हमने इसकी सूचना केडबरी के अधिकारियों को दी, वहां से अधिकारी इस बात की तस्दीक करने आए कि रेपर से छेड़छाड़ तो नहीं की गई। संतुष्ट होने के बाद उन्होंने गलती मानी। कंपनी समझौता करते हुए जुर्माना राशि भरने को तैयार हो गई। कंपनी और उसके नामित डायरेक्टर अर्जुन भौमिक पर 50-50 हजार का जुर्माना किया गया और इसके अतिरिक्त रीटेल स्टोर पर भी 30 हजार का जुर्माना किया गया, जो उसने जमा कर दिया।
आप भी ये करें
अफसरों के मुताबिक, अगर किसी पैक्ड वस्तु का वजन कम लगे तो उसे दुकान पर ही तौल लें और वापस कर दे। अगर शिकायत करना चाहते हैं तो नापतौल विभाग में सादे आवेदन पर शिकायत कर सकते हैं। इसके बाद विभाग कंपनी पर कार्रवाई करेगा। कई बार लोगों को लगता है कि उपभोक्ता फोरम में शिकायत करना चाहिए, लेकिन यहां भी कार्रवाई करना चाहिए।
ऐसे मिला मुकेश को न्याय
-दुकान से चॉकलेट ली, कम होने की शंका हुई तो बिल ले लिया।
-संभागायुक्त कार्यालय परिसर में स्थित नापतौल कार्यालय में जानकारी दी।
-नापतौल विभाग के कार्यालय में सादे कागज पर शिकायत की।
-टीम ने आकर पर्क की जांच की तो शिकायत सही पाई गई।
-कंपनी के अधिकारियों ने अपनी गलती मानी।
-एक लाख रुपए का ड्राफ्ट जिला कोषालय में जमा कराया।
शासन के खाते में जाते हैं रुपए
अधिकारियों ने बताया कि इस प्रकार के मामलों में कंपनी द्वारा दी जाने वाली राशि शासन के खाते में जमा की जाती है। अगर कंपनी अपनी गलती नहीं मानती है तो मामले को कोर्ट में ले जाया जाता है। वहां कोर्ट के निर्णय के आधार पर फैसला होता है।
साभार- http://naidunia.jagran.com/s से

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