Wednesday, December 25, 2024
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क्राफ़्टिजन ग्रामीण कारीगरों के उत्पादों को शहरों तक पहुँचाने का काम करता है

क्राफ़्टिजन फाउंडेशन की संस्थापक मयूरा बालासुब्रमणियन को भारत की समृद्ध शिल्प एवं सांस्कृतिक विरासत का अनुभव तब हुआ जब वह संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(यूएनडीपी), भारत के लिए अपने कार्यकाल के दौरान एक ग्रामीण पर्यटन परियोजना से जुड़ीं। वह अमेरिकी कासुंलेट जनरल चेन्नई से वित्तपोषित वुमेन इन इंडियन सोशल ऑन्ट्रेप्रिन्योरशिप नेटवर्क (वाइजन) की पूर्व प्रतिभागी हैं। उनका कहना है, ‘‘उस अनुभव के दौरान जिस बात को मैंने शिद्दत से महसूस किया, वह थी शहरी उपभोक्ताओं, उनकी प्राथमिकताओं और उभरती जीवन शैली एवं ग्रामीण कारीगरों द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पादों के बीच बढ़ती खाई।’’ वह कहती हैं, ‘‘क्राफ़्टिजन की कल्पना इस अंतर को पाटने और यह सुनिश्चित करने के लिए की गई थी कि हमारे प्रतिभाशाली कारीगरों का कौशल तेजी से बदलती दुनिया में प्रासंगिक बना रहे।’’

बालासुब्रमणियन के अनुसार, 2020 में वाइजन के कार्यक्रम से जुड़ने के बाद ‘‘उनका परिचय साथी महिला उद्यमियों की एक जमात से हुआ जिनके साथ मैं अपने डर और अपनी चिंताओं को साझा कर सकती थी।’’ उनका कहना है कि यह कार्यक्रम इन महिलाओं को अधिक आत्म जागरूक और समझदार नेतृत्वकर्ता बनने में मदद करने पर केंद्रित है।’’ वह कहती हैं, ‘‘आखिर में एक बेहतर उद्यमी बनने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है, निरंतर संघर्षों और तनाव से निपटने के लिएजो इस कॅरियर पथ का एक हिस्सा है।’’

वर्ष 2014 में स्थापित बेंगलुरू स्थित इस संगठन का लक्ष्य शिल्प को प्रासंगिक बनाए रखना और अपनी कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) कार्यक्रमों के माध्यम से भारत में शिल्प और कॉरपोरेट क्षेत्र के बीच सहयोग को और मजबूत करना है। वह कहती हैं, ‘‘क्राफ़्टिजन में हम लोगों को शिल्प के प्रति जागरूक नागरिकों यानी क्राफ़्टिजनों को हमारे समुदाय में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं।’’

अपने गठजोड़ों के माध्यम से संगठन हाशिए पर पड़े ऐसे समुदायों को नियमित आय प्रदान करता है जिनमें बौद्धिक विकलांगता वाले वयस्क और हाशिए पर जी रहीं महिलाएं शामिल हैं। इसके अलावा संगठन, मंदिर में चढावे के फूलों, कागज के कचरे और एकल उपयोग वाले प्लास्टिक जैसी कई प्रकार की फेंकी गई सामग्रियों की अपसाइक्लिंग से बेहतर उत्पाद बनाता है और भारत की शिल्प विरासत को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए पारंपरिक और समकालीन शिल्प कौशल को नए सिरे से प्रस्तुत करता है।

सशक्तिकरण एवं सक्षमता

क्राफ़्टिजन महिलाओं को कढ़ाई, सिलाई, हैंड ब्लॉक और स्क्रीन प्रिंटिंग और क्रोशिया एवं बेना घास से बने प्राकृतिक आभूषण बनाने जैसे कई तरह के कौशल में प्रशिक्षित करता है। बालासुब्रमणियन के अनुसार, ‘‘हम अपने आजीविका केंद्रो में उन्हें उद्यम समूहों के रूप में तैयार करते हैं जहां हम क्षमता निर्माण, डिजाइन विकास, उत्पादन और विपणन के लिए निरंतर उनकी सहायता करते हैं।’’

क्राफ़्टिजन कई पारंपरिक कारीगर परिवारों के साथ भी मिलकर काम करता है,जैसे कि वे लोग जो कर्नाटक के चन्नापटना में पर्यावरण अनुकूल लाखा के खिलौने बनाते हैं या फिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश के लकड़ी के खिलौने बनाने वाले या तेलंगाना के चेरियल गांव के लोककला चित्रित करने वाले और मुखौटे बनाने वाले। बालासुब्रमणियन बताती हैं, ‘‘हम उन्नत उपकरणों, और बुनियादी ढांचे के विकास के अलावा कार्यशालाओं के प्रारूप और उत्पादों की मार्केटिंग जैसे मामलों में कारीगरों की सहायता करते हैं।’’

कारीगरों के लिए इस तरह की सहायता बहुत खास है। क्रा़िफ्टजन में शामिल होने से पहले फातिमा ने कभी सुई में धागा भी नहीं पिरोया था। आज वह एक कुशल दर्जी और क्रोशिया कारीगर है जो बड़े ऑर्डरों का समन्वय देखती हैं और साथ ही गुणवत्ता पर निगरानी के अलावा समय पर डिलीवर सुनिश्चित करती हैं। वह अपने परिवार के मुख्य कमाने वालों में से एक हैं और सक्रिय रूप से अपने समुदाय की दूसरी महिलाओं को घरों से बाहर निकलने और उन्हें खुद को सशक्त करने के लिए प्रेरित करती हैं।

नेटवर्क तैयार करना

क्राफ़्टिजन का अपना ऑनलाइन स्टोर है और वह ज्वेंडे और ओखाई जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है। बालासुब्रमणियन बताती हैं, ‘‘हमारे उत्पाद बेंगलुरू में गो नेटिव स्टोर्स पर भी बेचे जाते हैं।’’ इसके आजीविका कार्यक्रम अब तक छह राज्यों के 25 केंद्रों पर चल रहे हैं और इनसे 3500 से अधिक लोग लाभान्वित हुए हैं। इस उद्यम ने 30 तरह के शिल्प कौशल को संवर्धित किया है और 350 से अधिक अनूठे डिजाइनों को तैयार किया है। इसके अलावा इसने 55 टन से अधिक बेकार सामग्री को अपसाइकिल करके फिर से इस्तेमाल किया है।

जैसे-जैसे क्राफ़्टिजन अधिक सदाजीवी भविष्य की तरह बढ़ रहा है, अब यह चन्नापटना शिल्प क्लस्टर की मदद के लिए एक विशिष्ट ब्रांड कोबोकाई का शुभारंभ करने की दिशा में काम कर रहा है। बालासुब्रमणियन बताती हैं, ‘‘कोबोकाई का अर्थ है अपने अंदर के बच्चे की खोज करना। यहां सभी उत्पादों और डिजाइनों को पारंपरिक शिल्प कौशल के माध्यम से विकसित किया गया है, साथ ही आधुनिक तरीकों को खोजते हुए और अभिनव प्रयोगों से गेम्स और पज़ल्स का संग्रह तैयार किया गया है जो खासतौर पर ऐसे पेशेवरों को ध्यान में रख कर बनाया गया है जिन्हें अपनी दिनचर्या में हल्के-फुल्के क्षणों की तलाश रहती है।’’

उपर चित्र में -मयूरा बालासुब्रमणियन (मध्य में) अपनी टीम के सदस्यों के साथ बेंगलुरू में सांस्कृतिक उद्यमिता सम्मेलन में। (फोटोग्राफः साभार मयूरा बालासुब्रमणियन )

पारोमिता पेन नेवाडा यूनिवर्सिटी, रेनो में ग्लोबल मीडिया स्टडीज़ विषय की एसोसिएट प्रो़फ़ेसर हैं।

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