कालजायी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के साहित्य से प्रभावित डॉ. सुशीला जोशी एक ऐसी लेखिका हैं जिन्होंने आम जन की ज्वलंत समस्याओं की जागरूकता के लिए अपनी लेखनी चलाई है। बुजुर्गों की समस्याएं अपनों से त्रस्त बुजुर्गों की मनोदशा का मार्मिक चित्रण, भटकती युवा पीढ़ी, बच्चों पर बढ़ता बस्ते का बढ़ता बोझ, बच्चों की बुद्धि को नष्ट कर रहा और पढ़ने की प्रवृत्ति से दूर कर रहा मोबाइल का क्रेज, लव जिहाद का दुष्परिणाम, बच्चों में राष्ट्र के प्रति क्षीण होती भावना, बच्चों में धैर्य की कमी से नकारात्मक प्रभाव जैसे विषयों के साथ-साथ मजदूरों, नारियों की स्थिति, नारी ही दोषी क्यों? शक, जो अच्छे-अच्छे रिश्तों को तार-तार कर देता है, सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध आवाज उठाना और साथ ही अंगदान, नेत्रदान, रक्तदान आदि पर किया गया लेखन उनके साहित्य का ही प्रभाव है।
प्रेमचंद की कहानियां के उपन्यास सेवा सदन, उर्मिला, गबन उपन्यास से प्रभावित हुई। बड़े घर की बेटी, पढ़कर लगा कि आज की लड़कियों में इन गुणों का नितांत अभाव है। पंच परमेश्वर कहानी से सच्ची न्याय की परिभाषा आंखों के सामने घूम जाती है। दर्शन गुलेरी की कहानी “उसने कहा था” एक सच्चे प्रेम को व्यक्त करती हुई कहानी है। मन्नू भंडारी का महाभोज और आपका बंटी उपन्यास हृदय को छू जाता है। “अकेली” कहानी में औरत की मनोदशा को बखूबी दर्शाया है। “रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय, टूटे फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पर जाए”, इसी तरह “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर” का प्रभाव इन पर हुआ। तुलसीदास, मीरा, सूर, मैथिली शरण गुप्त आदि ने इनके मन में विचार उत्पन्न किए और इन्होंने अपनी कविता में उतारने का प्रयास किया है। इनके साथ-साथ इनके सृजन पर बिहारी ,दिनकर ,महादेवी, सुमित्रानंदन पंत, रविंद्र नाथ, जैनेंद्र कुमार, मन्नू भंडारी, उषा प्रियवंदा आदि की छाया भी दिखाई देती है।
बचपन से ही बच्चों की पत्रिकाएं पढ़ने से लिखने का शौक भी शुरू हो गया। प्रथम कविता स्कूल की मैगजीन में छपी तो और उसके बाद कविता “सत्यता” राजस्थान पत्रिका में छपी और इन्हें 8 रुपए पारिश्रमिक मिला तो उससे प्रोत्साहित हो कर लिखने की गति बढ़ती गई और निरंतर जारी है। हिंदी भाषा में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में कहानियां, लेख और कविताएं लिखती हैं। इनकी सृजित कहानियों में अपना पराया, शक ,और ग्लानि टूट गई, बहादुर कौन, दृढ़ निश्चय की जीत, सुबह का भूला, बदलते रिश्ते, कर्म पढ़ाई-धर्म पढ़ाई-फर्ज पढ़ाई, मन की पीड़ा ,बच्चों जिंदगी क्या है? प्रकृति में भी जान है प्रमुख हैं।
मैथिली शरण गुप्त की “चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही जल थल में” आदि कविताओं से प्रेरित हो कर “नर हो न निराश करो मन को,” न होने निराश करो मन को” कविता लिखी को आज की भटकती पीढ़ी को सकारात्मक संदेश देती है। इस आधार पर “जीवन एक बाजी है, आशा उसकी चाबी है” कविता की रचना की। काव्य सृजन की शैली बच्चों के लिए तुकबंदी शैली, ऐसी कविताएं हैं जो बच्चों के मानस पटल पर उतर जाए, नाटकीय कविता, कथात्मक कविता, मानवीय संवेदना से भरपूर, मानव के मनोभावों को कलात्मक रूप से प्रस्तुत करना है। कविताएं वीर रस ,श्रृंगार रस (श्रंगार-वियोग) हास्य रस, दया ,ईमानदारी ,ममता, सहानुभूति ,व्यंग आदि गुणों पर भावानुसार लिखी हैं। काव्य रचनाओं में छुपा संदेश है – जीवन एक बाजी है आशा उसकी चाबी है, अर्थात कभी हार नहीं मानना, परिस्थितियों तो मौसम है जो समय अनुसार बदलती रहती हैं ,कभी पतझड़ कभी बसंत, यही तो है जीवन का सार। सफलता प्राप्त करने पर मां-बाप को ना भूले। हमारी सोच जो कभी दूध जैसी तूफान पर होती है पर यह जलेबी की तरह उलझ भी जाती है अतः इस सोच को किशमिश जैसी नरम और मीठी बनाओ और बारिश बनकर ठंडक पहुंचाओ यही जिंदगी का फलसफा है।
नारी के लिए इनकी सोच देखिए ………….
गुणों ,साहस और शौर्य की कीर्ति गाथा है- नारी ।
मादक भी ,घातक भी ,दांपत्य की मधुरता -नारी ।
पर ! जलती सिगरेट का कश नहीं है- नारी ।
कर्तव्य के प्रति जागरूकता की “लाली” में नहाई है नारी।
आत्म परीक्षण ,आत्म परिष्कार ,
आत्मविश्वास से भरी है नारी आज की।”
“मजदूर बालक” कविता में बालक की स्थिति को प्रभावी रूप से दर्शाया हैं, कुछ अंश देखिए………………
मस्ती का बचपन उनका –पे पीर यहां ।
उच्छृंखल मन—पर विवश बांध यहां ।
कुंठा के पहरे, उन पर लगे हुए यहां।
पीड़ा से पलकों पर, नमी यहां ।
तन जर्जर ,काया सिकुड़ रही ।
सपनों का महल– पर खंण्डर यहां ।
किरणो से भरे सबेरे– पर तमस यहां।
आंखों में खुशहाली पर- निरवता यहां।
नई धूप की बगिया पर- पतझड़ यहां।
क्या करेगा यह- भविष्य पता नहीं यहां।
यही मेरे मजदूर बालक की दशा यहां।
कैसे कहूं कि मजदूर मजबूर नहीं
मेरे मजबूर बालक का भविष्य नहीं।
समाज की दुर्दशा और सामाजिक परिवेश पर लिखी इनकी रचना “आज का वातावरण’ में वर्तमान सच सोचने पर विवश करता है समाज किस ओर जा रहा है…………
आवरण चढ़ रहा झूठ पर,
सद्भावना का हो गया हरण।
आस्था के चरण न जाने कहां गए,
भरोसा हम किस पर करें।
बलात्कार, झूठ,फरेब का
हो रहा बोल वाला।
तिकड़मी भर रहे झोली,
गिरगिट बदल रहे नीतियां।
योग्यता हमारी धरी रह गई,
भ्रष्टाचार ने नांव हमारी डुबो दी।
छल कपट के तांडव से,
रिश्वत का सिक्का फूल रहा।
कौन किस पर भरोसा करें,
भाई-भाई, भाभी मिलकर,
रात भर षड्यंत्र कर रहे,
मां बाप को कैसे दूर करें?
तृष्णा मुंह फाड़ कर,
परिवार को है तोड़ रही।
रामायण का गुणगान कर,
परिवार को ही बिखेर रही।
लव जिहाद के अंदर रहकर,
औरत के टुकड़े कर रहे।
टुकड़ों को कुकर में उबाल,
खौफनाक वातावरण कर रहे।
नशे के चक्रव्यूह में युवा,
घर-परिवार को खत्म कर रहे।
चोरी, हिंसा, अपवाद को
सरे आम अंजाम दे रहे
नफरत व फैशन की आंधी में,
युवा अपने को झोंक रहे।
मां , बहन, बाप को
सरे आम,कत्ल कर रहे।
अरे! मेरे भाई-बहनों हीरा जैसा
तन तुमने पाया है।
मत करो इसे बर्बाद अब,
जो भूल हुई उसे अब तो संवार।
इनका सृजन बड़े पैमाने पर देश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में नियमित होता रहा है। शहीदों को नमन करो, अटूट स्नेह का बंधन राखी, नेह और प्रीत की डोरी , वर्धा रानी, बंदरी देखने गई पिक्चर, ऐड्स को पहचानो,संकल्प, भूल का अभिशाप , विष्णु के अंशावतार परशुराम, जीवन एक बाजी है आशा उसकी चाबी है ,मिथ्या अवधारणा , मासूम बच्चों पर बढ़ता बस्ते का बोझ, मरूभूमि, कोरोना को हराना है तो कुछ नियम मानो ना, हिंदी राष्ट्र की बिंदी ,कलम, उत्तराखंड का लाल बिपिन रावत, स्वागत नव वर्ष आओ, कलयुगी गुरु, कलम मेरी चल जाती है, पटाखे कहते हैं मुझसे, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ, थोड़ी सी मोहल्त दे दे ऐ जिंदगी, प्रकृति और फागुन ,गुरु महिमा,खेले हम तीन रंग की होली, मेरा अख़बार, आज मां प्रदर्शन की वस्तु बन गई है, छुट्टियों का ध्येय, अपना महत्व समझो नारी, हमारी आन हिंदी जैसी गद्य पद्य की सैंकड़ों रचनाएं देश के कई पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित हो कर आम पाठक तक पहुंचा है। दूरदर्शन, रेडियो स्टेशन ,कोटा ,जयपुर, उदयपुर से भी आपकी रचनाओं का प्रसारण होता रहता है।
इनकी पीएच.डी अवार्ड एक शोध पुस्तक “हिंदी पत्रकारिता और विकास विविध आयाम” राजस्थान साहित्य अकादमी जयपुर से पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसके अब तक पांच संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इन्होंने “व्रत लोक कथाएं और उनका मनोवैज्ञानिक अध्ययन” विषय पर एक लघु शोध प्रबंध भी लिखा है। कभी कभी संस्मरण भी लिखती हैं।
परिचय
सामाजिक विद्रूपताओं से चेतना जगती रचनाकर डॉ. सुशीला जोशी का जन्म 28 अगस्त 1948 को पिता स्व. श्री रतनलाल एवं स्व. इंद्रावती के आंगन में जयपुर में हुआ। इन्होंने एम. ए. की डिग्री ले कर “स्वातंत्र्योत्तर हिंदी पत्रकारिता” विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पति स्व. मुनीश जोशी पत्रकार थे। पूर्व उपाचार्य मां भारती पीजी कॉलेज होने के साथ-साथ वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में कई वर्षों तक काउंसलर के रूप में जुड़ी रही। कार्य यहां इन्होंने “पत्रकारिता अर्थ और स्वरूप” नामक पाठ लिखा है। लंबे समय तक प्रेस क्लब से जुड़ी रह कर पत्रकारिता कार्यक्रमों में सक्रिय रही। आप कई साहित्यिक संस्थाओं और ऑन लाइन काव्य मंचों से जुड़ी हैं और सक्रिय रूप से काव्यपाठ में भागीदारी निभाती है। स्वयं का नेत्रदान, 37 बार रक्तदान करना और निर्धन महिला – बच्चों को मुफ्त पढ़ना आपकी समाज सेवा के प्रमाण है।
साहित्य सृजन और सामाजिक सेवाओं के लिए समय-समय पर इनको अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है।
संपर्क : बी -5 बल्लभबाडी कोटा 32007( राजस्थान ) फोन नं 637562484
(लेखक मान्यताप्राप्त वरिष्ठ पत्रकार हैं और कोटा में रहते हैं।)