डॉ. वेदप्रताप वैदिक प्रथम पुण्यस्मरण विशेष
विश्व जब इतराता है अपनी प्रगति पर, विशालकाय अट्टालिकाओं पर, पटरियों पर, सरपट भागती रेलगाडियों पर, ऊर्जा की बचत पर, कार्बन क्रेडिट पर, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विदेश नीति पर, तकनीकि समृद्धता पर, विकसित इमारतों पर, ढाँचागत अनुशासन और विकास पर, पत्रकारिता के उद्भव और विकास पर, बस वहीं पर विश्व की रफ़्तार पर ब्रेक लग जाता है क्योंकि वैश्विक पत्रकारिता में भारतीय प्रतिनिधि डॉ. वेदप्रताप वैदिक के समग्र अवदान की तुलना में अन्य संकल्पनाएँ बोनी साबित होती हैं।
निश्चित रूप से पत्रकारिता का जन्म मनुष्य की सतत् जिज्ञासा और साहित्य के प्रति उसके स्वाभाविक अनुराग के संयोग से हुआ माना जाता है। अपनी विकास यात्रा में पत्रकारिता ने तटस्थता और विश्वसनीयता के बूते पर ऐसा मुकाम हासिल कर लिया कि उसे लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण अवयव माना जाने लगा। अंग्रेज़ी के महत्त्वपूर्ण साहित्यकार एडिसन ने पत्रकारिता के बारे में कहा था, पत्रकारिता से अधिक मनोरंजक, अधिक चुनौतीपूर्ण, अधिक रसमयी और अधिक जनहितकारी कोई दूसरी बात मुझे दिखाई नहीं देती। एक स्थान पर बैठकर प्रतिदिन हज़ारों-लाखों लोगों तक पहुँच जाना, उनसे अपने मन की बात कह देना, उन्हें सलाह देना, शिक्षा देना, परामर्श देना, उन्हें विचार देना, उनका मनोरंजन करना, उन्हें जागरुक बनाना सचमुच बेहद आश्चर्यजनक होता है।
भारत में पत्रकारिता के विकास की इमारतें तन रही थीं, उसी दौर में भाषा जैसी समाचार एजेंसी में डॉ. वेदप्रताप वैदिक जैसे मूर्धन्य संपादक ने भारतीयता के स्वर को बुलंद करते हुए अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता में भारत का लोहा मनवाया भी और विश्व को दृष्टिसंपन्न करने की दिशा में कार्य भी किया। पत्रकारिता के कालखंड को यदि भारतीय दृष्टि से विभाजित किया जाए तो वह गणना ‘डॉ. वैदिक के पहले और डॉ. वैदिक के बाद’ कही जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
एक आर्य समाजी परिवार में जगदीश प्रसाद वैदिक व कमलादेवी वैदिक के घर 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर, मध्य प्रदेश में वेदप्रताप वैदिक का जन्म हुआ। आप तीन भाइयों और तीन बहनों में सबसे बड़े रहे। डॉ. वैदिक पढ़ने में सदा से ही प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। आप बतौर वक्ता भी कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में अव्वल रहे। आप रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। छात्र जीवन से ही विद्वत्ता का लोहा मनवा चुके डॉ. वैदिक के जीवन के कई पहलू हैं। बाल्यकाल में महज़ 12-13 वर्ष की आयु में ही नई दुनिया के तात्कालीन संपादक रहे, राहुल बारपुते जी को अपनी वाक् चातुर्य से स्तब्ध कर चुके डॉ. वैदिक को बाबा बारपुते ने अपने भाषण को लिखकर लाने के लिए कहा और यह आश्वस्ति दी कि उसे नई दुनिया में छापेंगे। दूसरे दिन वैदिक जी अपना भाषण लिखकर ले गए और बाबा को सौंपा, फिर बाबा ने उसे छापा भी। यहीं से वैदिक जी के भीतर पत्रकार बनने की चेष्टा का जन्म हुआ। उन दिनों इंदौर से ईश्वर चंद जैन जी जागरण अख़बार प्रकाशित करते थे, उस अख़बार में प्रूफ़ रीडिंग का कार्य करने के लिए वैदिक जी को काम मिल गया, धीरे-धीरे उनकी पत्रकारिता आरम्भ हुई और फिर नई दुनिया इत्यादि में भी आपने कार्य किया। डॉ. वैदिक ने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड एफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।
महाविद्यालयीन शिक्षा इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज से ग्रहण करने के बाद डॉ. वैदिक जी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ़ इंज़’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा। उनका निष्कासन हुआ, वह भी राष्ट्रीय मुद्दा बना। 1965-67 में संसद डॉ. राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपालानी, इंदिरा गांधी, गुरू गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, रामधारी सिंह ’दिनकर’, डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ. हरिवंशराय बच्चन जैसे लोगों ने वैदिक जी का डटकर समर्थन किया। यह मामला संसद में उठाया, संसद हिल गई, तब जाकर तात्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने विशेष स्वीकृति प्रदान की और वेदप्रताप वैदिक जी का शोध हिन्दी में स्वीकृत हुआ। सभी दलों के समर्थन से वैदिक जी ने विजय प्राप्त की, नया इतिहास रचा। तब से लेकर आज तक छात्रों को अपना शोध हिन्दी व भारतीय भाषाओं में प्रस्तुत करने की सहूलियत मिली यानी हिन्दी में शोधार्थियों को शोध कार्य करने का श्रेय भी डॉ. वैदिक को जाता है।
हिन्दी भाषा के प्रति उनका अनुराग बचपन से रहा और उन्होंने डॉ. राममनोहर लोहिया के ‘अंग्रेज़ी हटाओ आन्दोलन’ को भी इंदौर में संचालित किया। डॉ. वैदिक जी ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ़ 13 वर्ष की अल्पायु में की थी। हिन्दी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। बाद में छात्र नेता और भाषाई आंदोलनकारी के तौर पर कई जेल यात्राएँ *की*, इसके साथ ही, डॉ. वैदिक भारत में चलने वाले अनेक प्रचंड जन-आंदोलनों के सूत्रधार भी रहे।
डॉ. वैदिक लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे हैं। यहाँ तक कि जब उनका कोई बेहतरीन लेख, समाचार या विचार प्रकाशित होता था तो उन्हें सुबह-सुबह टेलीफ़ोन कर बधाई देने वालों में कई पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रसिद्ध राजनेता, मुख्यमंत्री इत्यादि हुआ करते थे।
भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान देने के लिए लगातार डॉ. वैदिक को बुलाया जाता रहा। उन्होंने अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। आकाशवाणी और विभिन्न टीवी चैनलों पर 1962 से अब तक अगणित कार्यक्रम किए।
डॉ. वैदिक ने ‘अफ़गानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेज़ी हटाओ: क्यों और कैसे?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’, ‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’, ‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका: इंडियाज़ ऑप्शन्स’, ‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो?’, ‘वर्तमान भारत’, ‘अफ़गानिस्तान: कल, आज और कल’, ‘महाशक्ति भारत’, ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’, ‘कुछ मित्र और कुछ महापुरुष,’ ‘मेरे सपनों का हिंदी विश्वविद्यालय’, ‘हिंदी कैसे बने विश्वभाषा’, ‘स्वभाषा लाओ:अंग्रेज़ी हटाओ’, आदि पुस्तकें लिखीं।
डॉ. वैदिक को अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित किया गया, जिनमें विश्व हिन्दी सम्मान (2003), महात्मा गांधी सम्मान (2008), दिनकर शिखर सम्मान, पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण-पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, लोहिया सम्मान, काबुल विश्वविद्यालय पुरस्कार, मीडिया इंडिया सम्मान, लाला लाजपतराय सम्मान आदि सम्मिलित हैं।
समग्र भारतीयता के वैश्विक परिचय डॉ. वेदप्रताप वैदिक के सम्बन्ध कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों से रहे, भारत ही नहीं अपितु कई देशों के प्रधान समय-समय पर डॉ. वैदिक से सलाह लेते रहे, विदेश नीति के अध्येता और विदेश सम्बन्धों के धनी डॉ. वैदिक का भारतीय पत्रकारिता में अवदान सदैव रेखांकित होता रहा और यहीं नहीं उनके नियमित प्रकाशित होने वाले लेखों में भी विदेश नीति निर्धारण और पत्रकारिता के साथ-साथ हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम भी झलकता रहता था।
वर्ष 2018 में मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक का दायित्व संभाल कर आप हिन्दी में हस्ताक्षर बदलो आंदोलन के प्रणेता रहे। आपके मार्गदर्शन में संस्थान द्वारा 26 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर अन्य भाषाओं से हिन्दी में बदलवाए। यह अपनी तरह का अनूठा आंदोलन रहा, जिसके कारण वर्ष 2020 में इसे विश्व कीर्तिमान में भी दर्ज किया गया। संस्थान के अध्यक्ष होने के नाते डॉ. अर्पण जैन ’अविचल’ और डॉ. वैदिक सहित सभी पदाधिकारियों ने यह विश्व कीर्तिमान ग्रहण किया। आप अनेक न्यासों, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय रहे। आपने भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद् की स्थापना कर हज़ारों लोगों को जोड़ा।
सहृदय व्यक्तित्व के धनी डॉ. वेदप्रताप वैदिक के अवसान से डॉ. वैदिक युगीन पत्रकारिता का स्तम्भ ढह गया। डॉ. वैदिक 14 मार्च 2023 को शरीर को त्याग कर अक्षर देह के रूप में परिवर्तित हो गए। वर्तमान दौर में भारत की पत्रकारिता संक्रमण काल से गुज़र रही है, ऐसे दौर में डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी का चले जाना एक भारतीय पत्रकारिता के वैश्विक प्रतिनिधि के स्थान को खाली कर गया। यह निर्वात अब भरना लगभग असंभव सा है।