बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस विकार।।
2001 या.2002 के आसपास मैं राजभाषा विभाग में था।एक दिन हमारे विभाग के किसी अधिकारी ने कहा कि अमुक वरिष्ठ अधिकारी को श्री हनुमान चालीसा का अंग्रेजी अनुवाद चाहिए।यह भी निर्देश थे कि अनुवाद सरल हो, पर उसमें निहित भावों के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए,चूंकि उसे वे अपने विदेशी मित्रों को वितरित करने वाले थे।हमारे उक्त अधिकारी ने मुझे अपनी विवशता बताई ,तो मैंने कहा कि श्री हनुमान चालीसा इतनी महत्त्वपूर्ण व पूजनीय पुस्तक है कि इसका अनुवाद Internet पर मिल जायेगा और सौभाग्यवश मिल भी गया।भगवान श्री मारुतसुत ने हमारी व हमारे विभाग की प्रतिष्ठा रख ली।
2009 में एक दिन अमेरिकन ड्राईफ्रूट्स से कुछ सामान खरीदने गया था ,तो काऊंटर पर भुगतान के समय मुझे एक सुंदर सी श्रीहनुमान चालीसा भेंट में दी गई।जब मैंने प्रश्नसूचक दृष्टि से काऊंटर वाले महानुभाव को देखा तो उन्होंने बताया कि एक बहुत बड़े संगठन के बहुत बड़े अधिकारी जब 26/11 आतंकी हमले में ताज में फंसे हुए थे तो श्री हनुमान चालीसा उनके लिए जीवनदान बनी।वे पूरे आक्रमण के दौरान यही पाठ करते रहे थे, अतः इस पुस्तक को “संजीवनी मंत्र” मानते हुए उन्होंने यह किताब यथासंभव ग्राहकों को मुफ़्त में बांटने का संकल्प
लिया है।
श्री रामचरित मानस में भगवान श्री बजरंग बली को “अतुलित बलधामं” के साथ साथ “ज्ञानीनाम् अग्रगण्यं” कहा गया है।श्री राम रक्षा स्तोत्र में उन्हें “बुद्धिमतां वरिष्ठं” से पूजा जाता है।सुरसा जो देवों द्वारा उनकी परीक्षा लेने हेतु भेजी जाती है कि “क्या वे रावण के पास भेजने योग्य दूत हैं”” वह उनके बुद्धि और बल की परीक्षा लेकर उन्हें “बल बुद्धि निधान” कहती हैंः
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।
वे छायाग्रहिणी राक्षसी को मारते हैं तो बाबा तुलसी उन्हें धीरमति यानी “धैर्यवान बुद्धिमान” कहते हैं।श्री हनुमान चालीसा में उन्हें “ज्ञान गुण सागर” कहा गया है। श्रद्धेय जामवंत उनको प्रोत्साहित करते हुए “बुधि बिबेक बिग्यान निधाना” से सम्बोधित करते हैं।
श्री रामचरित मानस के अतिरिक्त श्री बाल्मीकि रामायण में किष्किंधा काण्ड में जब श्री राम व श्री हनुमान की भेंट होती है तो भगवान श्री वाल्मीकि जहां उन्हें वाक्यज्ञ व वाक्यकुशल के साथ साथ उनकी भाषा को पुनरुक्ति दोष से मुक्त कहते हैं, वहीं श्री राम ने उनके साथ वार्तालाप करने के पश्चात श्री लक्ष्मण से भगवान श्री पवनपुत्र के बारे में यूं कहाः
“इनकी भाषा वेदसम्मत है और शुद्ध व्याकरण युक्त है।इनके चेहरे व अंगों के हावभाव पूरी तरह इनके सम्भाषण से मेल खा रहे हैं यानी कहीं भी नाटकीयता नहीं है।इनकी वाणी सूक्ष्म पर विषय के संदर्भ में स्पष्ट ,कर्णप्रिय, सुसंस्कृत व आनंद सृजित करनेवाली है।
(यहां मैंने सूक्ष्म में ही वर्णन किया है।)
थीरू कम्ब रामायण में भी भगवान श्रीराम की श्री अंजनीपुत्र से प्रथम भेंट के पश्चात उनकी वाक्पटुता व वाणी के प्रति इसी प्रकार के उद्गार थे।बाकी जितनी भी पुस्तकें मैंने पढ़ी हैं या मेरे संज्ञान में हैं उनमें श्री बजरंगबली को महान बुद्धिमान व ज्ञानियों में श्रेष्ठ बताया गया है।अतः यदि किसी अल्पज्ञ या मूढ़ व्यक्ति ने किसी भी स्थान पर उनकी वाणी या भाषा को दोषपूर्ण व अभद्र दिखाया है ,तो वह अपनी स्वयं की लघुता का प्रदर्शन कर रहा है।
“आदिपुरुष” के प्रति जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही हैं तो एक बात अत्यंत स्पष्ट है कि इससे जुड़े हुए हर व्यक्ति भले ही वे कलाकार, लेखक, निर्देशक,संवाद लेखक या निर्माता जो भी हैं, उनका अपराध अक्षम्य है।दानवी शक्तियों को भस्मीभूत कर देने वाले भगवान श्री हनुमान जी के भक्त विद्वान, यशस्वी, धनवान, वंचित, गरीब, उच्च, मध्य व निम्न वर्ग यानी हर जगह हैं।उनके प्रति हर व्यक्ति की श्रद्धा तो विशेष है ही, साथ ही कई परिवार उन्हें अपने परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं।
भारतीयों और प्रवासी भारतीयों में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें श्री हनुमान चालीसा कंठस्थ है,बल्कि हज़ारों लोग ऐसे हैं जिन्हें सुंदर कांड भी कंठस्थ है और वे इनका नियमित पाठ भी करते हैं।मैं स्वयं श्री पवनपुत्र हनुमानजी का भक्त हूं और मेरा मानना है कि उनके करोड़ों भक्तों की आस्था से खेलने का अधिकार किसी भी व्यक्ति को नहीं है।
यह बात सही है कि कुछ क्षुद्र व विकृत मानसिकता वाले लोगों के द्वारा किसी भी दुर्बुद्धिपूर्ण कृत्य से उन ‘”अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता” के प्रति जो श्रद्धा व भक्ति है वह कम नहीं होगी, पर ऐसे लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग कर लोगों के आक्रोश का भाजन अवश्य बन रहे हैं।जनतंत्र में स्वतंत्र विचारों का स्वागत है ,पर स्वतंत्रता के नाम पर पूजनीय देवी-देवताओं को उपहास का पात्र बनाना न तो उचित है और न ही संविधान-सम्मत।उन्हीं श्री हनुमान प्रभु से प्रार्थना है कि वे ऐसे “बुद्धिहीन”प्राणियों को “सद्बुद्धि ” प्रदान करें, ताकि भविष्य में ऐसा न हो।
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस विकार।।
2001 या.2002 के आसपास मैं राजभाषा विभाग में था।एक दिन हमारे विभाग के किसी अधिकारी ने कहा कि अमुक वरिष्ठ अधिकारी को श्री हनुमान चालीसा का अंग्रेजी अनुवाद चाहिए।यह भी निर्देश थे कि अनुवाद सरल हो, पर उसमें निहित भावों के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए,चूंकि उसे वे अपने विदेशी मित्रों को वितरित करने वाले थे।हमारे उक्त अधिकारी ने मुझे अपनी विवशता बताई ,तो मैंने कहा कि श्री हनुमान चालीसा इतनी महत्त्वपूर्ण व पूजनीय पुस्तक है कि इसका अनुवाद Internet पर मिल जायेगा और सौभाग्यवश मिल भी गया।भगवान श्री मारुतसुत ने हमारी व हमारे विभाग की प्रतिष्ठा रख ली।
2009 में एक दिन अमेरिकन ड्राईफ्रूट्स से कुछ सामान खरीदने गया था ,तो काऊंटर पर भुगतान के समय मुझे एक सुंदर सी श्रीहनुमान चालीसा भेंट में दी गई।जब मैंने प्रश्नसूचक दृष्टि से काऊंटर वाले महानुभाव को देखा तो उन्होंने बताया कि एक बहुत बड़े संगठन के बहुत बड़े अधिकारी जब 26/11 आतंकी हमले में ताज में फंसे हुए थे तो श्री हनुमान चालीसा उनके लिए जीवनदान बनी।वे पूरे आक्रमण के दौरान यही पाठ करते रहे थे, अतः इस पुस्तक को “संजीवनी मंत्र” मानते हुए उन्होंने यह किताब यथासंभव ग्राहकों को मुफ़्त में बांटने का संकल्प
लिया है।
श्री रामचरित मानस में भगवान श्री बजरंग बली को “अतुलित बलधामं” के साथ साथ “ज्ञानीनाम् अग्रगण्यं” कहा गया है।श्री राम रक्षा स्तोत्र में उन्हें “बुद्धिमतां वरिष्ठं” से पूजा जाता है।सुरसा जो देवों द्वारा उनकी परीक्षा लेने हेतु भेजी जाती है कि “क्या वे रावण के पास भेजने योग्य दूत हैं”” वह उनके बुद्धि और बल की परीक्षा लेकर उन्हें “बल बुद्धि निधान” कहती हैंः
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मै पावा।।
राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।
वे छायाग्रहिणी राक्षसी को मारते हैं तो बाबा तुलसी उन्हें धीरमति यानी “धैर्यवान बुद्धिमान” कहते हैं।श्री हनुमान चालीसा में उन्हें “ज्ञान गुण सागर” कहा गया है। श्रद्धेय जामवंत उनको प्रोत्साहित करते हुए “बुधि बिबेक बिग्यान निधाना” से सम्बोधित करते हैं।
श्री रामचरित मानस के अतिरिक्त श्री बाल्मीकि रामायण में किष्किंधा काण्ड में जब श्री राम व श्री हनुमान की भेंट होती है तो भगवान श्री वाल्मीकि जहां उन्हें वाक्यज्ञ व वाक्यकुशल के साथ साथ उनकी भाषा को पुनरुक्ति दोष से मुक्त कहते हैं, वहीं श्री राम ने उनके साथ वार्तालाप करने के पश्चात श्री लक्ष्मण से भगवान श्री पवनपुत्र के बारे में यूं कहाः
“इनकी भाषा वेदसम्मत है और शुद्ध व्याकरण युक्त है।इनके चेहरे व अंगों के हावभाव पूरी तरह इनके सम्भाषण से मेल खा रहे हैं यानी कहीं भी नाटकीयता नहीं है।इनकी वाणी सूक्ष्म पर विषय के संदर्भ में स्पष्ट ,कर्णप्रिय, सुसंस्कृत व आनंद सृजित करनेवाली है।
(यहां मैंने सूक्ष्म में ही वर्णन किया है।)
थीरू कम्ब रामायण में भी भगवान श्रीराम की श्री अंजनीपुत्र से प्रथम भेंट के पश्चात उनकी वाक्पटुता व वाणी के प्रति इसी प्रकार के उद्गार थे।बाकी जितनी भी पुस्तकें मैंने पढ़ी हैं या मेरे संज्ञान में हैं उनमें श्री बजरंगबली को महान बुद्धिमान व ज्ञानियों में श्रेष्ठ बताया गया है।अतः यदि किसी अल्पज्ञ या मूढ़ व्यक्ति ने किसी भी स्थान पर उनकी वाणी या भाषा को दोषपूर्ण व अभद्र दिखाया है ,तो वह अपनी स्वयं की लघुता का प्रदर्शन कर रहा है।
“आदिपुरुष” के प्रति जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही हैं तो एक बात अत्यंत स्पष्ट है कि इससे जुड़े हुए हर व्यक्ति भले ही वे कलाकार, लेखक, निर्देशक,संवाद लेखक या निर्माता जो भी हैं, उनका अपराध अक्षम्य है।दानवी शक्तियों को भस्मीभूत कर देने वाले भगवान श्री हनुमान जी के भक्त विद्वान, यशस्वी, धनवान, वंचित, गरीब, उच्च, मध्य व निम्न वर्ग यानी हर जगह हैं।उनके प्रति हर व्यक्ति की श्रद्धा तो विशेष है ही, साथ ही कई परिवार उन्हें अपने परिवार का अभिन्न अंग मानते हैं।
भारतीयों और प्रवासी भारतीयों में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें श्री हनुमान चालीसा कंठस्थ है,बल्कि हज़ारों लोग ऐसे हैं जिन्हें सुंदर कांड भी कंठस्थ है और वे इनका नियमित पाठ भी करते हैं।मैं स्वयं श्री पवनपुत्र हनुमानजी का भक्त हूं और मेरा मानना है कि उनके करोड़ों भक्तों की आस्था से खेलने का अधिकार किसी भी व्यक्ति को नहीं है।
यह बात सही है कि कुछ क्षुद्र व विकृत मानसिकता वाले लोगों के द्वारा किसी भी दुर्बुद्धिपूर्ण कृत्य से उन ‘”अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता” के प्रति जो श्रद्धा व भक्ति है वह कम नहीं होगी, पर ऐसे लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरूपयोग कर लोगों के आक्रोश का भाजन अवश्य बन रहे हैं।जनतंत्र में स्वतंत्र विचारों का स्वागत है ,पर स्वतंत्रता के नाम पर पूजनीय देवी-देवताओं को उपहास का पात्र बनाना न तो उचित है और न ही संविधान-सम्मत।उन्हीं श्री हनुमान प्रभु से प्रार्थना है कि वे ऐसे “बुद्धिहीन”प्राणियों को “सद्बुद्धि ” प्रदान करें, ताकि भविष्य में ऐसा न हो।
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस विकार।।