भारत में ब्रिटिश काल के कई ईसाई पादरियों, प्रचारक और लेखकों नें हिन्दू देवी-देवताओं और पुराणों की कथाओं का बहोत मज़ाक उडाया; उस काल का ईसाई साहित्य इस तथ्य की साक्षी है। आज उनकी यह प्रवृत्ति मंद जरूर हुई है, परंतु सर्वथा बन्द नहीं हुई है, तब उन्हें पादरी जे. टी. सण्डरलैंड (Jabez Thomas Sunderland) के बाईबल सम्बन्धित इन विचारों पर भी ध्यान देना चाहिए।
श्री सण्डरलैंड ने अपनी पुस्तक ‘The Origin and Character of The Bible’ में लिखा है…
“The Bible contains many things intrinsically absurd. For example, the statement that the first woman was made of a rib taken out of the first man’s side; the accounts of a serpent, and of an ass, talking; the stories of Jonah living three days within a fish, and of Nebuchadnezzar eating grass like an ox for seven years. When we find such stories as these in any of the sacred books of the world except our own, we do not for a moment think of believing them. We say they are so absurd that of course we cannot believe them. But do they become any less absurd by being found in our own sacred book? … I mean these stories are absurd when we look at them as accounts of actual events. When looked at as we look at similar stories in other sacred books—viz., as legends and myths—they are all interesting.”
अर्थात् – “बाईबल में कई बातें सर्वथा बेहूदा है। उदाहरणार्थ, यह विधान कि पहली स्त्री [हव्वा] पहले पुरुष [आदम] के पहलू से निकाली गई एक पसली से बनाई गई थी, सर्प और गधे के मनुष्य की भांति बोलने के वर्णन, योना के तीन दिन तक एक मछली के पेट में रहने की और नेबचहुरेज्जर द्वारा बैल की भांति सात वर्ष तक घास खाने की कथाएं, आदि। जब हम इस प्रकार की कथाएं अपने [बाईबल] से भिन्न संसार की किसी दूसरी पवित्र पुस्तकों में पाते है, तब हम एक क्षण के लिए भी उन पर विश्वास करने का विचार नहीं करते; हम कहते है कि ये बातें इतनी बेहूदा है कि हम उन्हें सच्ची नहीं मान सकते, किंतु क्या ऐसी कथाएं हमारे अपने बाईबल में मिलने पर वे कम बेहूदा हो जाती है? … मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि जब हम बाईबल की इन कहानियों को वास्तविक घटनाओं के वर्णन के रूप में देखते है तब वे अत्यंत बेहूदा लगती है, लेकिन जिस तरह हम दूसरी पवित्र पुस्तकों में ऐसी कहानियों को काल्पनिक कथाओं और मिथकों के रूप में देखते है वैसे ही बाईबल की कहानियों को देखा जाए तो वे सब रोचक बन जाती है।” (‘The Origin and Character of The Bible’, १९०९ संस्करण, पृ. २७३-४)
वास्तव में, ईसाईयत का पूरा भवन ही जिस पहले पुरुष [आदम] और पहली स्त्री [हव्वा] और उनके पहले, मूल पाप (Original Sin) की कहानी पर खडा है, उस कहानी को ही पादरी सण्डरलैंड नें एक बेहूदा काल्पनिक या मिथक घोषित कर दिया! और यीशु ने तो “ओल्ड टेस्टामेंट” की उपरोक्त मछली वाली “काल्पनिक” और बेहूदा कहानी को “सत्य घटना” मान ली थी और उसके आधार पर ही स्वयं के लिए तीन दिन तक कब्र में रहने के बाद पुनः जीवित हो उठने की भविष्यवाणी कर दी थी! पादरी सण्डरलैंड यीशु के चमत्कारों को भी सुसमाचार लेखकों की कल्पना और मिथक की श्रेणी में रखते है! मेरे ईसाई बन्धुओ, पादरी सण्डरलैंड की तरह बाईबल की ऐसी बेहूदा कहानियों को, विशेषकर यीशु के तथाकथित चमत्कारों को, सुसमाचार लेखकों की काल्पनिक कथाओं और मिथकों के रूप में देखने की आप में हिम्मत है?
[इंग्लैंड में जन्मे डॉ. जे. टी. सण्डरलैंड (१८४२ – १९३६) थियोलोजी (धर्मशास्त्र) की शिक्षा प्राप्त कर प्रारम्भ में अमरीका में बैप्टिस्ट चर्च के पादरी बने थे, लेकिन बाद में अपने उदार और स्वतन्त्र विचारों के कारण उन्हें यह चर्च छोडना पडा और वे युनिटेरियन चर्च के पादरी बने। वे अपने साम्राज्यवाद-विरोधी विचारों के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी प्रस्तुत पुस्तक ‘The Origin and Character of The Bible’ में बाईबल का विश्लेषण रोचक व पठनीय है।]
पांचवीं शताब्दी के ईसाई धर्मशास्त्री अगस्तीन मानता था कि बिब्लिकल समय में चमत्कार किए और दिखाए जाते थे, ताकि चमत्कार के माध्यम से लोगों में बाइबल के परमेश्वर पर विश्वास जगे और इस विश्वास से लोग परमेश्वर की कृपा के पात्र बनें। किंतु जब लोग उसे पूछने लगे कि वैसे चमत्कार अब क्यों नहीं होते, तो वह कहता था कि *लोगों में बाइबल के परमेश्वर में विश्वास जगे इस हेतु अविश्वासी लोगों के समक्ष चमत्कार बताना आवश्यक था, पर जब कोई व्यक्ति चमत्कार दिखाने की मांग करता है तो वह व्यक्ति स्वयं एक चमत्कार ही है, क्योंकि पूरी दुनिया चमत्कार देखकर बाइबल के परमेश्वर में विश्वास करती है, पर वह फिर भी विश्वास नहीं करता, ईमान नहीं लाता।
◆ The Origin and Character of The Bible (J. T. Sunderland)
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