क़स्बाई संस्कृति के वाहक मध्यवर्गीय परिवार का एक होनहार लड़का रोज़ सुबह उठते ही घर के बाहर के चबूतरे पर बैठ जाता। अख़बार पढ़ता और रूस अमरीका जर्मन जापान चीन आदि आदि की बातें ज़ोर ज़ोर से बोलते हुए करता। साथ ही हर बार यह कहना नहीं भूलता कि अपने यहाँ है ही क्या? आदि-आदि। उस के अपने घर के लोग उसे डाँटते हुए कहते कि अरे बेटा अभी-अभी उठा है। ज़रा दातुन-जंगल कर ले। स्नान कर ले। घड़ी दो घड़ी रब को सुमिर ले। मगर वह नहीं सुनता। लोगों से बहसें लड़ाता रहता। उस के अनुसार सारे विद्वान विदेशों में हुए और भारत ने तो सिर्फ़ पाखण्डियों को ही पैदा किया। उस लड़के के घर के लोग उसे बार-बार टोकते रहते, मगर वह सुनता ही नहीं।
ऐसे ही किसी एक दिन वह रोज़ की तरह बे-तमीज़ी पर उतारू था। उस के पिता उसे बार-बार टोक रहे थे। वह अनसुना करता जा रहा था। तभी अचानक पड़ोस वाले डेविड साब की वाइफ उस के लिए चाय बिस्कुट ले आई। पट्ठा अपने बाप की बातों को धता बता कर चाय बिस्कुट के मज़े लेने लगा। इस पर उस के पिता आग बबूला हो कर उसे पीटने दौड़ पड़े। न जंगल गया न दातुन की। न नहाया। न रब को सुमिरा। और चाय बिस्कुट खाने लगा। उस लड़के के पिता उस लड़के को पीटते इस से पहले ही गली मुहल्ले के बहुत से लोग बीच बचाव में आ गए। जिनके घर से चाय बिस्कुट आई थीं वह डेविड साब उस लड़के के पिता को समझाने लगे कि आप का लड़का इन्क़लाबी है उसे पीटिये मत। उसे समझने की कोशिश कीजिये। यह सुन कर उस लड़के के पिता बोले कि अगर सुबह उठ कर बिना दातुन जंगल किये चाय बिस्कुट निगलते हुए दूसरों की तारीफ़ और अपनों की बुराई करना ही इनक़लाब है तो भाड़ में जाय ऐसा इनक़लाब।
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नवीन सी. चतुर्वेदी
मुम्बई
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