स्टार्ट-अप हर्वा ग्रामीण भारत के लोगों को आउटसोर्स इंडस्ट्री के दायरे में लाकर इसे नया विस्तार दे रही है। हर्वा का प्रयास है कि “ग्रामीण भारत की ताकत” का उपयोग किया जाए। भारत के बड़े शहरों में आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री के तेज़ी से विकास ने रातोंरात रोज़गार के नए अवसर पैदा किए हैं। लेकिन इस आपाधापी में गांवों के लोगों पर नज़र नहीं गई है। लेकिन एक स्टार्ट-अप इस मसले से निपटने का प्रयास कर रही है।
ग्रामीण भारत में आउटसोर्सिंग
स्टार्ट-अप हर्वा का प्रयास है कि “ग्रामीण भारत की ताकत” का उपयोग किया जाए। यह देश की व्यापक आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री को ग्रामीण समुदायों तक लेकर जाना चाहती है। इसके साथ ही इसकी कोशिश है कि गांवों की महिलाओं को वह तकनीकी कौशल भी उपलब्ध करा दिया जाए जो उन्हें बिजनेस प्रोसेसिंग आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री में सफल बना सके। हर्वा का मुख्य ध्यान कौशल विकास, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग, समुदाय आधारित खेती और माइक्रोफाइनेंस पर है। इसके कार्यालय नई दिल्ली, गुरुग्राम, हैदराबाद, पुणे और न्यू जर्सी में हैं।
हर्वा के संस्थापक और चेयरमैन अजय चतुर्वेदी कहते हैं, “हर्वा फिलहाल ग्रामीण बीपीओ के लिए मौलिक सेवाएं उपलब्ध कराती है। इसके अलावा यह भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को गांवों में वितरण और उत्पाद एवं बिक्री रणनीति से संबंधित सलाहकार सेवाएं भी देती है। यह उद्यमी बनने की इच्छा रखने वाले अर्द्ध-शहरी और ग्रामीण लोगों को भी सलाहकार सेवाएं देती है।”
चतुर्वेदी ने यूनिवर्सिर्टी ऑ़फ पेन्सिलवैनिया के व्हार्टन स्कूल ऑ़फ मैनेजमेंट में प्रौद्योगिकी प्रबंधन का अध्ययन किया। उन्होंने मेसाच्यूसेट्स के जॉन ए़फ. केनेडी स्कूल ऑ़फ गवर्नमेंट से वैश्विक लीडरशिप और पब्लिक पॉलिसी में डिप्लोमा भी किया है। उन्होंने अपने दिलचस्पी और लगाव के क्षेत्र में जाने से पहले कई साल तक सिटीबैंक में भी काम किया।
हर्वा का आइडिया
अमेरिका में ग्रेजुएट डिग्री के लिए पढ़ाई करते वक्त जब चतुर्वेदी भारत अपने घर आए हुए थे तो उनके एक अनुभव ने उन्हें हर्वा का आइडिया दिया।
चतुर्वेदी कहते हैं, “इस शताब्दी के शुरुआत में मैं जब भी भारत की यात्रा पर आता तो मुझे शहरी भारत में गरीबी की बड़ी खाई देखने को मिलती- ट्रैफिक सिगनलों पर भीख मांगते भिखरी, बेघर लोग, लेकिन साथ ही आकाश छूती इमारतें, भव्य शॉपिंग मॉल और जबर्दस्त लग्ज़री! बाज़ार का वाकई उदारीकरण हो चुका था। ”
वह कहते हैं, “कारपोरेट दुनिया में काम करते वक्त ही मेरा दिल खुले में आकर काम करना चाहता था।” उन्हें वर्ष 2013 में वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम द्वारा युवा ग्लोबल लीडर के खिताब से सम्मानित किया जा चुका है। वह कहते हैं, “जब मैं अमेरिका में था तो मैंने उत्तराखंड में एक फार्म खरीदा था। कुछ प्रयोगों के बाद हमने उत्तराखंड में लेमनग्रास उगाई और यह प्रयोग बेहद सफल रहा। लेकिन इस आइडिया का विस्तार करना चुनौतीभरा काम था क्योंकि कृषि भूमि पर क़र्ज़ आसानी से नहीं मिलता, जब तक कि आप बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं कर रहे हो। उस समय मैं सिटीबैंक में ही काम कर रहा था। तब मैंने और क्षेत्रों पर ध्यान देना शुरू किया जिससे कि हमें नियमित तौर पर नकदी मिलती रहे। उसी समय मेरे दिमाग में ग्रामीण बीपीओ का आइडिया आया।”
महिलाओं की भागीदारी
हर्वा अपनी तरह की पहली कंपनी थी जिसने ग्रामीण गतिविधियों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। यह ग्रामीण महिलाओं को कई महीने तक तकनीकी कौशल में प्रशिक्षित करती है। इसके बाद उन्हें अपने किसी आउटसोर्सिंग केंद्र में काम करने का मौका दिया जाता है। इनमें से कई ने तो अपने जीवन में पहले कभी कंप्यूटर तक नहीं देखा था। कई अन्य महिलाएं कभी किसी ऑफिस में नहीं गईं। इनको मिलने वाले काम में डेटा माइनिंग से ऑनलाइन विज्ञापन प्रकाशित करना शामिल है और काम करने की अवधि लचीली हो सकती है। चतुर्वेदी कहते हैं इस आइडिया के बारे में एक गांव में बताते समय एक महिला ने सिर्फ चार घंटे में पूरा कंप्यूटर कीबोर्ड याद कर लिया, जबकि उसने जीवन में पहली बार कंप्यूटर देखा था और वह सिर्फ आठवीं कक्षा तक पढ़ी थी। वह क्षण हमें प्रभावित कर गया। उसके बाद हमने आसपास के क्षेत्र में 500 महिलाओं को प्रशिक्षित किया और उसके बाद हरियाणा में दुनिया के पहले ग्रामीण महिला बीपीओ का शुभारंभ हुआ। लिमका बुक ऑ़फ वर्ल्ड रिकॉर्ड में यह रिकॉर्ड दर्ज़ है।
ग्रामीण इलाकों में बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग केंद्रों के कारण महिलाओं को अनूठे रोजगार अवसर उपलब्ध होते हैं जिसमें उन्हें अपना घर छोड़कर नहीं जाना होता। ये केंद्र कर्मचारियों और गांव वालों को प्रशिक्षण और अन्य सेवाएं मुहैया कराते हैं जिसमें ज़ोर इस बात पर रहता है कि उत्पादक के तौर पर गांव वालों की ताकत को पहचाना जाए।
उत्पादन अर्थव्यवस्था
चतुर्वेदी कहते हैं, “एक बैंकर और पूर्व स्ट्रेटेजी कंसल्टेंट होने के नाते मैं देख सकता था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अवसर सिर्फ उपभोक्ता बाज़ार में ही नहीं है, बल्कि इसके उत्पादन अर्थव्यवस्था के अवसरों का अभी दोहन नहीं किया गया है। अधिकतर एफएमसीजी कंपनियां इस बात पर ध्यान देती हैं कि उनके उत्पादों की बिक्री थोड़ी बढ़ जाए और फिर उनके सामने यह चुनौती आ खड़े होती है कि वे ऐसे लोगों को टूथपेस्ट बेचने का प्रयास करे होते हैं जिनके पास खाना तक नहीं है। मैंने जितना अधिक देश को यात्राओं के दौरान देखा, मुझे उतना ही पता लगा कि देश की मानव पूंजी की क्षमता का इस्तेमाल नहीं हो रहा है।”
गुरुग्राम के पास टीकली अकिलामपुर गांव में पहला हर्वा बीपीओ केंद्र शुरू होने के बाद हर्वा ने अन्य क्षेत्रों में भी अपना विस्तार किया है।
चतुर्वेदी के अनुसार, “हर्वा केंद्रों के विस्तार के साथ ही हमने ज़्यादा पड़ताल की और ग्रामीण अर्थव्यवस्था, इसकी रीढ़ भारतीय संस्कृति और इसको चलाने वाले दर्शन के बहुत-से पहलुओं को समझा। व्यक्तिगत तौर पर यह अपने भीतर झांकने की यात्रा थी, जो मुझे हिमालय तक लेकर गई।”
कौटिल्य फेलोशिप
चतुर्वेदी ने स्थानीय युवाओं की दिलचस्पी के मद्देनज़र अपनी निगाह एक और अवसर पर लगाई है। नया कौटिल्य फेलोशिप प्रोग्राम विकासात्मक अर्थव्यवस्था में ज्ञान और अनुभव की खाई को पाटना चाहता है। इसके लिए यह अपने फेलो को हर्वा के कारपोरेट, सरकारी और शैक्षिक भागीदारों के साथ एक साल तक काम करने का अवसर मुहैया कराता है। फेलो को अपने लेख, शोध पत्र और ब्लॉग लिखने के मौकों के साथ ही, ऐसे सम्मेलनों में भाग लेने का अवसर मिलता है जिनमें नामी वैज्ञानिक, शिक्षाविद और उद्यमी भाग लेते हैं।
(लेखिका कैनडिस याकोनो पत्रिकाओं और अखबारों के लिए लिखती हैं। वह दक्षिणी कैलि़फोर्निया में रहती हैं।)
श्री अजय चतुर्वेदी के बारे में विस्तार से जानिये- http://ajaychaturvedi.in/meet-the-man/
हर्वा की वेब साईट http://www.harva.co.in/
https://span.state.gov से साभार