हिन्दी की प्रख्यात लेखिका कृष्णा सोबती को इस वर्ष का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है। भारतीय ज्ञानपीठ के निणार्यक मंडल की बैठक में 92 वर्षीय सोबती का चयन किया गया। यह बैठक हिन्दी के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक डॉ. नामवर सिंह की अध्यक्षता में हुई। कृष्णा सोबती को साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने का फैसला लिया गया।
निणार्यक मंडल में गिरीश्वर मिश्र, शमीम हनफी, हरीश त्रिवेदी, रमाकांत रथ और भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीला धर मंडलोई आदि शामिल हैं। गत वर्ष यह पुरस्कार बांग्ला के मशहूर कवि शंख घोष को दिया गया था। पाकिस्तान के गुजरात में 18 फरवरी 1925 में जन्मी कृष्णा सोबती को पुरस्कार में 11 लाख रुपए, प्रशस्ति पत्र, वाग्देवी की प्रतिमा तथा प्रतीक चिह्न प्रदान किए जाएंगे। विभाजन के बाद सोबती दिल्ली में आकर बस गईं और तब से यही रहकर साहित्य सेवा कर रही हैं।
उन्हें 1980 में ‘जिन्दी नामा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया जो अकादमी का सवोर्च्च सम्मान है। उन्हें व्यास सम्मान तथा हिन्दी अकादमी का श्लाका सम्मान भी मिल चुका है। 1966 में अपनी पुस्तक ‘मित्रो मरजानी’ से वह साहित्य में चर्चित हुईं थी। नई कहानी के दौर में ‘बादलों के घेरे’, ‘सिक्का बदल गया’ से उनकी पहचान बनी। उनकी चर्चित रचनाओँ में ‘समय सरगम’, ‘हम हशमत’, ‘डार से बिछुड़ी’, ‘ऐ लड़की’, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, मित्रो मरजानी और जैनी मेहरबान सिंह शामिल है.