हिन्दू धर्म की अनेक संस्थाएं हजारो वर्षों से अपना आध्यात्मिक कार्य कर रही है । अध्यात्म की इस दीर्घ परंपरा ने हिन्दू समाज में दान और सेवा के अनेक मानदण्ड स्थापित किए है । ऐसे दानधर्म और सेवा की प्रेरणा देनेवाले संदेश सूक्त रूप से हिन्दू वाङगमय में पढने को मिलते है । ईशावास्यम् जगत् सर्वम् यह उपनिषद का संदेश संसार के कण कण में ईश्वर के अस्तित्त्व का संदेश देता है । और आत्मानं मोक्षार्थं जगद् हिताय च यह वैदिक सूक्त कहता है कि मानवता की सेवा से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । इन प्रेरणादायी संदेशों को यहां के समस्त हिन्दू, बौद्ध-, जैन और सिख समाज ने अपने दैनंदिन जीवन में उतारा है । अपने अपने गुरू के आदेशानुसार दान और सेवा करने की हमारी प्रथा युगों युगों से चली आ रही है । इसमें और एक संकेत ऐसा है कि अपने दान अथवा सेवा को गुप्त रखा जाए । दाहिने हाथ से किए दान की जानकारी बाएं हाथ को भी न हो ऐसी हमारे गुरूओं की सीख है । ऐसा यह पवित्र कार्य सदियों से चला आ रहा है ।
लेकिन आज का युग प्रचार और मार्केटिंग का है । अमरिका और युरोप में धनवान व्यक्ति और मल्टी नैशनल कंपनियां बडे पैमाने पर दान करती है जिसे फिलैन्थ्रोपि कहा जाता है । ऐसे दान और सेवाओं का खूब प्रचार होता है और दानदाताओं को भरपूर मानसम्मान दिया जाता है । ऐसे ही सम्मान के एक कार्यक्रम में भारत के संदर्भ में एक टिप्पणी की गयी कि भारतीय लोग दान में बहुत पिछे है । वे देते नही है, सिर्फ लेना जानते है ।
हम जानते है कि यह वास्तविकता नही है। इस संदर्भ में भारत में जब एक सर्वेक्षण किया गया तो ध्यान में आया कि ४१ प्रतिशत भारतीय जीवनभर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से दान करते है। हिन्दूओं की सभी धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाएं भी शिक्षा, स्वास्थ्य, गौरक्षा, वृक्षपूजा आदि माध्यमों से लगातार अपना दायित्व निभाते रहते है।
मुंबई में हो रहे हिन्दू आध्यात्मिक एवम् सेवा प्रदर्शनी में यह प्रयास होने जा रहा है कि अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा किये जानेवाले सेवाओं की जानकारी जनता को मिले। १०० से अधिक संस्थाओं के स्टाल इस प्रदर्शनी में रहेंगे। आर्ट आफ लिव्हिंग, रामकृष्ण मिशन, इस्कॉन, जीवन विद्या मिशन जैसी अखिल भारतीय संस्थाएं और अनेक स्थानीय धार्मिक संस्थाएं इस प्रदर्शनी में सहभागी हो रही है। शुक्रवार ११ जनवरी को शुरू हो रही यह प्रदर्शनी तीन दिन रहेगी। हिन्दू, जैन, बौद्ध- और सिख समाज के पूजनीय संतों का मार्गदर्शन होगा और इसी के साथ छात्र छात्राओं, महिलाएं और युवाओं द्वारा विविध प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत होंगे। कन्यावंदन, गुरूवंदन, भाषण प्रतियोगिताएं, महिलाओं के खेल, योग अभ्यास ऐसे संस्कार करनेवाले सुंदर आयोजन होंगे।
इस प्रदर्शनी के छह मूलभूत उद्देश्य है-
वन और वन्य जीवों का संरक्षण। निरंतर घटते वनों के कारण सृष्टी का समतोल बिगड रहा है। वनों के बिना वन्य जीव नही बच सकते। इसके लिए समाज को जागृत करना होगा। हमारी देवताओं के वाहनो में कुत्ता, मूषक, हाथी, शेर ऐसे प्राणी है जिनकी हम पूजा करते हैं। गाय को तो यहां माता का स्थान दिया गया है। प्राणियों के प्रति प्रेम की इस भावना को और व्यापक करते हुए हमें समस्त वन्य जीवों का रक्षण करना है। इसलिए वनों में वृद्ध-ी और उनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
प्रदर्शनी का दूसरा उद्देश्य है पर्यावरण की रक्षा! ग्लोबल वॉर्मिंग के गहरे संकट की आज सर्वदूर चर्चा है। पृथ्वी का तापमान बढता जा रहा है। इस संकट का मुकाबला भारतीय तत्व दर्शन में ही मिलता है। आज संसाधनों का जो शोषण हो रहा है उसे रोकना होगा। अपनी न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हो इतना ही निसर्ग से लेने का हिन्दू संस्कार पूरे विश्व को हम दे सकते है। हमारे गुरू और महात्माओं का यही संस्कार रहता है। इसी में पर्यावरण की रक्षा निहित है। इस विचार को प्रसारित करते हुए विश्व का मार्गदर्शन हो सकता है।
जो तीसरा उद्देश्य है, उसमें विश्व के समस्त पारिस्थितिक अर्थात् इकॉलॉजी के रक्षण की बात बतायी है। यह पृथ्वी केवल मनुष्यों के सुख के लिए है ऐसी पाश्चात्य धारणा के कारण जीव जंतु, पेड पौधों से लेकर समस्त निसर्ग संपत्ती का अमर्याद उपयोग हो रहा है। लेकिन हिन्दू दर्शन तो समस्त सृष्टि को ईश्वर रूप मानता है। व्यष्टि, समष्टि और परमेष्टि को एकत्व के भाव से देखता है। इस विचार का संस्कार हमारे गुरू और ग्रंथ करते है। इसी विचारों को आचरण में लाने से ही इकॉलॉजी को संरक्षित किया जा सकता है।
हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा प्रदर्शनी का चौथा उद्देश्य है पारिवारिक और मानवीय मूल्यों को बढावा देना। परिवार व्यवस्था तो हमारी संस्कृति की एक ऐसी विशेषता है जिसकी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं है। पारिवारिक मूल्यों के कारण ही हमारे समाज में हर एक को सुरक्षा मिलती है, हर व्यक्ती को प्रगति का अवसर मिलता है और सम्मान का जीवन प्राप्त होता है। इसी तरह दया, क्षमा, शांती जैसे मानवीय मूल्य हमारे धर्मग्रंथ और मठ मंदिरों द्वारा निरंतर प्रचारित किए जाते है। आज समस्त विश्व में विविध देशों में सतत संघर्ष हो रहे है। केवल भारत ऐसा देश है जिसने गत पाच हजार वर्षों र्में र्कभी भी किसी देश पर आक्रमण नही किया और अपने देश में आए हर धर्म के लोगों का स्वागत किया। समन्वय का यह भाव ही विश्व को नयी दिशा दे सकता है। भारत में भी पारिवारिक मूल्यों में कमी आ रही है। उसे पुनः प्रस्थापित करना है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रबोधन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत होंगे।
प्रदर्शनी का पांचवा उद्देश्य है नारी सम्मान को बढावा देना। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता की सीख देनेवाले इस देश में नारी सम्मान की रक्षा ठीक तरह से नही हो रही । भ्रुण हत्या, शिक्षा में अन्याय, बलात्कार आदि प्रकारों से नारी जाति पर हो रहे अत्याचार बढ रहे है।
समाज में हर नारी को अपना उचित सम्मान मिलें यही अपना ध्येय है ।
प्रदर्शनी का छठा और अंतिम उद्देश्य है राष्ट्र´ भावना पोषित करना। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी ऐसा प्रभु राम ने कहा है। रामायण काल से ही देश भक्ति की भावना अपने यहां व्याप्त है। जब जब यह भावना कमजोर हुई तब तब गहरे संकटों ने हमें घेरा और हम अपनी स्वतंत्रता भी खो बैठे। राष्ट´ीयता का संस्कार हर व्यक्ती को जन्मतः मिलना चाहिए। शिक्षा में इसे सर्वोच्च स्थान हो। तभी हमारी भावी पिढीयां सुरक्षित एवम् सम्मानित जीवन जी पाएंगे। इसीलिए राष्ट´ भाव को जगाने का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है।
इस तरह आज की सारी वैश्विक समस्याओं को ध्यान में रखकर उन्हें हिन्दू आध्यात्मिक परंपरा से जोडने का एक अदभूत् उपक्रम मुंबई में हो रहा है। इसे सफल बनाने के लिए इसमें सहभागी हो ऐसी सभी को प्रार्थना है।