Thursday, December 26, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवहीरकनी , शिवाजी और मातृदिवस !

हीरकनी , शिवाजी और मातृदिवस !

” दरवाजा खोलो और मुझे बाहर जाने दो।” हाथ जोड़कर आंखों में आंसू भरे हीरकनी सैनिकों से प्रार्थना कर रही थी।
” नहीं । यह नहीं हो सकता। राजे का आदेश है कि शाम छ: बजे किले का दरवाजा बंद हो जाये और अगले दिन सुबह ही खुले।” बंद दरवाजे के सामने हाथों में नंगी तलवारें लिये पहरेदारों ने कहा। ” शाम छ: बजे के बाद न तो कोई अंदर से बाहर जा सकता है और ना ही बाहर से अंदर आ सकता है। ”

” मेरा बच्चा नीचे गांव में अकेला है , भूख के मारे रो रहा होगा। जंगल के बीच झोपड़ी में मेरे बिना उसका क्या होगा ? ”
” नहीं , अब कुछ नहीं हो सकता। तुम्हें रात किले के अंदर ही बितानी पड़ेगी।कल सुबह जब दरवाजा खुले बेटे के पास चली जाना।”

बेबस हीरकनी डबडबाई आंखों से किले के अंदर लौटते हुए सोचने लगी। रोज ही तो सुबह यह गरीब महिला पहाड़ी से नीचे अपने गांव से दूध लेकर ऊपर किले में बेचने आती थी और शाम तक वापस लौट ही जाती थी।आज गांव से निकलने में देर हो गयी।किले में पहुंची तो समय का ध्यान भी न रहा और लौटने में देर हो गयी। मेरा बेटा भूख से रो रहा होगा।कैसे रात बीतेगी? मां अपने बेटे के लिये कुछ भी कर देना चाहती थी। आखिर इंसान से एक अकेली मां ही तो निस्वार्थ प्रेम करती है।

किला भी कोई मामूली किला नहीं था। रायगढ़ किला जहां छत्रपति शिवाजी महाराज का वर्ष 1674 में राज्याभिषेक हुआ था और उनके जीवन काल में यह किला अजेय रहा। यहीं उन्होंने अंतिम सांसें भी ली थीं। रायगढ़ किला एक ऊंची पहाड़ी की चोटी पर बना था जहां तीनों तरफ गहरी खाई थी। आने जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था।नीचे गांव में दस हजार मराठा घुड़सवार सैनिक मुगलों से ही निपटने के लिए ये सदा तैयार रहते थे । किले की मजबूत ऊंची दीवारें इसकी हर दिशा से रक्षा करती थीं। परंतु एक दिशा में हजारों फीट नीचे तक खड़ी चट्टान थी।इसलिये मराठा सेनापतियों ने इस दिशा में कोई भी दीवार नहीं बनाने का निर्णय लिया।इस दिशा से ऊपर चढ़ना किसी के लिये भी असंभव था।

हीरकनी को रात तो काटनी ही थी….अगले दिन प्रात: जब रायगढ़ किले का अभेद्य विशाल दरवाजा खुला तो पहरेदारों ने हीरकनी को दूध के बर्तन के साथ बाहर खड़ा पाया। उसे बाहर खड़ा देख पहरेदार आश्चर्यचकित और सशंकित हो गये कि कैसे किले से बाहर गयी और क्या चूक हो गयी।बिना देरी किये वो उसे शिवाजी महाराज के पास लेकर गये और पिछली रात का सारा किस्सा बताया।राजे के पूछने पर हीरकनी ने बताया कि जान की बाजी लगाकर भी उसे अपने भूखे बेटे के पास जाकर उसे खिलाना था। रात में ही वो किले की खड़ी चट्टान की दिशा में गयी और वहां से नीचे उतर कर अपने बेटे को खाना दिया। हजारों फीट खड़ी चट्टान से नीचे उतरने के कारण उसके हाथ पैर लहूलुहान हो गये थे।शिवाजी ने उसकी ऐसी हालत देखी और फिर विश्वास ना करने का कोई कारण नहीं रहा।शिवाजी महाराज ने मां की ममता की शक्ति के सम्मान में खड़ी चट्टान की दिशा में एक दीवार बनाने का आदेश दिया और इसका नाम रखा हीरकनी बुर्ज।

उनके मुख से निकला :
” जो हाथ पालना झुलाते हैं वही धरा पर शासन करेंगे। ”
यही हमारा मातृदिवस (Mother Day 14th May) है।
सलंग्न चित्र- रायगढ़ का हिरकनी बुर्ज

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार