मेरे आदरणीय स्वर्गीय पिताजी मेरे परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के उत्तम स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान रखते थे। उनका स्नेह इतना था कि अस्वस्थ होने पर बड़े डॉक्टर( झोलाछाप नहीं) दिखाते थे और पूरी तरह स्वस्थ होने पर ही राहत की सांस लेते थे। सार्वजनिक कहावत है कि बीमारी और गुण वंशानुगत होते हैं ।
अपने पूजनीय पिताजी के यह गुण स्वास्थ्य की देखभाल और क्रोध पिताजी से मिला हुआ है। मैं भी स्वास्थ्य को सर्वोपरि स्थान देता हूं और अपने सगे और भावनात्मक रूप से सगे के स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान देता हूं, और इस गुण के कारण भावनात्मक बेवकूफ और भावनात्मक शोषण का शिकार भी होता रहता हूं ।इसलिए मेरे आदरणीय भाई अक्सर कहते हैं कि जिसके ऊपर मैं विश्वास ज्यादा किया, उसी से बहुत धोखा खाया हैं।अब आते है स्वास्थ्य विषय पर। वर्तमान में अच्छा स्वास्थ्य सुविधा ब्रिटेन के क्राउन के दर्शन के समान हो गया हैं। अपने देश की स्वास्थ्य सुविधा बेहतरी के लिए कम जानी जाती है ,गरीबी की ओर ले जाने वाली ज्यादा पहचान बना रही हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार चिकित्सा खर्च बढ़ने से 7% आबादी प्रत्येक एक साल में गरीबी रेखा की ओर बढ़ रही हैं।
हमारे देश में आयुष्मान भारत ,प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, स्वास्थ्य बीमा योजना ,प्रधान मंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, जननी सुरक्षा योजना, सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता( आशा) योजना, राज्यों में 108 एंबुलेंस सेवा, इंद्रधनुष टीकाकरण राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और शहरी स्वास्थ्य मिशन ,इतनी स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, जिनको लिखने पर अंगुली दर्द करने लग जा रहा हैं।
इन सब में बैठने वाले कुमार जी के दिल बहुत बड़ा है ,क्योंकि इनकी जेबों में लक्ष्मी आने के रास्ते भी बहुत हैं; जैसे कि दवा का कमीशन, चिकित्सा प्रतिनिधि का कमीशन, जांच कमीशन, इमरजेंसी कमीशन और जल्दी दिखाने का कमीशन। इतना सब ‘ C’ बड़ा दिल वाला ही ले सकता हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का हाल यह है की यहां मरने वालों की संख्या दक्षिण एशियाई देशों में सबसे अधिक हैं। देश की आबादी 7 गुना बढ़ गई है,इसके पश्चात भी सुविधाएं दोगुने भी बढ़ने में हिचकिचाती जा रही है। इसके पीछे उत्तरदाई कारक दलाली या कमीशन की बीमारी हैं। काबिल डॉक्टर की फीस और जांच पूरे महीने के आधे तनख्वाह के बराबर हैं।बड़े हॉस्पिटल में जाइए तो पीछे का नजारा देखकर दुख होता हैं। आज इलाज ईश्वर जी नहीं कर रहे हैं ।आज का किसी भी व्यक्ति का इलाज जलालत से किया जा रहा है कि कितना ऐठ लिया जाए ?
(लेखक प्राध्यापक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)