व्यक्ति एवं संगठन का दृष्टि समरसता ,विषमता निर्मूलन, समतायुक्त और शोषण मुक्त होनी चाहिए। प्रत्येक नागरिक को यह धारणा (Notion)को आत्मसात करना चाहिए कि भारत सबका है ;इसको भारत के संविधान का प्रस्तावना प्रमाणित भी किया है कि “हम भारत के लोग “अर्थात लोगों( व्यक्तियों एवं नागरिक ,दोनों में मौलिक अंतर है) का भारत है। विधायिका (कानून/ विधि बनाने वाली संस्था ),कार्यपालिका( विधि को लागू /क्रियान्वित करने वाली संस्था) एवं न्यायपालिका( न्याय ग्रीक शब्द Decoisune से लिया गया, जिसका वास्तविक आशय उचित (Rightiousness) है,अर्थात कानून उचित है या अनुचित है।
सवाल यह है कि
1. संसार में भारत का प्रयोजन क्या है ?
2.वैश्विक स्तर पर भारत का क्या उपादेयता है?
भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी देशों (राज्यों)में से एक होना अर्थात बड़े पांच या स्थायी5 ( अमेरिका, फ्रांस ,चीन, रूस और इंग्लैंड) के समतुल्य होना है। भारत को यह लक्ष्य राजनीतिक संकल्प के साथ पूरा करने का प्रयास करना है ।भारत में संसार की 17% आबादी रहती हैं, यह लक्ष्य तभी संभव होगा जब एक स्वस्थ नागरिक समाज का निर्माण होगा ;जिसमें प्रत्येक नागरिक एवं व्यक्ति( विदेशों से आए लोग) सुरक्षा, संरक्षा, भय विहीन और तनावमुक्त रहें; जिस समाज में आत्मा से नियंत्रित नागरिक समाज हो ।(व्यक्ति के शरीर पर आत्मा का नियंत्रण होता है वह विवेकी/ प्रज्ञा वान /प्रकाशमान होता है; जबकि शरीर (देह) का नियंत्रण आत्मा पर होता है, तो अविवेकी/ दुष्चारितऔर असंतुलित व्यक्तित्व होता है)। गौरवपूर्ण जीवन( जीवन का अधिकार ,स्वतंत्रता का अधिकार ,समानता का अधिकार ,निजी स्वतंत्रता और चयन की स्वतंत्रता) प्राप्त हो, नागरिकों को अपने व्यक्तित्व का विकास करने की स्वतंत्रता( मूल अधिकारों की स्वतंत्रता व मूलाधिकारों के अतिक्रमण में संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्राप्त हो)।
वैश्विक स्तर पर अग्रणी देश (राज्य ),विश्व गुरु या परम वैभव होने के लिए भारत को दुनिया/ संसार का नेतृत्व करने की क्षमता, उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था, ताकतवर सामरिक तकनीक और प्रौद्योगिकी संपन्न देश (राज्य )और नैतिक उच्च चरित्र वाले नागरिक की आवश्यकता है। भारत को वैश्विक स्तर पर महाशक्ति बनने के लिए जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण ,ऊर्जा संकट, धार्मिक टकराव, अवसाद वाली मानसिकता एवं हिंसक टकराव से समाधान खोजना होगा; क्योंकि आज संसार इन्हीं वैश्विक, इकाई एवं आंचलिक स्तर की समस्याओं से संघर्ष कर रहा है। विकास का अव्यय तभी सार्थक एवं प्रासंगिक होता है जब राज्य, समाज परिवार एवं व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ व तनावमुक्त होता है।
वैश्विक स्तर पर सर्वोच्च शक्ति (प्रथम महायुद्ध/ विश्व युद्ध के पश्चात )महाशक्ति (शीत – युद्ध के दौरान ),अभिनव शक्ति( वर्तमान परिप्रेक्ष्य में) बने हैं जिनके देशों (राज्यों )में लोकतांत्रिक मूल्य एवं आदर्श के तत्व अधिकतम रहे हैं,खुले दिमाग एवं स्वच्छ सोच वाले, मननशील/ चिंतनशील वैज्ञानिक, मनीषी एवं समाज चिंतक रहे हैं। स्वतंत्रता प्रेमी( समुदाय, धर्म ,पंथ, जाति एवं आरक्षण जैसी अवधारणाओं से ऊपर सोच रखने वालों की संख्या अधिकतम रही है, एवं व्यक्ति एवं विद्वता का सम्मान करने वाले( राष्ट्र- राज्य, संगठन देश (राज्य),समाज एवं परिवार में विद्वता का सम्मान नहीं हुआ है, वहां पर अंधकार का अन्नप्राशन देर- सवेर जरूर दिखाई दिया है।
उत्तरी अमेरिका ,यूरोप ,दक्षिणी अमेरिका एवं एशिया में जो भी महाशक्ति बनकर उभरे है ,उनके व्यवस्था में इन अवयवों की मात्रा अधिक थी ,जिनका अवसान हुआ है, उनके यहां इन अवयवों की उपस्थिति न्यूनतम स्तर पर रही है। भारत लोकतांत्रिक, पंथनिरपेक्ष वादी एवं बहुलता वादी संस्कृति का देश(राज्य) है; भारतवर्ष को लोकतंत्र, विविधता में एकता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल्यों को कायम रखना है। भारत को विश्व गुरु/ परम वैभव होने के लिए एक मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र और नूतन शोध एवं विकास की संकल्पना वाला देश (राज्य)होना चाहिए। इसके लिए आधुनिकतम संसाधन, आधुनिकतम युद्ध हथियार एवं विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है। इसकी उपादेयता इसमें है कि भारत पर आक्रामक दृष्टिकोण रखने वाले पड़ोसी एवं याराना पूंजीवादी देश (राज्य)आक्रमण से पहले सौ बार सोचे कि युद्ध का परिणाम क्या होगा ?
उच्च, उच्चतर एवं उच्चतम अर्थव्यवस्था धन से ही निर्मित होती। वैश्विक स्तर पर अनुदान देने वाले, निवेश करने वाले देशों का मान – सम्मान होता है। भारत जितना उच्च आय वाला अर्थव्यवस्था होगा, उतना ही वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ेगा। वैश्विक स्तर के निवेशक, कंपनियां एवं अमीर व्यक्तित्व भारत के प्रति आकृष्ट होंगे; हमारे इतिहास ,सांस्कृतिक धरोहर, कला, सांस्कृतिक विरासत एवं आदर्श स्वतंत्रता संग्राम के व्यक्तित्व हैं। यह सभी सॉफ्ट शक्ति(soft power) हैं, जिनकी अपनी सीमा है ,वैश्विक प्रभाव हार्ड शक्ति(Hard power) से ही बनता है ।इन सभी बिंदुओं की ओर अन्वेषक, चिंतक/ विचारक ,वैज्ञानिक एवं समाज वैज्ञानिक को सोचना/ मनन करना होगा।
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