मीडिया ( विशेषकर प्रिंट मीडिया ) में विशेष जनभावनाएँ निर्माण करने की होड़ लगी है. सभी धर्म एक जैसे हैं तथा धर्म सभी बुराइयों की जड़ है.। एक स्वघोषित विद्वान सेक्युलर कम्युनिष्ट ने कहा की धर्म से पेट नहीं भरता। इसलिए धर्म की कोई जरूरत नहीं है। शायद उसे कार्ल मार्क्स की वह बात याद आई होगी जिसमे धर्म को अफीम का नशा बताया गया है।
आगे उसने कहा – धर्म निकम्मेपन और निट्ठलेपन को बढ़ावा देता है? कुछ उदाहरण –
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अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम .
दास मलूखा कह गए सब के दाता राम
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होही है सोई जे राम रची रखा, को करी तर्क बढावही शाषा.
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राम भरोसे बैठ कर लम्बी तान के सोए,
अनहोनी होनी नहीं होनी है तो होए.
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समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता।
उत्तर …
धर्म निक्कमेपन की शिक्षा नहीं देता-
यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 2 में उपदेश है –
1-कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः—
कर्म करते हुए 100 वर्ष जीने की इच्छा करो.
2 आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः ।.
शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगश्चरैवेति ॥
(ऐतरेय ब्राह्मण, अध्याय 3, खण्ड 3)
अर्थ – जो मनुष्य बैठा रहता है, उसका सौभाग्य (भग) भी रुका रहता है । जो उठ खड़ा होता है उसका सौभाग्य भी उसी प्रकार उठता है । जो पड़ा या लेटा रहता है उसका सौभाग्य भी सो जाता है । और जो विचरण में लगता है उसका सौभाग्य भी चलने लगता है ।
3 -कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः ।
उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपाद्यते चरंश्चरैवेति ॥
(ऐतरेय ब्राह्मण, अध्याय 3, खण्ड 3)
अर्थ – शयन की अवस्था कलियुग के समान है, जगकर सचेत होना द्वापर के समान है, उठ खड़ा होना त्रेता सदृश है और उद्यम में संलग्न एवं चलनशील होना कृतयुग (सत्ययुग) के समान है ।
आगे उस सेक्युलर ने कहा- धर्म गरीबी की प्रेरणा देता है. देखिए क्या कहा है संतों ने-
1-रूखी सुखी खाय कर ठण्डा पानी पी, देख पराई चोपड़ी क्यों ललचाए जी.
2 – साईं इतना दीजिए जा में कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा ना रहूँ साधू भूखा ना जाए.
उत्तर- धर्म गरीबी की प्रेरणा नहीं देता.
प्रातः कालीन वैदिक प्रार्थना में कहा गया है- वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥ (यजुर्वेदः 19/44) अर्थात हम धन ऐश्वर्य के स्वामी बनें. वेद में गरीब बनने या जल्दी मरने की कामना करने जैसी कोई प्रार्थना नहीं है. तभी बीच मे उस सेक्युलर का तिलकधारी दोस्त बोल उठा जो इस्कॉन से जुड़ा हुआ था धर्म के मामले मे तर्क नहीं करना चाहिए। जो मानता है इसके लिए भूत, पीर, पितर, देवलोक, जन्मकुंडली व भविष्य आदि सब हैं और जो नहीं मानता उसके लिए कुछ नहीं। अपनी अपनी श्रद्धा है। यह तो श्रद्धा का मामला है। धर्म कर्तव्य और ईश्वर को स्पष्ट रूप से नहीं बताता
उदाहरण —
जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूर्त देखिए तिन तैसी।
मानो तो शंकर ना मानो तो कंकर
मानो तो मैं गंगा माँ हूँ ना मानो तो बहता पानी
उत्तर-
महर्षि मनु कहते हैं कि यस्तर्केण अनुसन्धत्ते स धर्मो वेद नेतरः ।’ अर्थात तर्क से जाना जाए वह धर्म है। निरुक्त मे महर्षि यास्क तर्क को ऋषि का दर्जा देते हैं। मेरे या आपके मानने से किसी वस्तु का गुण धर्म स्वभाव नहीं बदलता। मानने से नमक मीठा नहीं हो जाता और कागज का फूल सुगंध नहीं दे सकता। पत्थर की गाय दूध नहीं देती और खिलौने की बिल्ली से चूहे नहीं डरते।
वेद और उपनिषद मे ईश्वर स्पष्ट है-
यजुर्वेद 40/8 मे उसे सर्वव्यापक, कायारहित, विकार रहित, शरीर के अंग उपांग रहित, पाप से सर्वथा दूर और शुद्ध बताया है।
आगे उस सेक्यूलर ने कहा – सभी धर्म नारी को दबा कर रखना चाहते हैं. जैसे घुंघट प्रथा, देवदासी प्रथा, खाप पंचायतों का महिलाओं के विरूद्ध निर्णय आदि..
उत्तर- सेक्युलर जी शायद तीन तलाक, हलाला और मुत्ताह आदि को भूल गए. क्योंकि मिडिया उन्हें इन सब पर विचार करने की अनुमति ही नहीं देता. सेक्युलरों के हीरो आमिर खान आदि भी सत्यमेव जयते पर इन के बारे में कुछ नहीं बोलते इसलिए सेक्युलरों को लगता है कि इस तरह की कोई समस्या होती ही नहीं. वैसे भी सेक्युलर को ये नहीं पता होता कि धर्म अनेक नहीं होते. धर्म एक ही होता है जिसे सनातन धर्म कहते हैं. सनातन धर्म का आधार है वेद.. हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई और यहूदी आदि धर्म नहीं हैं. ये तो मत पंथ सम्प्रदाय हैं. देवदासी आदि प्रथा धर्म नहीं है.
देखिए महर्षि मनु क्या आदेश देते हैं नारी के विषय में.–
सन्तुष्टो भार्यया भर्त्ता भर्त्र भार्या तथैव च।यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्।।१।।
जिस कुल में भार्य्या से भर्त्ता और पति से पत्नी अच्छे प्रकार प्रसन्न रहती है उसी कुल में सब सौभाग्य और ऐश्वर्य निवास करते हैं। जहां कलह होता है वहां दौर्भाग्य और दारिद्र्य स्थिर होता है।।१।।
यत्र नार्य्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रऽफलाः क्रियाः।।२।।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।न शोचन्ति तु यत्रैता वर्द्धते तद्धि सर्वदा।।३।।
जिस घर में स्त्रियों का सत्कार होता है उस में विद्यायुक्त पुरुष आनन्द से रहते हैं और जिस घर में स्त्रियों का सत्कार नहीं होता वहां सब क्रिया निष्फल हो जाती हैं।।२।।
जिस घर वा कुल में स्त्री शोकातुर होकर दुःख पाती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट भ्रष्ट हो जाता है और जिस घर वा कुल में स्त्री लोग आनन्द से उत्साह और प्रसन्नता से भरी हुई रहती हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है।।३।।
धर्म क्या है?
– महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन मे धर्म की परिभाषा लिखते हैं
– यतो अभ्युदय निश्रेयस सिद्धि स एव धर्म –
– जिससे सामाजिक उन्नति हो व मोक्ष की प्राप्ति हो वह धर्म है।
व्याख्या- केवल उन्नति तो चोरी, ठगी, लूट व धोखा देकर भी की जा सकती है परंतु वह सम्पूर्ण समाज को नष्ट कर देती है इसलिए केवल धन, शक्ति आदि की उन्नति को धर्म नहीं कहा जा सकता। सनातन धर्म के शास्त्रों मे विवाह के समय एक यज्ञ का विधान मिलता है । इस यज्ञ का नाम है राष्ट्रभृत यज्ञ। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि व्यक्ति वह रोजगार ना करे जिससे राष्ट्र को हानी हो जैसे शराब, सिगरेट, नशा बेचना, जुआ घर या वेश्याघर खोलना। केवल वन मे रहकर योगसाधना करने से मुक्ति का मार्ग तो सरल हो जाता है परंतु संसार का उपकार नहीं होता।
वेदों के महान विद्वान महर्षि दयानन्द पक्षपात रहित आचरण को धर्म व पक्षपात पूर्ण आचरण को अधर्म कहते हैं। वह शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं बल्कि सभ्यता, सदाचार व धार्मिक होना मानते हैं।
धर्म का हमारे जीवन मे क्या स्थान है इसके लिए यह प्रसंग पढ़ें
1-सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान अध्याय 2 मे महर्षि धन्वन्तरी अपने शिष्य को जनेऊ देते समय उपदेश देते है-
ब्राह्मण, गुरु, दरिद्र, मित्र, सन्यासी, पास मे नम्रता पूर्वक आए, सज्जन, अनाथ, दूर से आए सज्जनों की चिकित्सा स्वजनों (अपने परिवार के सदस्य) की भांति अपनी औषधियों से करनी चाहिए। यह करना साधु (श्रेष्ठ ) है।
व्याध (शिकारी), चिड़िमार, पतित (नीच आचरण वाला) पाप करने वालो की चिकित्सा धन का लाभ होने पर भी नहीं करनी चाहिए।
ऐसा करने से विद्या सफल होती है, मित्र, यश, धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति होती है। ऐसा ही विवरण चरक संहिता मे मिलता है। (क्या आज का चिकित्सक यह कर्त्तव्य निभाता है)
.जहां केवल अपने मत, मजहब, रिलीजन या पंथ के मानने वालों के लिए प्रार्थना की गई है वहाँ पक्षपात है। वह धर्म नहीं अधर्म है। जहां पर बेकसूर(काफिर) को मार कर जन्नत मे 72 हूर (सुन्दर स्त्रियाँ) मिलने की बात कही हो वह पक्षपात होने के कारण अधर्म है। जहां केवल गंगा नहाने से पाप दूर होने की बात हो वह अधर्म है क्योंकि इस तरह की बातें पाप को बढ़ावा देती हैं।————
धर्म का सम्बन्ध मनुष्य है. ईंट पत्थर से धर्म नहीं बनता . कुत्ते बिल्ली से धर्म का सम्बन्ध नहीं है .
धर्म का सम्बन्ध आचार विचार व्यवहार से है.
साभार – https://m.facebook.com/arya.samaj/ से