सच में जीवन में खुशी की सारी मापनी आज नतमस्तक नज़र आई, जब वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स, लंदन द्वारा मातृभाषा उन्नयन संस्थान को प्रदत्त विश्व कीर्तिमान को लेकर हम राजकुमार कुम्भज जी के पास पहुँचे।
सुबह कुम्भज जी का टेलीफोन आया कि आज संक्रांति है, हम खाना साथ खाएँगे। मैंने कहा जरूर।
मैं घर पहुँचा, तब नईदुनिया में प्रकाशित खबर दिखाते हुए कहने लगे ‘अब फल आने लगा है’, जैसे ही कीर्तिमान का सम्मान पत्र कुम्भज जी के हाथों में सौंपा, उनकी आँखों ने बगावत कर दी और फिर गले लगाते हुए गुरु माँ से कहने लगे कि *’मेरा बेटा आज विश्व मंच पर हिन्दी ला रहा है, तुम भी देखों।’
तिल लड्डू से मुँह मीठा करवाने के बाद प्रेम पूर्वक भोजन करना फिर अगली तैयारी शुरू, साहित्यग्राम की रूपरेखा और प्रस्तावना तैयार।
कहने लगे *’धर्मवीर याद आएंगे, जब यह पत्रिका लोग पढ़ेंगे।*
मैंने कहा कि कैसे?
तब कहने लगे *’शुरुआत करों, तुम्हें हारने नहीं देना मेरी जिम्मेदारी है।’*
बताइये यही तो दौलत है जो मेरी किस्मत का कुल जमा हासिल है।
प्रणाम कुम्भज जी !
डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
हिन्दीग्राम, इंदौर