आइंडहोवन. नीदरलैंड के एक स्टार्टअप ने गाय के गाेबर से सेल्युलोज अलग कर फैशनेबल ड्रेस बनाने का तरीका ढूंढ निकाला है। यह स्टार्टअप बायोआर्ट लैब जलिला एसाइदी चलाती हैं। सेल्युलोज से जो फैब्रिक बनाया जा रहा है, उसे ‘मेस्टिक’ नाम दिया गया है। इससे शर्ट और टॉप तैयार किए जा रहे हैं। स्टार्टअप ने गोबर के सेल्युलोज से बायो-डीग्रेडेबल प्लास्टिक और पेपर बनाने में भी कामयाबी हासिल की है।
एसाइदी का कहना है कि यह फ्यूचर फैब्रिक है। हम गोबर को वेस्ट मटेरियल समझते हैं। गंदा और बदबूदार मानते हैं। लेकिन फैब्रिक बनाने में शुरुआती स्तर पर जो तेल इस्तेमाल होता है, वह भी बहुत अच्छा नहीं होता। हमें गोबर के सेल्युलोज में छिपी सुंदरता दुनिया को दिखानी ही होगी। एसाइदी फिलहाल 15 किसानों के साथ प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। वे इसी साल औद्योगिक स्तर पर मैन्योर रिफाइनरी यूनिट शुरू करने जा रही हैं। उनके इस इनोवेशन को दो लाख डॉलर (1.40 करोड़) का चिवाज वेंचर एंड एचएंडएम फाउंडेशन ग्लोबल अवॉर्ड भी मिला।
प्रकृति का संरक्षण होगा : क्लोदिंग रिटेलर एचएंडएम के फाउंडेशन के कम्युनिकेशन मैनेजर मालिन बोर्न का कहना है कि दुनिया हर साल प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रही है। इसलिए जल्द ही उस मॉडल पर शिफ्ट होना होगा, जहां पर जरूरी मटेरियल को रिकवर किया जा सके। सिर्फ कॉटन के भरोसे नहीं रहा जा सकता। कई कपड़ा निर्माताओं ने एसाइदी को भरोसा दिलाया कि वे मेस्टिक से कपड़े बनाएंगे क्योंकि यह किफायती है। प्रोजेक्ट से जुड़े किसानों ने भी कहा कि हम जब पूरे दिन गोबर के बीच रह सकते हैं तो इससे बने कपड़े पहनने में कोई हर्ज नहीं है।
ऐसे बनाया जाता है गोबर से रेशा : जलिला एसाइदी बताती हैं कि सेल्युलोज बनाने की प्रक्रिया कैमिकल और मैकेनिकल है। हमें जो गोबर और गोमूत्र मिलता है, उसमें 80% पानी होता है। गीले और सूखे हिस्से को अलग किया जाता है। गीले हिस्से के सॉल्वेंट से सेल्युलोज बनाने के लिए फर्मेंटेशन होता है। इसमें ज्यादातर हिस्सा घास और मक्के का होता है, जो गाय खाती है। सामान्य कपड़ा उद्योग से हमारी प्रक्रिया कहीं बेहतर है, क्योंकि गाय के पेट से ही फाइबर के नरम बनने की शुरुआत हो जाती है। यह ऊर्जा की बचत करने वाला तरीका भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रक्रिया से मिला सेल्युलोज उच्च तकनीक वाला होता है।
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साभार- दैनिक भास्कर से