क्रमशः वामपंथी, तृणमूल, राजद, सपा के बाद कांग्रेस ने भी मुस्लिम तुष्टीकरण की विकृत राजनीति को आगे बढ़ाते हुए श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर बन रहे भव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण ठुकरा दिया है। स्पष्ट है कि कांग्रेस और इसके नेतृत्व में आकार ले रहा इंडी गठबंधन पूर्णतया हिंदू विरोधी है। कांग्रेस इस निर्णय से यह संकेत भी मिल रहे हैं कि कांग्रेस के अपने नेताओं और इंडी गठबंधन के सदस्य दलों के सनातन और हिन्दू विरोधी बयान कांग्रेस आलाकमान की सहमति से ही आ रहे थे। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश जहाँ एक और कह रहे हैं कि राम मंदिर का कार्यक्रम संघ व भाजपा का कार्यक्रम है वहीं दूसरी और यह आरोप भी लगा रहे हैं कि अधूरे मंदिर का उद्घाटन कराकर भाजपा राजनैतिक लाभ लेना चाह रही है।
कांग्रेस ने जब 14 जनवरी से अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत करने की घोषणा की तभी संकेत मिल गया था कि कांग्रेस के नेता फिलहाल रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जा रहे हैं। श्री रामजन्मभूमि और श्री राम से जुड़े कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए यह स्वाभाविक भी था । जिन श्री राम के काल्पनिक होने का हलफनामा नयायालय में दिया हो भला उनकी जन्मभूमि पर बने मंदिर में उन्ही की प्राण प्रतिष्ठा में क्या मुंह लेकर जायेंगे ? और फिर जिनके “राम काल्पनिक हैं” कहकर खुश किया था उसको कैसे साधेंगे?
कांग्रेस के आदि नेता और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तो वर्ष 1949 में ही विवादित ढांचे से श्री रामलला को बाहर निकालने के प्रयास आरम्भ कर दिए थे और इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री पर पर्याप्त दबाव भी बनाया था वो तो भला हो सनातन के प्रतिपालक अधिकारी के.के. नायर का जो दबाव में नहीं आए और सत्य का साथ दिया। सनातन के अपमान और मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी परंपरा कांग्रेस कैसे तोड़ सकती थी? कांग्रेस के इतिहास का स्मरण रखने वाले सुधीजन सोशल मीडिया पर उपहास में कह रहे हैं, “अच्छा ही है कांग्रेस का निर्णय, राम द्रोहियों का अयोध्या में क्या काम है?”
वैसे कांग्रेस के राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने से उसे आगामी लोकसभा चुनावों में नुकसान होने की संभावना ही अधिक है अगर कांग्रेस नेता समारोह में चले जाते तो सनातन हिंदू समाज में कांग्रेस के नाराज स्वाभाविक रूप से कम हो सकती थी किन्तु अब तो यह तय हो गया है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका आदि का चुनावों के समय मंदिर -मंदिर जाना केवल ढोंग और धोखा है। कांग्रेस पूरी तरह से मुस्लिम परस्त पार्टी है जिसका प्रमाण कर्नाटक और तेलंगाना आदि में देखने को मिल रहा है।
जब से राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तिथि की घोषणा हुई है तभी से इंडी गठबंधन के विभिन्न दलों के नेता एक के बाद एक राम मंदिर के खिलाफ कोई न कोई भड़काऊ बयानबाजी कर रह हैं । बिहार के चारा घोटाले सहित कई अन्य घोटालों में संलिप्त रहे राजद नेता लालू यादव उनके परिवार के सदस्यों सहित उनके तमाम मंत्री व विधायक लगातार हिंदू विरोधी बयानबाजी कर रहे हैं। लालू पुत्र तेजस्वी ने कहा कि जब चोट लगेगी तब मंदिर जाओगे या अस्पताल, जब भूख लगेगी तब भी क्या मंदिर ही जाओगे। इसी पार्टी के एक नेता ने कहा कि मंदिर जाना व घंटी बजाना गुलामी की मानसिकता का प्रतीक है। तेजस्वी के भाई तेजप्रताप कहते हैं कि जब देश में गठबंधन की सता आयेगी तब असली रामराज्य आयेगा।
उधर अयोध्या वाले प्रदेश यानी उत्तर प्रदेश में समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने तो विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को पहचानने से मना करते हुए निमंत्रण ठुकरा दिया है । अखिलेश के साथी और सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य कारसेवकों के नरसंहार का समर्थन कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य के हिंदू समाज का अपमान करने वाले बयानों का अब उनकी अपनी ही पार्टी में मुखर विरोध हो रहा है और पार्टी के अन्य विधायक अखिलेश यादव से उनकी बार-बार शिकायत कर रहे हैं किंतु वह स्वामी प्रसाद मौर्य रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं क्योंकि उनके सिर पर अखिलेश का हाथ है। सिद्ध हो रहा है कि समाजवादी पार्टी मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू समाज पर अत्याचार करने वालों का समूह मात्र है। यह वही समाजवादी पार्टी है जो हर चुनावों में मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर अयोध्या मे बाबरी मस्जिद बनाने की घोषणा करती रही है । समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान वर्क जैसे लोग 22 जनवरी को घर में बंद रहकर बाबरी की वापसी के लिए दुआ करने वाले हैं। समाजवादी नेता अखिलेश यादव कह रहे हैं कि किसी का कोई हो लेकिन हमारा भगवान तो पीडीए है किंतु अखिलेश यादव को यह नहीं पता कि अब पीडीए भी उनके हाथ से निकलता जा रहा है और विकसित भारत संकल्प यात्रा से लेकर स्नेह यात्रा और फिर विश्वकर्मा योजना के कारण पीडीए समाज भी भारतीय जनता पार्टी की ओर उन्मुख होता जा रहा है।
गठबंधन की पार्टी द्रमुक संगठन को समाप्त करने की बात कर चुकी है उधर तृणमूल अल्लाह की कसम खा रही है, वामपंथियों का तो कहना ही क्या। इन परिस्थितियों में यदि लोकसभा चुनावों में मतों का ध्रुवीकरण होता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी और उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार होगी। कांग्रेस की ओर से जयराम रमेश के बयान के बाद सब कुछ साफ हो चुका है, इसकी भूमिका सैम पित्रोदा पहले ही लिख चुके थे। अयोध्या में भगवान राम का मंदिर न बन पाये इसके लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत लगा रखी थी । इंडी गठबंधन में शामिल सभी दल व नेता हिंदू सनातन संस्कृति, भारतीय सभ्यता व संस्कृति, भाषा, रहन सहन व खान पान के घोर विरोधी हैं।कांग्रेस ने सदा प्रभु राम को काल्पनिक माना माना था और रामसेतु तक को तोड़ने का उपक्रम किया।
सनातन समाज संभवतः अब एक ही कथन सुन रहा है, एक ही कथन जप रहा है – “जाके प्रिय न राम वैदेही, तजिए ताहि कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही”