रूसी लड़कियाँ भारतीय लड़कों से विवाह करके भारत जाने के बाद अक्सर भारतीय परिवारों में पारम्परिक भारतीय बहू नहीं बन पातीं, लेकिन इसके बावजूद सँयुक्त परिवार में दूसरे सदस्यों से मिलने वाला प्यार और दुलार उनके मन को काफ़ी भाता है।
भारतीय परिवारों में बहू बेटे की पत्नी तो होती ही है, लेकिन इसके अलावा हर पुरुष के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण दो स्त्रियों अर्थात सास और बहू के बीच भी एक जटिल और अनोखा रिश्ता होता है।
भारत में विवाह होने पर पुरुष को तो सिर्फ़ एक पत्नी ही मिलती है, लेकिन स्त्री को पूरा का पूरा एक परिवार मिलता है। पारम्परिक परिवारों में बहू घर की एक सदस्य होने के नाते तमाम भूमिकाओं में नज़र आती है। घरेलू कामकाज जैसे खाना पकाने, बाज़ार जाकर ख़रीददारी करने आदि में तो वह सास का हाथ बँटाती ही है, इसके साथ-साथ घरेलू पूजा-पाठ में भी उसकी एक सुनिश्चित भूमिका होती है। मेरे जैसी एक बाहरी लड़की को ज़रूर ऐसा लग सकता है कि विवाह के बाद बेचारी नई-नवेली दुल्हन को कितने सारे दायित्व निभाने पड़ते हैं, लेकिन अधिकांश भारतीय लड़कियाँ ससुराल में अपनी भावी जीवन-पद्धति से भली-भाँति परिचित होती हैं।
रूसी संस्कृति में सास-बहू के बीच भारतीय संस्कृति जितना जटिल और नज़दीकी रिश्ता नहीं होता। पहली बात तो यह है कि मायके और ससुराल के परिवारों के बीच भारत जितने गहरे सम्बन्ध नहीं होते। दूसरी बात यह कि रूस में आम तौर पर सँयुक्त परिवार नहीं होते। नवविवाहित जोड़े को पूरी-पूरी आज़ादी रहती है और उन्हें परिवार के बड़े-बूढ़े लोगों के प्रति कोई बहुत ज़्यादा दायित्वों का निर्वाह नहीं करना होता। इसके विपरीत भारत में ससुराल वाले बहू से काफी-कुछ अपेक्षाएँ रखते हैं। यहाँ विवाह का मतलब यह है कि लड़की अपने मायके को सदा के लिए छोड़कर ससुराल में बहू के रूप में प्रवेश कर रही है।
पिछले 8 वर्षों से मुझे एक भारतीय परिवार की सदस्य होने और सँयुक्त परिवार के रंगारंग अनुभव लेने का सौभाग्य मिला हुआ है। मैं एक आधुनिक भारतीय परिवार की रूसी बहू हूँ। यदि मुझे सिर्फ़ दो-चार शब्दों में ही अपने अनुभव को बताना हो, तो मैं कहूँगी — गहरा भावनात्मक स्नेह, अनूठी देखभाल व लगाव से भरा जीवन। मेरी सास मलयाली हैं। वे उच्च शिक्षित हैं और बेहद अनुभवी हैं और 30 साल से भी अधिक समय तक विदेश में रही हैं। मेरे ससुर बंगाली हैं और उन्होंने विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधि ले रखी है। वे विदेश में काफ़ी समय तक रहे और उन्होंने देश-विदेश का काफ़ी भ्रमण किया है। भारत के बाहर अनेक वर्ष बिताने के बावजूद भी भारतीय परिवारों में अपनी परम्पराओं तथा जीवन-पद्धति के प्रति नज़रिया आम तौर पर नहीं बदलता है। हालाँकि यह मेरा सौभाग्य था कि मेरा परिवार इतने खुले विचारों वाला है कि उसने मुझ एक गैर-भारतीय स्त्री को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया।
भारतीय परिवेश में माता-पिता की अपने बच्चों की ज़िन्दगी में काफ़ी सक्रिय भूमिका होती है, जबकि रूसी संस्कृति में ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसलिए हमारे परिवार में जब हमारी ज़िन्दगी की छोटी से छोटी बातों पर चर्चा होती है और परिवार के बड़े-बूढ़े इस सिलसिले में कोई निर्णय लेते हैं तो कभी-कभी मुझे थोड़ा असहज ज़रूर लगता है।
यहाँ बहू से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी सास का उसी तरह से ध्यान रखे, जिस तरह वह अपनी माँ का रखती। अब रूस में तो इतने नज़दीकी पारिवारिक रिश्ते होते नहीं, तो मुझे क्या पता था कि यहाँ चाहे जितना प्रेम व आदर दीजिए, भारतीय माता-पिता के लिए वह कभी पर्याप्त नहीं होता।
मेरे बेटे के जन्म के बाद मलयाली शैली में मेरा लाड़ किया गया। मालिश करने वाली एक औरत आयुर्वेदिक तेल से मेरी प्रतिदिन मालिश किया करती थी ताकि मेरी माँसपेशियाँ फिर से मज़बूत हो जाएँ। उसके बाद मुझे नीलगिरि स्नान कराया जाता था। एक आया मेरे शिशु की देखभाल में मदद किया करती थी। मेरी सास मेरे आहार का खास ध्यान रखती थीं ताकि बेटे को पिलाने के लिए मेरे शरीर में पर्याप्त पोषक दूध बन सके। मेरी इतनी अच्छी देखभाल हुई कि मेरे मन में भी यह विचार आने लगा कि मुझे अपने पति का भी उसी तरह ख़याल रखना चाहिए, जिस तरह भारत में माताएँ अपने बच्चों का ख़याल रखती हैं।
भारतीय परिवार में भोजन का अपना बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। यहाँ पत्नी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह परिवार के लिए खाना पकाए। कई जगहों पर तो पूरे परिवार को खिलाए बिना पत्नी भोजन ही ग्रहण नहीं करती और अपने पति की थाली में ही खाना खाती है। हो सकता है कि अब हमें इस तरह की बातें गुज़रे ज़माने की लगें, लेकिन इनमें पत्नी के अपने पति के प्रति लगाव व परवाह की झलक तो मिलती ही है।
मेरी कुछ सहेलियाँ कहती हैं कि आधुनिक भारतीय परिवारों में अब ऐसी आदतों का चलन नहीं रहा। मुझे भी ऐसा ही लगता है। मैंने अनेक भारतीय और भारतीय-रूसी मिश्रित परिवारों को देखा है। आज के भारतीय समाज में सचमुच बदलाव दिख रहा है। अनेक नवविवाहित जोड़े इन पुरानी आदतों का पालन नहीं करते। लेकिन मुझे ऐसा भी लगता है कि पति का ख़ूब ख़याल रखने का गुण तो रूसी स्त्रियों के ख़ून में भी होता है और इस बात का परिवार, संस्कृति या सामाजिक अपेक्षाओं से कोई सम्बन्ध नहीं है। रूसी स्त्रियों का दिल बहुत बड़ा होता है। भारतीय टेलीविजन धारावाहिकों और फिल्मों में जैसी आदर्श बहुएँ दिखाई जाती हैं, सम्भव है कि रूसी स्त्रियाँ वैसा आदर्श व्यवहार न कर पाएँ, लेकिन वे भी अपने पति को भरपूर प्यार करती हैं और उनका ख़ूब ख़याल रखती हैं।
साभार- http://hindi.rbth.com/ से