राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय में उपन्यास सम्राट और प्रख्यात कथाकार प्रेमचंद की जयन्ती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। हिंदी विभाग के इस आयोजन में स्नातक और स्नातकोत्तर हिंदी के विद्यार्थियों ने उत्साह के साथ भागीदारी की। डॉ.शंकर मुनि राय ने प्रेमचंद के ऐतिहासिक योगदान पर प्रकाश डाला। डॉ. चन्द्रकुमार जैन के प्रभावी वक्तव्य के साथ संयोजित रोचक प्रश्न मंच ने जिज्ञासु विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया। डॉ.बी.एन.जागृत ने प्रेमचंद साहित्य पर सार्थक चर्चा की। प्रश्न मंच में प्रत्येक सही ज़वाब देने वाले प्रतिभागी को प्रेरक साहित्य भेंट कर पुरस्कृत किया गया।
उक्त अवसर पर डॉ. राय ने कहा कि गोदान प्रेमचंद की कालजयी रचना है। कफ़न उनकी अमर कहानी है। उन्होंने हिंदी और उर्दू में पूरे अधिकार से लिखा। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने अनेक विधाओं में साहित्य रचा वे अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ के रूप में सम्मानित हुए। डॉ. जैन ने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि प्रेमचंद की पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका में सौत नाम से प्रकाशित हुई और 1936 में अंतिम कहानी कफन नाम से। उन्होंने सरल, सहज और आम भाषा का उपयोग करके जीवन के यथार्थ को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाया।
डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि प्रेमचंद ने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। डॉ. जागृत ने जानकारी दी कि प्रेमचंद ने कुल मिलाकर करीब तीन सौ कहानियां, लगभग एक दर्जन उपन्यास और कई लेख लिखे। अनेक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। कुछ नाटक भी लिखे और कुछ अनुवाद कार्य भी किए। उन्होंने कहानी ठाकुर का कुआँ के मर्म की ख़ास तौर पर चर्चा की।
कार्यक्रम की दूसरी कड़ी में हुए प्रश्न मंच के करीब दो दर्जन प्रश्नों में डॉ.जैन ने सरस प्रस्तुति के साथ प्रेमचंद जैसे महान कलमकार के जीवन और सृजन को बड़ी कुशलता से शामिल किया गया और ऐसे मनीषी साहित्यकारों के विषय में अधिक जानने की प्रेरणा दी। जयन्ती कार्यक्रम दौरान विद्यार्थियों की उत्सुकता देखते ही बन रही थी। सबने एकमत से स्वीकार किया कि आयोजन से उन्हें प्रेमचंद और हिन्दी सहित्य का अनोखा परिचय मिला।
पुरस्कार में मिले ‘सीप के मोती’
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दिग्विजय कालेज प्रेमचंद जयन्ती के आयोजन में परम्परा सतत रखते हुए राष्ट्रपति जी द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य शिखर सम्मान से अलंकृत डॉ. चन्द्रकुमार जैन और श्रीमती ममता जैन द्वारा सम्पादित और बहुपठित कृति सीप के मोती पुरस्कार स्वरूप भेंट की गईं। उल्लेखनीय है कि डॉ. जैन दम्पत्ती ने पिछले दशक में इस पुस्तक की पांच हजार से भी अधिक प्रतियां और अन्य साहित्यिक कृतियाँ मुफ्त भेंट कर एक मिसाल कायम की है। यह सिलसिला बाकायदा जारी है।