सरकार में विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय एवं शिक्षा मंत्रालय को प्रधानमंत्री का “किचन केबिनेट “कहा जाता है, अर्थात इन मंत्रालयों के प्रमुख जिम्मेदार , परिपक्व एवं संतुलित व्यक्तित्व के योजक होते हैं ,इनसे संसदीय संस्कृति, राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक उपादेयता, क्षेत्रीय अखंडता एवं राष्ट्रीय अखंडता को बनाए रखने में सहयोग की आशा की जाती है। लोकतांत्रिक राज्य की मौलिकता इस तथ्य में निहित है कि आपसी सद्भाव एवं बंधुत्व की भावना का प्रसार वैश्विक स्तर पर हो।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के हालिया भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी पर बयान दिया है कि” ओसामा बिन – लादेन मर चुका है, पर बुचर ऑफ़ गुजरात जिंदा है, और वह भारत का प्रधानमंत्री है जब तक भारत का प्रधानमंत्री नहीं बना था, तब तक उसके अमेरिका आने पर पाबंदी थी।”
उपर्युक्त विचार का कूटनीतिक स्तर व राजनीतिक स्तर पर चिकित्सीय परीक्षण करें तो स्पष्ट हो रहा है कि यह बयान एक अपरिपक्व एवं मूर्ख का है ;क्योंकि उस व्यक्तित्व के विषय में ऐसे अभद्र और अतार्किक एवं अव्यवहारिक भाषा का प्रयोग कोई मूर्ख ही कर सकता है।
कूटनीति में संतुलित भाषाओं का विशेष उपादेयता होती है ,जिस संयुक्त राज्य अमेरिका का उदाहरण दे रहे हैं, वही मोदी जी के नेतृत्व की प्रशंसा कर रहा है। वैश्विक उपादेयता, शांति में योगदान एवं सशक्त हस्ताक्षर के स्तर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता के लिए समर्थन कर रहा है। शक्ति संतुलन की उपादेयता के कारण एशिया महाद्वीप से भारत की स्थाई सदस्यता के लिए पुरजोर समर्थन कर रहा है, इसमें सर्वाधिक उपादेयता एवं महत्व मोदी सरकार की नीतियों का है। विदेश मंत्री एस जयशंकर जी का कहना प्रासंगिक है कि “जो देश अल- कायदा के सरगना ओसामा बिन – लादेन का मेजबान हो सकता है, और अपने पड़ोसी देश की संसद पर हमला कर सकता है उसे यू न ओ(UNO) में ‘ उपदेशक ‘ बनने की कोई जरूरत नहीं है ।संसार पाकिस्तान को आतंकवाद के’ एपिसेंटर ‘ के तौर पर देखता है।
बिलावल कूटनीतिक मामलों में अनुभवहीन ऐसा विवादित टिप्पणी एक अपरिपक्व और विदेश मामलों के अंजान व्यक्तित्व ही दे सकता है ।पाकिस्तान की शासन का आधार ही” 3A” कूटनीति मानी जाती है अर्थात आर्मी(फौज/सेना),अमेरिका(अनुदान देनेवाला) एवं अल्लाह(खुदा/अल्लाह वो अकबर), पाकिस्तान के बुद्धिजीवी भी इसको अपरिपक्व मानते हैं बिलावल बिल्कुल राजनीति के स्तर पर कोरा व्यक्ति है ,लेकिन उसकी वफादारी आर्मी के प्रति है। नए सेना प्रमुख कमान संभालते ही बोले कि भारत को मुंहतोड़ जवाब देंगे ,अब शाहबाज खान शरीफ और बिलावल भुट्टो भारत के खिलाफ सेना से अपनी वफादारी को निभाने का प्रयास कर रहे हैं।
बिलावल को विदेश मंत्री बनने के पहले विदेश एवं वैदेशिक मामलों व कूटनीतिक मामलों में किसी भी प्रकार का अनुभव नहीं था, जबकि संसदीय शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री को किचन केबिनेट में योग्य, अनुभवी एवं संतुलित व्यक्ति को यह विभाग सौंपा जाता है। जिस हालात (चरमपंथी, वैदेशिक मुद्रा भंडार की कमी ,सेना का कार्यपालिका पर नियंत्रण, अमेरिका की तुलना में चीन से नजदीकी का बढ़ना एवं जी-20 की अध्यक्षता का भारत के हाथों में आना)। इस परिवेश में कूटनीतिक निपुण व्यक्ति को विदेश मंत्रीहोना चाहिए। वर्तमान में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है ,पाकिस्तान के पास बड़ी कठिनाई से 6 अरब डालर विदेशी मुद्रा भंडार है, इतनी कम रकम से कुछ हफ्तों तक ही आयात बिल चुकाया जा सकता है। पाकिस्तान सरकार देश के भीतर प्रत्येक मोर्चे पर नाकाम साबित हो रही है, ऐसे में घरेलू – नीतियों को साधने के लिए ऐसा बचकानी बयान दिया गया है। ऐसा करके पाकिस्तानी जनता को खुश करने का प्रयास किया गया है।
इस बयान का दूसरा पक्ष भी हो सकता है कि भारत के मुसलमानों को खुश करने के लिए एवं भारतीय मुसलमान भाइयों के समर्थन के लिए भी ऐसा बयान दिया गया ;लेकिन इस अपरिपक्व बयान का पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था एवं क्षेत्रीय शांति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है ,जहां तक बिलावल का संघ पर निशाना बनाना है तो संघ का उद्देश्य त्याग, समर्पण एवं सेवा की भावना है ।प्राकृतिक आपदाओं में संघ( आरएसएस) की उपादेयता धर्म ,पंथ एवं राज्य(देश) से ऊपर होता है। संघ की उपादेयता” सिविल ब्रिज” तक होती है। सामान्य घटना है कि राज्यों (देशों )में सेना होती है, लेकिन पाकिस्तान में सेना के पास देश (राज्य) है।पाकिस्तान की सरकार एवं सरकार के मंत्री के पद की स्थिरता, पूछ( उपादेयता) मजहब( धर्म) और सेना के प्रति वफादारी में होता है ।वर्तमान में यह घटना घरेलू राजनीति, भारत के मुसलमान एवं सेना को खुश करने के लिए किया गया है; क्योंकि मोदी सरकार के कारण कश्मीर में नागरिक समाज की जड़ें मजबूत हो रही हैं। नागरिक समाज का परिपक्व होना मजहब ,जाति एवं चरमपंथ पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है।
जहां तक एस जयशंकर की आक्रामकता की बात है तो जयशंकर एक अनुभवी डिप्लोमेट हैं।भारत की आक्रामकता को पश्चिम देश इसलिए बर्दाश्त कर लेते हैं ;क्योंकि पश्चिम देशों को भारत की जरूरत है ,लेकिन बिलावल की आक्रामकता बैक फायर सिद्ध होगा ।पाकिस्तान की जनता बहुत मुश्किल हालात में है, उनको क्षेत्रीय एवं वैदेशिक सहयोग की अति आवश्यकता है ।विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान मोदी जी की आलोचना करता है तो भारत में उनकी लोकप्रियता और बढ़ता है ,जबकि इस बात का असर भारत के मुसलमानों पर पड़ता है ।पाकिस्तान के इस प्रकार के बयान का उद्देश्य घरेलू सियासी फायदा उठाने की होती है।
लंदन के SOS में अंतरराष्ट्रीय संबंध के विद्वान प्रोफेसर अविनाश पालीवाल का कहना है कि यह जान- बूझकर और सोच – समझ कर दिया गया बयान है। जनरल मुनीर तेजी से और निश्चित तौर पर जनरल बाजवा की नीति को बदल रहे हैं ,जनरल बाजवा भारत के साथ शांतिपूर्ण और नियंत्रित व्यवहार चाहते थे, जबकि जनरल मुनीर आक्रामक हैं। आने वाले दिनों में भारत के पश्चिमी मोर्चे पर भारी तनाव बढ़ सकता है ।बदलते परिवेश में मोदी सरकार की प्रासंगिकता एवं उपादेयता वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रही है। भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़ पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बना ,यूएन सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग का रूस,अमेरिका एवं ब्रिटेन भी समर्थन कर चुके हैं ।भारत के पास जी-20 ,SCO देशों की अध्यक्षता के रूप में वैश्विक जिम्मेदारी मिलना, भारत सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्यता के तौर पर आतंकवाद पर बहस छेड़ चुका है जिसका बड़े राष्ट्र और पश्चिमी देशों ने पुरजोर समर्थन किया है। भारत की वैश्विक शक्ति का संकेत इसी से लिया जा सकता है कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है एवं भारत ने रूस से S- 40 लिया, लेकिन अमेरिका ने CAATSA के तहत प्रतिबंध नहीं लगाया । इस स्थिति में बिलावल के बयान का मतलब अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
( लेखक राजनीति विश्लेषक हैं)