Saturday, November 23, 2024
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विश्वविद्यालय आयोग के इस प्रयोग से शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन संभव है?

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) भारत में विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता को बनाए रखने का निकाय है । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग(यूजीसी )की प्रस्तावित मंशा है कि विश्वविद्यालय के आचार्य (प्रोफेसर), उपाचार्य( एसोसिएट प्रोफेसर) और सहायक आचार्य(असिस्टेंट प्रोफेसर) और महाविद्यालयों के प्राध्यापक( अब महाविद्यालय में भी पद – सोपानिक संरचना का उद्भव हुआ है ) को प्रत्येक एकेडमिक दिवस में पांच कक्षा लेना चाहिए। इस प्रस्तावित संकल्पना का लक्ष्य छात्रों में ” छात्रों को ज्ञान अर्जन के लिए प्रोत्साहित करना”  और “छात्रों को अधिक किफायती लागत पर अधिक ज्ञान अर्जन का अवसर” प्रदान करना है । 

 
 
यह 21वीं सदी के लिए शुभ अवसर है जिससे सत्ता के गलियारे, कुलपति कार्यालय में दिन-दिन भर  बैठकर  गप्पे और महाविद्यालय के प्राचार्य को काम  की जगह कान में बात करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव है । समकालीन में भी ऐसे आचार्य, उपाचार्य और सहायक आचार्य हैं जो राजनीति करना, योग्य और विद्वान प्राध्यापक के खिलाफ गुटबंदी करके उनको हतोत्साहित  करना ही प्रधान कार्य है।यह निर्देश तार्किक ,न्याय संगत और  गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी छात्रों की पहुंच, जवाबदेही  जैसे मूलभूत तत्वों पर आधारित है। नई शिक्षा नीति, 2020 में विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय स्तर पर पाठ्यक्रम काफी लंबा, बृहद एवं समय की मांग करने वाला है, ऐसे में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निर्णय अनुकरणीय एवं स्वागत योग्य है ।इन प्रयासों से छात्रों को भारत के इतिहास, विरासत, धरोहर एवं समग्र सनातन संस्कृति से जोड़ करके एक उदार, अनुशासित एवं पंथनिरपेक्ष नागरिक समाज का सदस्य बनने को उर्जित करेगा।

प्रश्न यह उठता है कि इस पहल से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सहयोग प्राप्त हो सकेगा ।प्राचीन काल से ही शिष्य गुरुजी( आचार्य) के सामिप्य में रहकर के दीक्षित हुए हैं। महाभारत में एक प्रसंग आता है कि तत्कालीन आचार्य द्रोणाचार्य अर्जुन को चक्रव्यूह की रचना, जटिलता और समाधान की शिक्षा नहीं देना चाहते थे ,लेकिन अर्जुन की जीवटता ,गुरु के प्रति भक्ति भाव ,गुरु में ईश्वर का अंश एवं अनुशासन प्रिय के गुण को देखकर उसको चक्रव्यूह की जटिलता का ज्ञान दिए थे। 
 
तत्कालीन आचार्य परशुराम जी तत्कालीन  समय के क्षत्रियों को अपना शिष्य नहीं बनाते थे, लेकिन देवव्रत जी के जिजीविषा और मां गंगा जी के अनुमोदन से परशुराम जी ने देवव्रत को समस्त विधाओं में पारंगत किया।एक आदर्श प्राध्यापक कक्षा को विवेक की पाठशाला समझता है और कक्षा और छात्रों को अपना अभीष्ट देना चाहता है जो उसके विवेकी और प्रत्यय के कोश में है। ऐसे प्रयोग से भारत का शैक्षणिक वातावरण समतामूलक  और जीवंत ज्ञान समाज  में सभी छात्रों को  उच्चतर गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक वातावरण प्रदान करके “वैश्विक ज्ञान महाशक्ति” एवं सरकार के परिकल्पित “विश्व गुरु की संकल्पना” को प्राप्त करने मेंमहासहयोगी  सिद्ध होगा। प्राध्यापक अपने शिष्यों के भीतर संज्ञानात्मक क्षमताओं को विकसित करके छात्रों में सामाजिक, नैतिक और भावनात्मक क्षमताओं को विकसित करके और आदर्श अनुशासित व्यक्तित्व को विकसित करता है, जिससे छात्र वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में सहयोगी  और सहभागी बन सके।

विद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी)भविष्य के भारत की शिक्षा नीति बनाता है।  इसके सफल क्रियान्वयन से विश्व गुरु का मार्ग प्रशस्त होगा, इससे आत्मनिर्भर और सशक्त भारत की स्थापना को साकार कर देगा, जो भारत के वैभव की परम यात्रा को गतिमान करने की नियत, निष्ठा और क्षमता को अभिव्यक्त करते हैं। इससे नए भारत के निर्माण का लक्ष्य  दृष्टिगोचर है। इस मंशा से कर्तव्यनिष्ठ और अपने कार्य के प्रति ईमानदारी रखने वाले शिक्षकों में आत्मीयता का भाव प्रकट होगा। इसके कारण सामाजिक जीवन में छात्रों को सशक्त ,कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और भारतीयता के प्रति स्पष्ट दृष्टिगोचर को रुपायित कर रहा है। 
 
 
इस निर्देश में न्याय और अवसर की समानता को रेखांकित करके समावेशन के सिद्धांत को उन्नयन करके भारतीयता के साथ छात्रों के मन एवं मेधा के साथ शिक्षा की संकल्पना को विकसित करने का भगीरथ प्रयास है। इसके द्वारा शिक्षण तकनीक को विकसित कर  और विषय वस्तु को   अद्यतन करने पर जोड़ है। शिक्षा का मौलिक उपादेयता गुणात्मक जीवन का निर्माण करना है। शिक्षा जीविका (रोजी-रोटी) के लिए तैयार करती है और छात्र के लिए उत्तरदाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है ।छात्रों के भविष्य का उद्धार करती है।  उद्धार का आशय जीवन की मौलिकता में गुणात्मक उन्नयन करना है, जो नीचे (गर्त ) में जा रहा है उसे ऊपर (अग्र )की और उन्नयन करना शिक्षा का मौलिक उद्देश्य है। राष्ट्रभक्ति भारतीयता के प्रति होने पर ईश्वरत्व  की इच्छा होती है। शिक्षा व्यक्ति  निर्माण में वंशानुगत एवं पर्यावरणीय तत्व का वर्णन करके राष्ट्र- राज्य के प्रति आस्था एवं निष्ठा का  विवेकी प्रत्यय  उत्पन्न करती है। कालांतर में अंग्रेजी सरकार ऐसे प्रतिभावान छात्रों के निर्माण का मस्तिष्क रूपरेखा बनाई थी, जिसमें भारतीयता, भारत के प्रति आस्था और निष्ठा और भारतीय मूल्य में आस्था नहीं होती थी।

एक निवेदन

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