केरल के एक कॉलेज में मलयालम पढ़ाने वाले प्रोफेसर पर साल 2010 में ईशनिंदा का आरोप मढ़ कर कट्टरपंथियों ने हमला किया था। इस हमले में उनके हाथ काटे गए थे। अब उन्हीं टीजे जोसेफ नामक प्रोफेसर का संस्मरण बाजार में अंग्रेजी भाषा में अनुवाद होकर आया है। इसमें उन्होंने बताया है कि कैसे कट्टरपंथियों ने उनके साथ जो किया सो किया लेकिन चर्च, कॉलेज, दोस्त, पड़ोसियों ने भी उन्हें नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
रविवार को संडे टाइम्स को साक्षात्कार देते हुए जोसेफ ने कहा कि आरोपितों को दंड देने से न्याय नहीं मिलेगा। असल समस्या कट्टरपंथ की है। याद दिला दें इससे पहले टीजे जोसेफ पिछले वर्ष चर्चा में आए थे जब मलयालम में उनका संस्मरण रिलीज हुआ था। अब वही संस्मरण- नंदकुमार द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद किए जाने के बाद शीर्षक ‘अ थाऊजेंड कट्स: एन इनोसेंट क्वाश्चन एंड डेडली आंसर’ के साथ बाजार में आया है।
इसमें उन्होंने बताया, “थोड़ूपुझा न्यूमैन कॉलेज के प्रिंसिपल और मैनेजमेंट ने शुरुआती समय में मेरा साथ दिया लेकिन समय के साथ उनके मत बदल गए। ये जानने के बावजूद कि मैं निर्दोष हूँ, कॉलेज ने मुझ पर ईशनिंद का आरोप मढ़ा, मुझे सस्पेंड किया गया और बाद में नौकरी से निकाल दिया गया। चर्च ने मेरे परिवार को बहिष्कृत किया और कोठामंगलम सूबा के 120 चर्चों में मेरे खिलाफ पत्र पढ़े गए कि आखिर मेरे विरुद्ध ऐसा एक्शन क्यों लिया गया है। कई ईसाई दोस्तों और परिवारों ने हमारे घर आना छोड़ दिया। उन्हें डर था कि चर्च उनसे नाराज हो जाएगा। मेरे ऊपर हमला करने वालों की आँख पर कट्टरपंथ की पट्टी बंधी थी जिसने मुझे शारीरिक रूप से दुख दिया। लेकिन जो मेरे लोगों ने मेरे साथ किया वो भी और भी ज्यादा भयावह है क्योंकि उससे मेरे परिवार पर प्रभाव पड़ा।”
बता दें कि टीजे जोसेफ केरल के इदुकी जिले के एक कॉलेज में मलयालम पढ़ाते थे। 2010 में उन पर कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन के सदस्य नजीब समेत कुछ युवकों ने चाकुओं से हमला करके उनका दाहिना हाथ काट दिया था। जोसेफ पर आरोप था कि उन्होंने बीकॉम का पेपर तैयार करते हुए पैगंबर मोहम्मद का नाम लिया, जबकि जोसेफ कहते हैं कि वो पीटी कुंजू मोहम्मद नामक एक लेखक के बारे में लिख रहे थे पर कुछ लोगों ने जानबूझकर मोहम्मद नाम को गलत लिया। इसके बाद उनपर हमला हुआ, उन्हें नौकरी से निकाला गया और उनकी पत्नी ने भी हालातों से तंग आकर सुसाइड कर ली।
जोसेफ के अनुसार, उनकी पत्नी गहरे सदमें में थी। 19 मार्च 2014 को वह मनोवैज्ञानिक के पास से लौटीं और सुसाइड कर ली। ये क्षण जोसेफ के लिए और मुश्किल भरा था। उन्हें दुख इस बात का था कि उनकी पत्नी उन्हें दोबारा जॉब करते नहीं देख पाईं जो कि उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी। जोसेफ अपनी किताब में आपबीती लिखते हुए समझाते हैं कि कैसे कट्टरपंथ के कारण हर कोई खतरे में हैं।
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