मिथकीय कथाओं यथा रामायण और महाभारत की कथा को आधुनिक कथा में कहने का जो शऊर , जो सलीक़ा और संवेदना नरेंद्र कोहली ने हिंदी कथा में उपस्थित की है कोई और भला क्या कर पाएगा। विवेकानंद के जीवन पर आधारित उपन्यास तोड़ो कारा तोड़ो से हिंदी कथा की ज़मीन में जो तोड़-फोड़ नरेंद्र कोहली ने की वह अविराम रही। 1981 में उन से पहली बार दिल्ली में मिला था। मई की कोई शाम थी। उन का घर था। छोटा सा फ़्लैट। खूब साफ-सुथरा। मधुरिमा जी ने खूब खिलाया-पिलाया था। दिल्ली में जब उन से मिलना होता था तो उन्हें व्यंग्य लेखक के रूप में जानता था। एक इंटरव्यू के सिलसिले में उन पहली बार मिला था। दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कालेज में पढ़ाते थे तब।
एक दशक बाद जब लखनऊ में मिला तो वह कई सारी कारायें तोड़ते हुए राम कथा के लिए परिचित हो गए थे। एक बार वह बताने लगे कि बहुत पहले मैं राम कथा पर लिखना चाहता था। एक बार पिता जी से इस बाबत चर्चा की। तो पिता बोले , अभी मत लिखो। तो नहीं लिखा। पूछा कि क्यों ? तो वह बोले , राम कथा का मूल ही है , पिता का आदेश मानना। तो नहीं लिखा। फिर बहुत साल बाद एक बार पिता ने पूछा कि क्या हुआ तुम्हारी राम कथा का। तो मैं ने उन्हें बताया कि आप ने ही तो मना किया था कि अभी मत लिखो। यह सुन कर पिता जी मुस्कुराए। बोले , अब लिख सकते हो। तो फिर लिखने लगा। यह राम कथा ही आगे चल कर नरेंद्र कोहली की पहचान बन गई। और यही नरेंद्र कोहली आज हमें छोड़ कर विदा हो गए हैं। उम्र हो गई थी जाने की। फिर भी दुःख तो होता ही है।
6 जनवरी , 1940 को सियालकोट , पाकिस्तान में जन्मे नरेंद्र कोहली मिथ को भी आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखने-दिखाने और लिखने के लिए जाने जाते हैं। जाने जाते रहेंगे। चूंकि इन दिनों नोएडा में हूं सो उन की बीमारी की खबर सुन कर उन से मिलने जाने की कई बार इच्छा हुई। पर बताया गया कि मिल पाना मुमकिन नहीं है। कल ही उन की पत्नी मधुरिमा जी ने बताया था कि स्थिति चिंताजनक है। सुधार की संभावना कम है। और आज अब उन के विदा होने की ख़बर आ गई है। राम कथा के उन्नायक नरेंद्र कोहली की बहुत सारी बातें और यादें मन में बादल की तरह घुमड़ रही हैं। उन की कथाओं के निर्मल तार और उन के गहन जाल जल की तरह घेरे हुए हैं। इस जल-जाल से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी। यह कारा कभी नहीं टूटेगी। विनम्र श्रद्धांजलि !
साभार- http://sarokarnama.blogspot.com/2021/04/blog-post_17.html से