वामपंथ की पत्रकारिता में क्या यह अध्याय अलग से पढ़ाया जाता है कि सच को अधूरा और कई बार संपादित करके प्रस्तुत किया जाए, जिससे पाठक कभी सच को जान ना पाए।
भारतीय नौसेना के अधिकारी रहे कुलभूषण जाधव को लेकर पूरा देश इस वक्त चिन्ता में है। भारत सरकार उन्हें स्वदेश लाना चाहती है लेकिन पाकिस्तान की कुटिल नीतियों को भारतीय कम्यूनिस्ट पत्रकारों का समर्थन हासिल होने की वजह से सरकार के प्रयासों के सामने बड़ी बाधा आई। इस वक्त जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं, जाधव का मामला अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) में है। दुर्भाग्यवश इस अदालत में पाकिस्तानी वकील द्वारा जो सबूत पेश किए गए हैं। वह तीन भारतीय उदारवादी—वामपंथी सोच के पत्रकारों के तीन लेख हैं।
पाकिस्तान ने 04 मार्च 2016 को ईरान के चाबहार बंदरगाह से जाधव को जासूसी का झूठा आरोप लगाकर गिरफ्तार किया। पाकिस्तानी वकील खावर कुरैशी ने अदालत में भारतीय अखबारों में भारतीय पक्ष के खिलाफ जाकर लिखी गई तीन रिपोर्ट का हवाला दिया। यह संयोग था कि इन तीन लेखों को लिखने वाले सभी पत्रकार कम्यूनिस्ट हैं।
21 अप्रैल 2017 को लिखे गए करण थापर के लेख को वकील कुरैशी ने पहले सबूत के तौर पर अदालत के सामने पेश किया। इस लेख में थापर ने जाधव के दो पासपोर्ट का उल्लेख किया है। जिसमें एक पासपोर्ट नरेन्द्र जाधव के नाम से है और दूसरा पासपोर्ट हुसैन मुबारक पटेल के नाम पर बना है। करण थापर के इसी रिपोर्ट का हवाला न्यायालय में वकील कुरैशी दे रहे हैं। जबकि इस मामले में भारत का पक्ष यह है कि दूसरा पासपोर्ट पाकिस्तान ने ही बनाकर जाधव को फंसाने की साजिश रची है। करण थापर अपनी पत्रकारिता में प्रारम्भ से मोदी विरोधी रहे हैं। इसलिए वे जाधव पर झूठी रिपोर्ट लिखते हुए यह नहीं सोच पाए कि उनकी रिपोर्ट यदि न्यायालय में आधार बनती है तो उनका भारतीय होना उनके लिखे को न्यायालय में अधिक महत्व दिलाएगा। लेकिन यह भारतीय कम्यूनिस्ट पत्रकारों का इतिहास रहा है कि वे अपने व्यवहार से पूरी दुनिया में भारत को शर्मिन्दा कराने में कोई कसर नहीं छोड़ते। कपिल सिब्बल और पी चिदम्बरम के पैसों से प्रारम्भ हो रहा नया खबरिया चैनल तिरंगा में करण थापर, बरखा दत्त के साथ नजर आने वाले हैं।
दूसरे सबूत के तौर पर प्रवीण स्वामी की खबर को पेश किया गया। प्रवीण स्वामी 2014 से पहले एक ऐसे पत्रकार थे जिनकी खबर एक्सक्लूसिव होती थी। 2014 के बाद उनको नई सरकार में एक्सक्लूसिव खबर मिलनी बंद हो गई। उन्हें उसी ट्वीटर से जानकारी हासिल होती थी जिससे देश का आम पत्रकार जानकारी हासिल करता है। संभव है कि इसी बात को अपना निजी अपमान मानकर उन्होंने एक मनगढ़ंत कहानी जाधव के संबंध में फ्रंटलाइन नाम की पत्रिका में पिछले साल 16 फरवरी को लिख दी। दावे के साथ ‘इंडियाज सेक्रेट वार’ शीर्षक से लिखी गई अपनी रिपोर्ट में प्रवीण स्वामी ने झूठ लिखा कि जाधव पाकिस्तान में भारत का एजेन्ट था। अपनी तरफ से प्रवीण स्वामी ने पुष्टी कर दी कि जाधव पाकिस्तान में किसी बड़े हमले की योजना बना रहे थे।
तीसरे सबूत के तौर अदालत में ‘द क्विंट’ में चंदन नंदी की स्टोरी का इस्तेमाल किया गया। यह लेख क्विंट में पिछले साल जनवरी में प्रकाशित किया गया था। कुलभूषण के मामले में क्विंट ने जो किया वह किसी देशद्रोह से कम नहीं था। पाकिस्तान में कैद कुलभूषण जाधव जो एक व्यापारी था। जैसाकि विदेश मंत्रालय ने बताया है, उसे द क्विंट ने जासूस बताया। क्विंट की इस झूठी कहानी को पाकिस्तान की मीडिया ने भारत के खिलाफ खूब उछाला। क्विंट के इस रिपोर्ट ने पाकिस्तान के आरोप को ताकत दी है। द क्विंट की प्रकाशित कहानी के स्क्रीन शॉट भारत से अधिक पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए गए।
अपनी रिपोर्ट में क्विंट ने लिखा था— ”जाधव एक जासूस था जो खुद की पहचान ना छुपा पाने की वजह से पकड़ा गया।” जब पाठकों की तरफ से चंदन की कहानी की थू—थू होने लगी और क्विंट को लगा की चंदन की मनोहर कहानी से वेबसाइट की फजीहत अधिक हो रही है तो उसने कुछ ही घंटे में उस कहानी को उतार लिया। चंदन ने बड़बोलेपन में यह तक लिख दिया था कि जाधव को कैसे रॉ के अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया गया था। क्विंट ने यह लिखकर जाधव की कहानी वेबसाइट से हटाई कि ”क्विंट अपने लेख में प्रकाशित कुछ सूचनाओं में सुधार कर फिर से यह लेख प्रकाशित करेगा।” इस घटना के बाद क्विंट के ओपिनियन एडिटर रहे चंदन नंदी को वेबसाइट से हटाया गया लेकिन जाधव मामले में जिन सूचनाओं में सुधार होना था। वह सुधार अब तक हो नहीं पाया।
वास्तव में क्विंट पर प्रकाशित लेख पाकिस्तान के पॉइंट ऑफ़ व्यू से लिखा गया था। इसलिए यह खबर निर्दोष जाधव की मुक्ति में सबसे बड़ी बाधा बन रही है। इस झूठी रिपोर्टिंग ने एक व्यक्ति की जिंदगी तबाह कर दी।
पिछले दिनों पुलवामा आतंकी हमले बलिदान हुए 40 जवानों से जुड़े मामले में जिस तरह वामपंथी उदारवादी पत्रकार अनाप—शनाप लिख रहे हैं। नेता जिस तरह के बयान दे रहे हैं। यह ना जाने कितनी जिंदगियों को बर्बाद करेगा। कोई आतंकी हमले के बाद आम आदमी के बीच उपजे आक्रोश की तुलना 84 के दंगों से कर रहा है। कोई लिख रहा है कि देश में कश्मीरियों की जिन्दगी को खतरा है। तथ्यों की जांच करने पर यह सारी बातें मनगढ़ंत साबित हुई। क्विंट की स्टोरी वेबसाइट से उतार लिए जाने के बाद भी जैसे आज पाकिस्तान के काम आ रही है। देश विरोधी इस तरह के बयान लिखने वालों को समझना चाहिए कि यह सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि आतंकियों के पक्ष में लिखे जा रहे है। जिसका आज नहीं तो कल पाकिस्तान अपने हक में इस्तेमाल कर सकता है। नया मामला एजाज अशरफ नाम के एक वहाबी पत्रकार का है जिसने प्रोपगेंडा पत्रिका द कारवां की वेबसाइट पर भारतीय समाज को बाँटने वाली स्टोरी लिखी है, भारतीय समाज को समझना होगा कि इस तरह की स्टोरी का हासिल अमन की आशा नहीं, बल्कि टूकड़े-टूकड़े हिन्दुस्तान है।
(आशीष कुमार अंशु ने ये लेख फरवरी 22, 2019 में लिखा था मगर आज भी प्रासंगिक है)