Sunday, December 29, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेलन्दन की वेस्टमिनिस्टर पार्लियामेंट : जिसमें छुपा है लोकतंत्र के विकास का इतिहा

लन्दन की वेस्टमिनिस्टर पार्लियामेंट : जिसमें छुपा है लोकतंत्र के विकास का इतिहा

कहने को ब्रिटेन में राजशाही है , महारानी एलिज़ाबेथ लगातार सत्तर साल तक यहाँ शासन कर गईं , उन्हें यहाँ की जनता ने बहुत प्यारऔर सम्मान दिया था. लेकिन आप हैरान हो सकते हैं राजशाही के वावज़ूद भी इस देश में लोकतंत्र की नींव बहुत गहरी है. यही नहींदुनिया में यह लगातार संसदीय प्रणाली से सबसे लंबे समय से शासित देश है . इसलिए यहाँ की पार्लियामेंट को लोकतंत्र की माँ भीकहा जाता है . बहुत कम लोगों को पता होगा कि यहाँ की संसद अतीत में यह के दो राजाओं की पदच्युत्य भी कर चुकी है.

मैं पिछले अनेक वर्षों से लन्दन के वेस्टमिनिस्टर अंडरग्राउंड स्टेशन से निकला हूँ जिसके ठीक सामने ब्रिटिश संसदीय लोकतंत्र का केंद्रवेस्टमिनिस्टर पार्लियामेंट है , बाहर से यह इमारत गॉथिक शिल्प का अद्भुत नमूना दिखती है . मुझे हर बार उत्सुकता होती थी कि क्याकभी इसे अंदर से देखने और इससे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को जानने का अवसर मिलेगा . यह इच्छा कुछ वर्ष पूर्व पूरी हुई जब हमारे मित्रलार्ड राज लुंबा ने हमें मिलने के लिए और हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स का एक सत्र देखने के लिए आमंत्रित किया.

लार्ड लुंबा ने हमारे आने की पूर्व सूचना पियर गेट पर दी हुई थी, जब हम पियर गेट पर पहुँचे तो वहाँ तैनात सुरक्षा इंचार्ज ने हमारा नामपूछा , सूची से नाम की और आने के समय की पुष्टि की और तत्काल एक सुरक्षा कर्मी हमारे साथ कर दिया जो हमें हाउस ऑफ़लॉर्ड्स के स्वागत कक्ष में छोड़ कर आ गया. वहाँ रिसेप्शनिस्ट ने हमें आराम से सोफ़े पर बैठ कर प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया. मुझेनहीं लगता कि हमारी अपनी संसद में इतनी सहजता और सम्मान के साथ किसी आम जन को प्रवेश मिल जाता है.

पंद्रह मिनट के बाद लार्ड लुंबा आये और हमें सीधे अंदर सदन में ले गये जहां सत्र प्रगति पर था , लार्ड लुंबा ने हमें बीबीसी के रिपोर्टर केपास की कुर्सी पर बिठा दिया . लगभग एक घंटे तक हमने सदन की कार्यवाही देखी , सदन में न कोई शोर शराबा ही लगा न ही किसीवक्ता के बोलते हुए कोई टोका टाकी , हर वक्ता को छै मिनट में अपनी बात पूरी करनी होती है और अगर इससे आधा मिनट भी ऊपरहुआ तो स्पीकर बड़े अदब के साथ सदस्य को बात ख़त्म करने के लिए संकेत कर देते हैं . उस दिन चर्चा ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन मेंरहने या फिर छोड़ने पर हो रही थी .

मैंने अनुभव किया कि सारे प्रश्नकर्ता विषय की अच्छी तैयारी के साथ आये थे , उनके प्रश्नों मेंतीखापन होने के वावज़ूद स्वर संतुलित था और उत्तर देने के लिए विदेशी मामलों के सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट और प्रधानमंत्री दोनों ही सदन मेंउपस्थित थे और उन्होंने सदस्यों के सरोकारों को ध्यान से सुन कर सरकारी पक्ष को रखा . हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स की सदस्य संख्या तयशुदानहीं हैं क्योंकि उनका कोई फिक्स्ड टर्म नहीं होता है , एक बार लार्ड बन गए तो आजीवन बने रहेंगे , फ़िलहाल 778 सदस्य हैं , बैठने कीजगह मुश्किल से चार सौ की है , अगर सत्र में सीटों से अधिक सदस्य आ जाते हैं तो लेट आने वाले बिना किसी एटीट्यूड के पीछे खड़ेहो जाते हैं. उन्होंने कभी यह माँग नहीं उठाई कि उनके लिए बड़ा सदन बनना चाहिए . ठीक यही स्थिति हाउस ऑफ़ कॉमन्स की भी हैवहाँ 427 सीट हैं और चुन कर आये सदस्य 650 हैं .

सबसे पहले भारतीय सत्येंद्र सिन्हा थे जिन्हें 1911 में लार्ड बनाया गया था. फिर बाद में स्वराज पॉल , मेघानंद देसाई , राज बागड़ी, नरेंद्रपटेल, राज लुंबा आदि भारतीय मूल के कई लार्ड बन गए हैं , इनकी संख्या 15 से भी अधिक हो चुकी है है . हाउस ऑफ़ लार्ड केसदस्यों को कोई वेतन ,मानदेय या पेंशन नहीं मिलता, जिस दिन सत्र में उपस्थित होते हैं उसका अलाउंस ले सकते हैं. सामान्यत: हाउसऑफ़ लॉर्ड्स के सदस्य कैबिनेट सदस्य या फिर प्रधान मंत्री नहीं बनते हैं अपवाद अलेक्ज़ेंडर फ़्रेड्रिक डगलस होम थे जो मात्र दो वर्षों केलिए 1963-1964 में प्रधानमंत्री रहे.

हाउस ऑफ़ कॉमन्स के लिए चुन कर आये सदस्यों को वेतन मिलता है लेकिन वह सत्तर हज़ार पाउंड वार्षिक है , सच पूछिए इतना तो एकयहाँ मध्यम वर्गीय व्यक्ति भी कमा लेता है . एक संसद सदस्य कहीं बैठक या जनसभा करता है तो अमूमन कुर्सी बिछाने और आमंत्रितश्रोताओं को चाय बिस्किट प्रस्तुत करने का काम भी ख़ुद ही करना पड़ता है . उनके पीछे कहीं भी बाहुबल नहीं दिखेगा . यहाँ भी भारतीयमूल के सांसदों की संख्या निरंतर बढ़ रही है.

हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स का सत्र दिखाने के बाद लार्ड लुंबा ने हमें विशाल पार्लियामेंट भवनों का बाक़ायदा गाइडेड टूर दिया.राजा सामान्यत: नवंबर के महीने में संसद के सत्र प्रारंभ करने की घोषणा करता है. हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स सदन से जुड़ा हुआ एक और विशाल कक्ष राजाके लिए है. इसी कक्ष में राजा बैठ कर हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स के नये सदस्यों को उनके क्रेडेंशियल प्रदान करता है . हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स अभीतक अभिजात्यता का प्रतीक है , हाउस ऑफ़ कॉमन्स का सदस्य वहाँ प्रवेश नहीं कर सकता , यहाँ तक कि प्रधान मंत्री और उनकीकैबिनेट के सदस्य भी वहाँ अनुमति लेकर ही प्रवेश करते हैं.

लार्ड लुंबा हमें बताते हैं कि ब्रिटेन की लंबी राजशाही के दौरान विद्रोह, अतिक्रमण , युद्ध , राज पद से हटा देने की घटनाएँ तो हुईं लेकिनउन सबसे भी महत्वपूर्ण घटना मैग्ना कार्टा का जारी करना था. इसकी घोषणा जून 1215 में हुई थी इसमें अभिलिखित है कि राजा औरउसकी सरकार क़ानून से ऊपर नहीं है यही नहीं मैग्ना कार्टा में क़ानून के शासन की स्थापना से रॉयल सत्ता की सीमाएँ तय कर दी गईं. इस में व्यक्ति विशेष के अधिकारों और निजता को सर्वोपरि महत्व दिया गया. यह अपने समय में किसी भी राजशाही द्वारा उठाया गया सबसे क्रांतिकारी कदम था.

ब्रिटिश राजशाही के इतिहास में दो अवसर ऐसे भी आये हैं जब संसद ने राजा को पदच्युत कर दिया , पहली घटना चार्ल्स प्रथम केजीवन काल में 1649 में हुई थी जब संसद ने उसके आचरण से तंग आ कर सिविल युद्ध ही छेड़ दिया और उसमें चार्ल्स को जान गँवानीपड़ी . अगला सिविल युद्ध 1688 में हुआ , इस में राजा जेम्स द्वितीय की जान तो बख़्श दी गई लेकिन उसे अपना पद छोड़ना पड़ा.

अब बारी थी ब्रिटिश पार्लियामेंट के भवन के निर्माण की कहानी की, लार्ड लुंबा बताते हैं कि वेस्टमिनिस्टर हाल अबसे 900 वर्ष पूर्वविलियम द्वितीय के जमाने में टेम्स नदी के तट पर बना था , उस जमाने में इतना बड़ा हाल पूरे यूरोप में कहीं नहीं था. इसका फ्लोर एरिया1547 वर्ग मीटर है. समय समय पर इसमें और इमारतें जुड़ती गईं और यह पैलेस ऑफ़ वेस्टमिनिस्टर कहलाने लगा . 1834 में लंदन मेंलगी भीषण आग की चपेट में वेस्टमिनिस्टर तक पहुँच गई थी . हालाँकि आग से हॉल ऑफ़ वेस्ट मिनिस्टर बच गया था . 1870 में पैलेसऑफ़ वेस्टमिनिस्टर के पुन: निर्माण का कार्य पूरा हुआ था . इस समय यह पूरी इमारतों की श्रृंखला आठ एकड़ में फैली हुई है , इसमेंकुल मिला कर 1100 कक्ष हैं , सौ स्टेयर केसेज हैं, दक्षिणी छोर पर विक्टोरिया टावर से लेकर उत्तर में क्लॉक टावर तक भवन 300 मीटर लंबा है .

लार्ड लुंबा बताते हैं कि 1941 में जर्मन विमान के द्वारा बम गिराए जाने से हाउस ऑफ़ कॉमन्स भवन को काफ़ी क्षति पहुँची थी , युद्धकविमान का निशाना इतना सटीक था कि डोम की छत तबाह हो गई थी . इस घटना से तत्कालीन प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल इतने कुपितहुए कि उन्होंने पूरी शक्ति और क्षमता से युद्ध में झोंक दी और इस युद्ध को निर्णायक चरण में पहुँचा दिया. आज उस डोम के नीचे ठीकमध्य में विंस्टन चर्चिल की स्टेचू लगी हुई है .

जहां ब्रिटिश पार्लियामेंट को संसदीय लोकतंत्र के सतत प्रहरी होने के कारण मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी भी कहा जाता हैं वहीं यह भवनकलाकृतियाँ और पेंटिंग्स का अकूत खजाना भी समेटे हुए है , एक मोटे अनुमान के अनुसार यहाँ कम से कम 10,000 बहुमूल्य कलाकृतियाँ है जिसमें बेहतरीन फ़्रेंच इम्प्रेशनिस्ट पेंटर क्लॉड मोने की कलाकृति भी शामिल है .

लार्ड लुंबा ने पार्लियामेंट की दीर्घा में चार वे पचास -पचास मीटर की विशाल पेंटिंग दिखाईं जिनमें प्रदर्शित घटनाओं ने ब्रिटेन केइतिहास की दिशा और दशा दोनों बदल दी . इनमें से एक पेंटिंग में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रतिनिधि मुग़ल दरबार में ब्रिटेन के राजा द्वाराव्यापार के लिए दिए गए क्रेडेंशियल प्रस्तुत कर रहा है . दो अन्य पेंटिंग वाटरलू युद्ध और ट्रैफ़लगार में नेल्सन की हैं , चौथी पेंटिंगप्रुशिया राज्य के प्रतिनिधियों के साथ विश्व युद्ध के दौरान मंत्रणा को दिखाती है .

बातचीत के दौरान लार्ड लुंबा ने एक और महत्वपूर्ण जानकारी दी , ब्रिटेन में 1867 से पूर्व सरकार के चयन में आम आदमी की कोईभूमिका नहीं थी. 1867 में हर उस व्यक्ति को वोट देने का अधिकार मिल गया जिसकी अपनी कोई संपत्ति हो या वह सरकार को कम सेकम एक निश्चित राशि कर के रूप में देता हो . इस व्यवस्था में वर्किंग क्लास के लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं था . 1918 में जनप्रतिनिधित्व क़ानून पारित हुआ जिसके अनुसार 21 वर्ष से अधिक की आयु के पुरुष और 30 वर्ष से अधिक की गृहणियों को वोट देनेका अधिकार मिल गया था . लेकिन एक बात माननी पड़ेगी कि ब्रिटेन के लोकतांत्रिक स्वरूप में उत्तरोत्तर सुधार होता गया है .

अब 18 वर्ष से ऊपर के सभी युवा वोट दे सकते हैं . एक बात और पता चली कि ब्रिटेन के आम चुनाव में कॉमनवेल्थ देशों के वे नागरिकजो ब्रिटेन में रह रहे हैं वे भी ब्रिटिश नागरिकों की ही तरह से वोट डाल सकते हैं .

ब्रिटिश राज घराना ब्रिटेन की सरकार के कामकाज में कोई दखल नहीं देता है . ब्रिटिश क्राउन का अब केवल प्रतीकात्मक महत्व रह गयाहै लेकिन फिर भी आम नागरिक के मन में अपने राजा के प्रति भावनात्मक सम्मान और प्यार तो है , विशेषकर रानी एलिज़ाबेथ ने अपनेसत्तर वर्षों के कार्यकाल में आम जनता का बेहद प्यार पाया है . लेकिन यहाँ के मीडिया में और जनता के बीच में भी राज परिवार केख़र्चों और आचरण को लेकर चर्चा होती रहती है . समाचार पत्र सरकार के काम काज और जन प्रतिनिधियों के आचरण पर पैनी निगाहरखते हैं और उस पर निर्भीकतापूर्वक लिखते हैं . बोरिस जॉनसन को कोविड काल में घर में पार्टी न करने के फ़रमान के अनुरूप आचरणन करने पर अपने प्रधान मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था .यहाँ की पार्लियामेंट केवल चर्चा सत्रों के लिए तो है ही साथ ही किसी भीसांस्कृतिक , साहित्यिक या फिर अन्य जन अभिरुचि के कार्यक्रम के आयोजन के लिए भी इसके द्वार हमेशा खुले रहते हैं और ऐसेआयोजन नियमित रूप से होते रहते हैं . देखा जाए ब्रिटिश में राजशाही व्यवस्था होने के वावज़ूद इसे दुनिया के बेहतरीन से बेहतरीनलोकतंत्र से अधिक लोकतांत्रिक होने का तमग़ा हासिल है.

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार